Chandu Champion Review: कबीर खान ने किया कमाल का प्रर्दशन, कार्तिक आर्यन की एक्टिंग का कोई जवाब नहीं...
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Chandu Champion Review: कबीर खान ने किया कमाल का प्रर्दशन, कार्तिक आर्यन की एक्टिंग का कोई जवाब नहीं...

पैरालिंपिक गोल्ड मेडलिस्ट मुरलीकांत पेटकर पर आधारित ये स्पोर्ट्स ड्रामा बायोपिक के ढांचे पर काफी हद तक आधारित है. लेकिन इसमें इतनी बारीकियां हैं कि इसे देखना वाकई मजेदार होगा.


कबीर खान की चंदू चैंपियन की शुरुआत एक पुलिस स्टेशन का सीन होता है. श्रेयस तलपड़े इंस्पेक्टर सचिन कांबले हैं और उनके सामने एक बुजुर्ग व्यक्ति बैठा है, जिसके साथ उसका छोटा बेटा मुरलीकांत पेटकर है, जो खुद भारत के राष्ट्रपति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना चाहता है. कारण? वो अपने नाम पर प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार चाहता है, लेकिन वो इसे इसलिए नहीं चाहता क्योंकि वो अपने महाराष्ट्रीयन शहर इस्लामपुर के लिए विकास, बेहतर सड़कें, सुविधाएं और अन्य चीजें करना चाहता है. लेकिन इन सबसे पहले कांबले शिकायत दर्ज कराने के बारे में सोचना भी शुरू करते हैं, तो उन्हें पहले ये पता लगाना होगा कि ये आदमी कौन है?

इसके बाद जो बातचीत होती है, वो जल्दी ही एक लंबे फ्लैशबैक में तब्दील हो जाती है, जो कई घटनाओं से भरा हुआ है. अर्जुन पुरस्कार का मतलब सिर्फ इतना है कि मुरली पेटकर एक समय में खेलों में एक सफल व्यक्ति थे, लेकिन कबीर खान और सुमित अरोड़ा और सुदीप्तो सेन खेल को ही फोकस का केंद्र बनाने के लिए बहुत उत्सुक नहीं दिखते. वे कहते हैं कि ये व्यक्ति है हमारे इतिहास के पन्नों में भुला दी गई महत्वपूर्ण में से एक है. आखिर कैसे एक व्यक्ति एक पैरालिंपियन और एक स्वर्ण पदक विजेता, जिसने भारतीय सेना में सेवा की और 1965 में अपने शरीर में नौ गोलियां खाईं. जिसने एक नहीं बल्कि कई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया.

कार्तिक आर्यन की धमाकेदार वापसी

वैसे, इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन समय की मांग है कि हर बायोपिक की तरह सभी को बताया जाए कि हमारे बीच ऐसा कोई व्यक्ति था और वो अपनी खुद की फिल्म का हकदार है. चंदू चैंपियन करीब ढाई घंटे तक चलती है. कबीर खान और उनके सह-लेखक किसी तरह खुद को एक ऐसे चित्र तक सीमित रखते हैं जो निस्संदेह उज्ज्वल और जीवंत है. ये एक ऐसी फिल्म है जो कई मौकों पर हमारे दिलों को छूती है.

इसका मतलब ये नहीं है कि चंदू चैंपियन आकर्षक नहीं है. कार्तिक आर्यन ने इस फिल्म के लिए खुद पर काफी मेहमत की है. ये फिल्म देखने में काफी अच्छी है. फिल्म के क्लाइमेक्स के करीब का छोटा सा सीन लें जब मुरली अपने प्रशिक्षण के दौरान एक स्विमिंग पूल में डूबा हुआ होता है. उसके कोच टाइगर अली (विजय राज) द्वारा उसे बताया जाता है कि वो आखिरकार एक पैरालिंपियन बनेगा क्योंकि कई पैराप्लेजिक इस पल को देखते हैं और जश्न में शामिल होते हैं.

एक और सीन है जिसमें एक युवा मुरली अपने गांव में कुश्ती खिलाड़ी को हरा देता है और उसे अपनी लंगोट में ही भागने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जो सचमुच आजादी की ओर तैरता हुआ जाता है. कबीर खान का सबसे अच्छा काम खासकर बजरंगी भाईजान जो अक्सर अपनी बातों पर आधारित होता है. चंदू चैंपियन में कार्तिक आर्यन ने अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है.

मुरली पेटकर भारत के लिए ओलंपिक स्वर्ण जीतने के लिए एक दृढ़ संकल्पित व्यक्ति है और वो अपने सपने को पूरा करने के लिए कई सालों तक अपने परिवार को पीछे छोड़ देता है. भविष्य के मुक्केबाजी चैंपियन के रूप में मुरली एक बड़े खेल से पहले एक बड़ी गलती करता है और ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका खो देता है. लेकिन हम उस पर उस निर्णय का भार महसूस नहीं करते हैं क्योंकि हम उसे बड़ा होते और जीवन के साथ संघर्ष करते देखते हैं.

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