बैड कॉप मेरी नजर में मास एंटरटेनर सीरीज गुलशन देवैया का धमाकेदार इंटरव्यू
x

'बैड कॉप मेरी नजर में मास एंटरटेनर सीरीज' गुलशन देवैया का धमाकेदार इंटरव्यू

गुलशन देवैया ने आदित्य दत्त और अनुराग कश्यप के साथ वर्क एक्सपीरियंस और वेब सीरीज में निभाई डबल रोल की भूमिका के बारे में खुलकर बात की है. इतना ही नहीं कैसे उन्होंने ओटीटी स्पेस में कामयाबी हासिल की इसके बारे में भी बहुत कुछ बताया.


गुलशन देवैया ने भले ही हिंदी सिनेमा के सबसे बेहतरीन कलाकारों के साथ काम किया हो, लेकिन उन्हें लगता है कि किसी भी ऐसा कोई पॉइंट नहीं है जहां आपको आत्मसंतुष्टि मिले. खुद की महनेत पर अपना करियर बनाने वाले गुलशन देवैया ने काफी दिक्कतों का सामना किया है. एक्टर उन लोगों में से एक जो किसी भी फिल्म या शो में अपनी एक्टिंग के दम पर दर्शकों के बीच रुचि पैदा कर सकते हैं. उनका ऐसा मानना है कुछ नया सीखना का कोई भी ऐसा अवसर मिले तो हिचकिचाना नहीं चाहिए उसको सीख लेना चाहिए. साथ ही ये सुनिश्चित करना चाहिए कि वो अब तक जो कुछ भी उनके पास आया है उसके लिए आभारी हैं.

गुलशन देवैया अपने काम को लेकर कभी भी जल्दबाजी नहीं करते. उन्होंने इस इंटरव्यू में एक बात बहुत अच्छी कही कि मुझे कभी ये नहीं सोचता कि मेरे पास जो है, उससे ज़्यादा मैं पाने का हकदार हूं. साथ ही उनके काम करने के तरीके और समझदारी का एक बड़ा हिस्सा नौकरी के दौरान ही मिला था. क्योंकि वो किसी फिल्म स्कूल में नहीं गए, न ही उनके पास फिल्मी परिवार से थे, जिससे उनको कोई फायदा मिलता.

फिल्म इंडस्ट्री में बहुत से ऐसे बेहतरीन कलाकार हैं जैसे नवाजुद्दीन सिद्दीकी, इरफान खान और नसीरुद्दीन शाह जिसकी एक्टिंग का कोई जवाब ही नहीं है. वो कलाकार किसी भी किरदार में फिट बैठ जाते हैं. निभाए गए उन किरदारों को आप उस जगह पर किसी और को देखना पसंद ही नहीं करेंगे. हालांकि शो बैड कॉप में देवैया मुख्य भूमिका में हैं. आठ एपिसोड की ये सीरीज साल 2017 के जर्मन शो बैड कॉप: क्रिमिनेल गुट का रीमेक है, जिसका प्रीमियर 21 जून को डिज्नी+ हॉटस्टार पर होगा. इस सीरीज में उनके अलावा अनुराग कश्यप, हरलीन सेठी, सौरभ सचदेवा और कई कलाकार शामिल हैं.

जिमी/कराटे मणि मर्द को दर्द नहीं होता में आपके अभिनय ने डबर रोल के किरदार ने एक बहुत ऊंचा स्तर स्थापित कर दिया है. इस लिहाज से बैड कॉप कैसी है?

ये 1990 के दशक में देखी जाने वाली एक्शन कॉमेडी की तरह है. आप जानते हैं, अक्षय कुमार और सुनील शेट्टी की कई एक्शन फिल्में है. मैं यहां जो किरदार निभा रहा हूं वो है करण और अर्जुन. कहानी का अपना एक स्क्रीन लॉजिक है और मुझे ये पसंद आया कि ये अपनी खुद की दुनिया है जिसे हमने बनाने की कोशिश की है. मुझे इस बार कुछ बिल्कुल अलग करने की चुनौती मिली और मुझे बहुक पसंद आई. मुझे ये भी देखना था कि मैं इस पुलिस वाले की भूमिका कैसे निभा सकूंगा. जो शायद केवल रोहित शेट्टी की फिल्मों में ही होता है.

ये भी दिलचस्प है कि आप आदित्य दत्त जैसे फिल्म निर्माता के साथ काम कर रहे हैं, जिनकी संवेदनशीलता एक अभिनेता के तौर पर आपकी पहचान से अलग हो सकती है. आप लोग इस प्रोजेक्ट के लिए कैसे मिले?

मैंने आदित्य के साथ कमांडो 3 में पहले भी काम किया है और मुझे पता था कि मैं क्या करने जा रहा हूं. वो ऐसी चीज़ें बनाने के लिए बेताब है जो कूल, स्टाइलिश और इंटरेस्टिंग हों और वो किसी और की तरह होने का दिखावा नहीं करते. देखिए इस मास एंटरटेनर सीरीज के लिए उन्होंने जिस तरह की स्टार कास्ट को लिया है, वो काफी अनोखी है. चाहे वह अनुराग हो, हरलीन हो, सौरभ हो या ऐश्वर्या. आप इन स्टार कास्ट को कमर्शियल सिनेमा से जोड़कर नहीं देखते. इसलिए, मुझे जो बात बहुत पसंद आई, वो यह है कि शो चलाने वालों ने ऐसे अभिनेताओं की तलाश की जो इस टेम्पलेट में कुछ नया लेकर आए.

फिर आपको इन दो लोगों करण और अर्जुन की भूमिका निभाने का विचार कैसे आया?

ये बहुत मज़ेदार लगा और मेरा मानना है कि इस तरह की भूमिकाएं निभाना मेरे करियर में काफी अलग साबित और अच्छा होगा. अनुराग ने हाल ही में इसे मेरा मास वर्जन कहा और मैं इससे सहमत हूं क्योंकि बैड कॉप में ये प्रदर्शन एक मास हीरो की मेरी व्याख्या है. मैं मुख्य रूप से ये जानना चाहता था कि मैं इस सीरीज में कैसे फिट हो सकता हूं जो बिल्कुल भी रियलिस्टिक नहीं है. मेरे पास वो फिटनेस भी नहीं है. ना बाइसेप्स ना एब्स और ना ही शोल्डर. जैसे अभिनेता आमतौर पर इस तरह की एक्शन भूमिकाएं निभाते हैं. दूसरी ओर, मैं एक दुबला-पतला हूं! हालांकि, मैं एक्शन कर रहा हूं, और मुझे पता था कि ये मज़ेदार हो सकता है. शुरुआत में, मेरे जैसे अभिनेताओं को कहानी कहने के इस तरीके को स्वीकार करने में परेशानी होती है क्योंकि हम हर चीज़ को तर्क पर आधारित करने की कोशिश करते हैं.

आप ऐसे शो का हिस्सा रहे हैं जो 1990 के दशक की याद दिलाते हैं. आप कैसे सुनिश्चित करते हैं कि एक फिल्म दूसरे से अलग दिखे और अलग लगे?

इनमें से फिल्म निर्माता जिस तरह से अपनी कहानी कहना चाहता है उसमें अंतर है. वासन बाला के पास चीजों को देखने का एक अलग तरीका है. राज और डीके ऐसा नहीं करते हैं, लेकिन वो अपनी खुद की काल्पनिक जगह और कल्पना बनाते हैं. जबकि आदित्य दत्त कुछ मजेदार और मनोरंजक पेश करना चाहते हैं. आप किसी भी चीज़ से पहले फिल्म निर्माता से बात करते हैं और अगर आप उनके काम से परिचित हैं, जैसे कि राम लीला के लिए संजय लीला भंसाली के मामले में तो आप जानते हैं कि वो आपसे क्या चाहते हैं. फिल्म का हर निर्देशक अलग होता है. दिबाकर बनर्जी का काम कई परतों वाला होता है और इसमें वो सब कुछ होता है जो आप देखते हैं. भंसाली भावनाओं को उभारते हैं. कभी-कभी ऐसा भी होता है जब आपके विचार आपके निर्देशक के विचारों से मेल नहीं खाते हैं.

मुझे लगता है, आपके काम का एक बड़ा पहलू ये है कि आप फ्लेक्सिबल बनें...

हाँ, ज़रूर और आप इसे अनुभव से सीखते हैं. मैंने मर्द को दर्द नहीं होता की शूटिंग के दौरान राधिका मदान में एक युवा कलाकार को देखा, जो इससे पहले कभी किसी फिल्म का हिस्सा नहीं थी. ऐसे दिन भी थे जब उसे लगातार 15-16 टेक देने पड़ते थे, लेकिन वो कभी भी इस बात से शर्मिंदा नहीं हुई और न ही उसने इसे दिल पर लिया. लेकिन ये लड़की, सुबह 3 बजे भी, इतने उत्साह के साथ काम कर रही थी जैसे कि दिन की एक अलग शुरुआत हुई हो. मैंने खुद से कहा कि मैं ये सीखना चाहता हूं कि ये कैसे करना है क्योंकि ये एक बहुत अच्छी क्वालिटी है.

मुझे यह बताइए: सह-कलाकार के रूप में कश्यप कैसे हैं?

वो बहुत शांत है और हमारे पास बातचीत करने के लिए बहुत समय था. हमने पहले ज़्यादा बात नहीं की. कल्कि से अलग होने के बाद हमारे बीच कुछ दूरी आ गई थी. क्योंकि कल्कि मेरी बहुत अच्छी दोस्त थी.

बैड कॉप की बात करें तो इस समय ये साफ है कि वेब या ओटीटी स्पेस आपके लिए बहुत अच्छा रहा है, है न? थिएटर रिलीज़ ने भी आपको सफलता दी, लेकिन आपको यहां काफी अलग भूमिकाएं मिलती हैं…

ओटीटी पर बिजनेस मॉडल काफी अलग है. सिनेमाघरों से उस पैसे को वापस कमाना वो थोड़ा रिस्क का काम है. हर फिल्म हिट नहीं होती. आप देखते हैं कि कुछ बजट केवल रिलीज़ के लिए दिए जाते हैं क्योंकि बड़े सितारे पहले कुछ दिनों में उन रिटर्न को खींच सकते हैं. सब्सक्राइबर पाने का बोझ अभिनेता पर नहीं बल्कि ओटीटी पर प्लेटफॉर्म पर होता है और यही कारण है कि स्टार को यहां फेम मिलता है. बड़े बजट की फिल्मों के साथ दर्शकों को खुश करने का सारा भार स्टार पर होता है. यही कारण है.

तो फिर बॉलीवुड आपके जैसे एक्टर के लिए अजीब जगह होगी? कोई नहीं जानता कि क्या अच्छा है, क्या बुरा है, क्या काम करता है, क्या नहीं, वगैरह...

ईमानदारी से कहूं तो मुझे ये जगह बिल्कुल भी अजीब नहीं लगती. मुझे नहीं लगता कि लोगों को भी पता है कि उन्हें क्या चाहिए, सिवाय इसके कि उन्हें बार-बार एक ही चीज़ देखना पसंद है. ये मेरे पसंदीदा रेस्टोरेंट में जाने और एक ही पिज़्ज़ा खाने जैसा है क्योंकि ये आरामदायक है. साथ ही, आप एक नई जगह आज़मा सकते हैं और कुछ बढ़िया पा सकते हैं जो आपका नया पसंदीदा बन सकता है. मेरा मतलब ये है कि ये दावा करना कि आप जानते हैं कि क्या काम करेगा और क्या नहीं, थोड़ा अलग है.

एक अभिनेता के तौर पर आपके लिए क्या ज़्यादा फायदेमंद है? शैतान, हंटर या मर्द को दर्द जैसी सफल फिल्में या बॉक्स-ऑफिस पर हिट फिल्में?

उम्म...मैं बॉक्स-ऑफिस को प्राथमिकता दूंगा, लेकिन मैं वास्तव में इन चीजों के बारे में नहीं सोचता. मैं बस मौज-मस्ती करना चाहता हूं. एक अच्छा करियर चाहता हूं और मैं जो भी करूं वो मेरे लिए सही होना चाहिए. सफलता और पैसा आता-जाता रहता हैं और अगर मुझे इनमें से कुछ भी नहीं मिलता है, तो मुझे नहीं लगता कि मैं उनके लिए अपना सिर फोड़ूंगा. मैं काफी अच्छा कर रहा हूं. इस समय मैं वास्तव में सफलता या फेम का पीछा नहीं कर रहा हूं, लेकिन अगर वे आते हैं, तो मैं उन्हें अस्वीकार नहीं करूंगा.

Read More
Next Story