Coolie Movie Review: रजनीकांत का करिश्मा और लोकेश कनगराज का मसाला एक्शन पड़ा फीका
x

Coolie Movie Review: रजनीकांत का करिश्मा और लोकेश कनगराज का मसाला एक्शन पड़ा फीका

लोकेश कनगराज की तमिल फिल्म ‘कूली’ रजनीकांत के 50 साल पूरे होने पर बनी है.फिल्म में एक्शन, इमोशन और रहस्य है, लेकिन स्क्रिप्ट उनकी पिछली फिल्मों जितनी धारदार नहीं. यहां पढ़ें पूरा रिव्यू.


तमिल सिनेमा के मशहूर डायरेक्टर लोकेश कनगराज का नाम पिछले कुछ सालों में ऐसे फिल्मकारों में गिना जाने लगा है, जो अपनी फिल्मों में स्टाइलिश एक्शन, गहन कहानी और नॉन-लीनियर नैरेटिव का बेहतरीन मेल पेश करते हैं. माणागारम (2017), कैथी (2019) और विक्रम (2022) जैसी फिल्मों से उन्होंने दर्शकों को चौंकाया और मनोरंजन भी किया. अब वो लेकर आए हैं ‘कूली’, जो सुपरस्टार रजनीकांत के फिल्मी करियर के 50 साल पूरे होने के मौके पर बनाई गई है. फिल्म से उम्मीदें आसमान छू रही थीं और भले ही ये पूरी तरह उन उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती, लेकिन रजनीकांत का करिश्मा इसे देखने लायक बनाता है.

फिल्म की पृष्ठभूमि चेन्नई के डॉकयार्ड और वहां काम करने वाले कूली मजदूर यूनियनों के अंडरवर्ल्ड में सेट है. यहां मिलते हैं राजशेखर (सत्यराज) एक विधुर पिता, जो अपनी तीन बेटियों प्रीति (श्रुति हासन), प्रिया (मोनीषा ब्लेसी) और रेबा मोनिका जॉन के साथ एक साधारण जिंदगी जी रहा है. राजशेखर कोई आम आदमी नहीं है. वो एक स्व-शिक्षित आविष्कारक है. उसने एक इलेक्ट्रिक क्रिमेशन चेयर बनाई है, जिसका मकसद है अंतिम संस्कार को सस्ता, आसान और सम्मानजनक बनाना, लेकिन सरकारी सिस्टम इसे मंजूरी देने से इनकार कर देता है, ये कहकर कि ये "अव्यवहारिक" है. यहीं से कहानी में एंट्री होती है साइमन (नागार्जुन) की एक ऐसा अंडरवर्ल्ड डॉन, जिसकी छवि एक करिश्माई नेता जैसी है, लेकिन अंदर से वो निर्दयी और खतरनाक है. वो राजशेखर के आविष्कार को अपने काले धंधे में इस्तेमाल करने का मौका देखता है और इसे अपनाने की ठान लेता है.

रहस्य और बदले की शुरुआत

एक दिन अचानक राजशेखर की मौत हो जाती है. ये मौत सिर्फ एक हादसा नहीं लगती, बल्कि इसमें गहरी साजिश की बू आती है. परिवार शोक में डूबा है और बेटियां खासकर प्रीति, किसी भी बाहरी हस्तक्षेप से नाखुश हैं. यही समय है जब कहानी का सबसे बड़ा मोड़ आता है. देवा (रजनीकांत) की एंट्री वो राजशेखर का पुराना दोस्त है, जो कई सालों बाद लौट आया है. अंतिम संस्कार पर पहुंचते ही वो माहौल और इंतजाम को देख कर समझ जाता है कि राजशेखर की मौत के पीछे कोई गहरी चाल है. देवा, अपने दोस्त की याद और वफादारी निभाते हुए, सच की खोज पर निकल पड़ता है, लेकिन जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता है. साइमन की असलियत तो सामने आती ही है. साथ ही एक और बड़ा और ज्यादा खतरनाक किरदार भी उभरता है. धायलन (सोबिन शाहीर) बाहर से वो शांत और साधारण लगता है, लेकिन उसकी महत्वाकांक्षा और चालाकी साइमन को भी फीका कर देती है.

किरदार और परफॉर्मेंस

रजनीकांत (देवा) उनका स्टार पावर ही फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है. उनकी एंट्री, स्टाइल, डायलॉग डिलीवरी और स्क्रीन प्रेजेंस हर सीन में चमकते हैं. सत्यराज (राजशेखर) रजनीकांत के साथ 38 साल बाद फिर साथ आए हैं (आखिरी बार Mr. Bharath, 1986 में साथ थे). उनका किरदार कहानी की नींव है. नागार्जुन (साइमन) करिश्माई लेकिन खतरनाक डॉन के रोल में दमदार, हालांकि किरदार को और गहराई मिल सकती थी. सोबिन शाहीर (धायलन) चुपचाप कहानी पर कब्जा करने वाले असली विलेन के रूप में सरप्राइज पैकेज. श्रुति हासन, मोनीषा ब्लेसी, रेबा मोनिका जॉन – इमोशनल एंगल को मजबूत बनाती हैं. कैमियो उपेंद्र और आमिर खान की झलकियां स्टार वैल्यू बढ़ाती हैं, लेकिन कहानी में उनका असर सीमित है.

डायरेक्शन और स्क्रीनप्ले

लोकेश कनगराज की पहचान है नॉन-लीनियर नैरेटिव, यानी कहानी को अलग-अलग टाइमलाइन में दिखाना. यहां भी वही पैटर्न अपनाया गया है, लेकिन जहां विक्रम में यह तरीका नया और रोमांचक लगा था, यहां कई बार ये प्रीडिक्टेबल लगता है, जैसे पुरानी चाल दोहराई जा रही हो. पहला हाफ धीमा है लेकिन इंट्रीग बनाए रखता है. किरदारों की बैकस्टोरी और सस्पेंस धीरे-धीरे खुलता है, लेकिन दूसरा हाफ कई बार लंबा खिंच जाता है. खासकर फाइट सीक्वेंस और टकराव वाले सीन, जो पुराने कमर्शियल मसाला टेम्पलेट से मेल खाते हैं.

टेक्निकल पहलू

म्यूजिक अनिरुद्ध रविचंदर का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म की जान है. एक्शन और टेंशन को वह जबरदस्त तरीके से बढ़ाता है. सिनेमाटोग्राफी गिरीश गंगाधरण ने अच्छा काम किया है, लेकिन कैथी और विक्रम जैसी विजुअल क्रिएटिविटी यहां कम दिखती है. सॉन्ग प्लेसमेंट “मोनिका” गाना फिल्म की टोन से मेल नहीं खाता और ज्यादा कमर्शियल लगता है.

प्लस पॉइंट्स

रजनीकांत का स्टार पावर और स्क्रीन प्रेजेंस. अनिरुद्ध का दमदार म्यूजिक. कुछ इमोशनल और सस्पेंस से भरे सीन. सोबिन शाहीर का सरप्राइज विलेन रोल.

माइनस पॉइंट्स

स्क्रिप्ट में लोकेश की पिछली फिल्मों जैसी धार और नयापन नहीं. दूसरा हाफ लंबा और कई बार दोहराव वाला. कुछ कैमियो और गाने कहानी से मेल नहीं खाते. कूली लोकेश कनगराज की सबसे क्रिएटिव फिल्म नहीं है, लेकिन रजनीकांत के लिए यह एक स्टार-ड्रिवन मसाला एंटरटेनर है. फैंस को उनका स्टाइल, डायलॉग और एक्शन देखने में मजा आएगा. आम दर्शकों के लिए ये एक अच्छी कमर्शियल फिल्म है, हालांकि इसमें वो इन्वेंटिव रिस्क-टेकिंग नहीं है जिसने लोकेश को तमिल सिनेमा के अलग पहचान वाले डायरेक्टर के रूप में स्थापित किया.

Read More
Next Story