जानें क्या है दर्शन की गिरफ्तारी का 80 साल पहले का संबंध? जब 2 सुपरस्टार्स का करियर हो गया था तबाह
अभिनेता दर्शन की गिरफ्तारी आठ दशक पहले तमिल सिनेमा को हिला देने वाले एक कांड की याद दिलाता है. जब तमिल सिनेमा के सुपरस्टार का करियर तबाह हो गया था.
Renuka Swamy Murder: कन्नड़ अभिनेता दर्शन थुगुदीपा को 11 जून को अपने फैन रेणुका स्वामी की हत्या के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है. मृतक पर आरोप है कि उन्होंने सोशल मीडिया पर दर्शन की दोस्त पवित्रा गौड़ा के खिलाफ़ अपमानजनक टिप्पणी की थी. कन्नड़ फ़िल्म उद्योग में दर्शन थुगुदीपा को 'चैलेंजिंग स्टार' और 'डी बॉस' के नाम से जाना जाता है. अब वह पिछले एक हफ़्ते से पुलिस हिरासत में हैं. अभिनेता दर्शन का यह मामला आठ दशक पहले तमिल सिनेमा को हिला देने वाले एक कांड की याद दिलाता है. जिसमें साल 1944 में पत्रकार लक्ष्मीकांतन की हत्या की वजह से तमिल सिनेमा के पहले सुपरस्टार एमके त्यागराज भागवतर और उनके सहयोगी, कॉमेडियन एनएस कृष्णन का करियर तबाह हो गया था.
भागवतर और कृष्णन ने हत्या के आरोप में अंडमान जेल में 30 महीने बिताए. इससे पहले कि प्रिवी काउंसिल (सुप्रीम कोर्ट के समकक्ष) ने उनकी सज़ा को पलट दिया. जब वे जेल से बाहर आए तो तमिलनाडु के सिनेमा-प्रेमी आगे बढ़ चुके थे और नए अभिनेताओं ने उनकी जगह ले ली थी.
रेणुका स्वामी और लक्ष्मीकांतन दोनों की हत्या अपमानजनक टिप्पणियां/लेख लिखने के लिए किराए के हत्यारों द्वारा की गई थी. दोनों हत्याओं के कारण क्रमशः कन्नड़ और तमिल फिल्म उद्योग के सुपरस्टार गिरफ़्तार हुए. भगवतर तमिल सिनेमा के सबसे बड़े सितारों में से एक थे, जिनकी लोकप्रियता बहुत ज़्यादा थी. ऐसा कहा जाता है कि वे हर दिन मद्रास से त्रिची के लिए चार्टर फ़्लाइट से आने वाली गुलाब की पंखुड़ियों से नहाते थे और मछलियां खाते थे. वहीं, कृष्णन द्रविड़ आंदोलन के एक कार्यकर्ता थे, जो 1930 और 1940 के दशक में लोकप्रियता हासिल कर रहा था. उन्होंने चरित्र और हास्य भूमिकाएं निभाई थीं.
हालांकि, लक्ष्मीकांतन (पत्रकार) एक सजायाफ्ता अपराधी था, जिसे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जेल से रिहा किया गया था. जेल से बाहर आने के बाद उसने अपनी पत्रिकाओं में फ़िल्मी सितारों के बारे में गपशप लिखना शुरू कर दिया. विरोध के बावजूद उन्हें छपवाने का कोई न कोई तरीका ढूंढ़ता रहा. तमिल सिनेमा के इतिहासकार रैंडर गाइ के अनुसार, लक्ष्मीकांतन ने ‘सिनेमा थूथु’ (सिनेमा मैसेंजर) और ‘इंदु नेसन’ (देशभक्त) पत्रिका चलाई थी.
हत्या
लक्ष्मीकांतन ने तमिल फिल्म उद्योग के अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के बारे में लिखने के लिए समान रूप से लोकप्रियता और बदनामी हासिल की. दरअसल, कृष्णन और भागवतर ने मद्रास के तत्कालीन राज्यपाल से कंथन के प्रिंटिंग प्रेस चलाने के लाइसेंस को रद्द करने की याचिका दायर की थी. सभी तरफ से दबाव के बावजूद कंथन ने अपमानजनक लेख लिखना जारी रखा. कुछ अभिनेताओं ने उसे चुप रहने के लिए पैसे भी दिए. 8 नवंबर 1944 को मद्रास की एक व्यस्त सड़क पर कंथन को चाकू मार दिया गया और अगली सुबह उसकी मौत हो गई. भागवतर और कृष्णन हत्या के मुख्य संदिग्ध थे और पुलिस ने साल 1945 की शुरुआत में उन्हें गिरफ्तार कर लिया. उनका मुकदमा मद्रास में अंतिम जूरी ट्रायल्स में से एक था, उन्हें 6 से 3 के फैसले में जूरी द्वारा दोषी पाया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. तमिल सिनेमा के प्रमुख कृष्णन और भगवतार अब अंडमान जेल में सड़ने वाले थे.
उन्होंने मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अल्फ्रेड हेनरी लियोनेल लीच के समक्ष फैसले के खिलाफ अपील की. लीच के आदेश में कहा गया था कि लक्ष्मीकांतन एक बुरे चरित्र के व्यक्ति थे. उन्होंने भारतीय नारीत्व की पवित्रता की रक्षा करने के लिए जीवन में एक मिशन होने का दावा किया. लेकिन उनका पेशा केवल प्रमुख व्यक्तियों, विशेष रूप से सिनेमा जगत में प्रसिद्ध व्यक्तियों के चरित्र पर हमला करने वाले सबसे घिनौने लेख लिखने का आवरण मात्र था. आदेश में कहा गया था कि कृष्णन और भगवतार उन लोगों में से थे, जिन पर उन्होंने हमला किया और वे दोनों सिनेमा अभिनेता थे और अपने पेशे में प्रमुख थे. आदेश के अनुसार, वे (लेख) उन पर मासूम लड़कियों को बहकाने का आरोप लगाते हैं. मुख्य न्यायाधीश के आदेश में कहा गया कि कंथन पर वास्तव में अक्टूबर 1944 में एक बार हमला किया गया था. हालांकि कोई गंभीर चोट नहीं आई थी. कंथन इसके लिए दोनों अभिनेताओं के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना चाहता था और इसके लिए उसने एक वकील से संपर्क किया था. कंथन की हत्या उस समय की गई, जब वह शिकायत की एक प्रति लेकर वकील के कार्यालय से लौट रहा था. आदेश में कहा गया कि हमलावरों में से एक ने भागवतर से मुलाकात की थी, जिसने कंथन की हत्या के लिए अपने गिरोह और उसे 2,500 रुपये देने का वादा किया था. इसके अलावा भागवतर और कृष्णन ने कहा था कि अगर किसी भी तरह से वे (हमलावर) पकड़े गए तो वह और उसके दोस्त उन्हें हर संभव मदद देंगे. अभिनेताओं के उकसावे पर आरोपियों ने शपथ ली कि भले ही उनका सिर कट जाए, वे उनका पर्दाफाश नहीं करेंगे.
इसके बाद अदालत ने सबूतों, गवाहों के बयानों और अन्य चीजों का विश्लेषण किया और फैसला किया कि कृष्णन और भागवतर लक्ष्मीकांतन की हत्या के दोषी थे और उनकी सजा और निर्वासन को बरकरार रखा. यह आदेश अक्टूबर 1945 में दिया गया. इसके बाद मामला प्रिवी काउंसिल में गया. जहां भगवतार और कृष्णन का प्रतिनिधित्व केएम मुंशी ने किया, जो बाद में स्वतंत्र भारत में मंत्री बने और संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. प्रिवी काउंसिल ने आखिरकार उनकी सजा को पलट दिया और भगवतार और कृष्णन को जेल से रिहा कर दिया. मामले की दोबारा सुनवाई का आदेश दिया गया. लेकिन यह पता नहीं चल पाया कि लक्ष्मीकांतन की हत्या किसने की थी. आठ दशक बाद भी लक्ष्मीकांतन हत्याकांड का मामला अनसुलझा है.
परिणाम
जब भागवतर और कृष्णन जेल से बाहर आए तो वे दिवालिया हो चुके थे और उनकी लोकप्रियता कम हो गई थी. भागवतर के पास गिरफ़्तारी से पहले 12 प्रोजेक्ट थे. रिहा होने के बाद उनके पास कोई प्रोजेक्ट नहीं था. कृष्णन के पास भी अपने नाम के लिए पैसे नहीं बचे थे. उन्होंने फ़िल्म इंडस्ट्री में फिर से प्रवेश करने की कोशिश की, लेकिन वे असफल रहे. भागवतर ने अपना सारा पैसा खो दिया था और साल 1959 में डायबिटीज के कारण गरीबी में उनकी मृत्यु हो गई. उन्होंने संगीत कार्यक्रम देकर अपना गुजारा करने की कोशिश की. मृत्यु के समय भागवतर की उम्र 40 साल भी नहीं थी. हालांकि कृष्णन का प्रदर्शन बेहतर रहा. साल 1957 में 48 वर्ष की आयु में निधन से पहले वे कुछ भूमिकाएँ निभाने में सफल रहे. संयोग से, उनके पतन के कारण एमजी रामचंद्रन का उदय हुआ, जो एक दशक तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बनने से पहले तीन दशकों तक तमिल सिनेमा के सुपरस्टार के रूप में राज करते रहे.