
Homebound Review: जाति-धर्म से परे दोस्ती और इंसानियत की मिसाल, दिल को छू लेने वाली फिल्म
Homebound Review: नीरज घायवान की फिल्म ‘होमबाउंड’ जाति-धर्म से ऊपर उठकर दोस्ती, इंसानियत और संघर्ष की असली तस्वीर दिखाती है।
भारतीय सिनेमा में अक्सर ऐसी फिल्में बनती हैं जो हमें कुछ पल के लिए हंसाती-रुलाती हैं और फिर भुला दी जाती हैं. लेकिन कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जो आपकी आत्मा तक उतर जाती हैं और लंबे समय तक आपके साथ रहती हैं. नीरज घायवान की नई फिल्म ‘होमबाउंड’ ऐसी ही एक कृति है. ये फिल्म न केवल भावनात्मक रूप से छूती है बल्कि हमें समाज की उस सच्चाई से भी रूबरू कराती है, जिसे हम अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं. फिल्म की कहानी 2020 के लॉकडाउन की त्रासदी से प्रेरित है. जब पूरे देश में बंदिशें लगीं, तो सबसे ज्यादा पीड़ा उन मजदूरों और गरीब तबकों को झेलनी पड़ी, जिन्हें अपने गांव-घर लौटने के लिए नंगे पांव सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलना पड़ा. ये फिल्म बशारत पीर के मशहूर न्यूयॉर्क टाइम्स लेख ‘Taking Amrit Home’ से प्रेरित है. हालांकि कहानी काल्पनिक है, लेकिन दर्द और हालात बिल्कुल सच्चे लगते हैं.
शोएब और चंदन की दोस्ती
कहानी उत्तर भारत के एक छोटे से गांव की है, जहां दो दोस्त रहते हैं. शोएब (ईशान खट्टर) और चंदन (विशाल जेठवा). शोएब: उसके पिता बीमार हैं और घुटने की सर्जरी के लिए उसे तुरंत नौकरी चाहिए. चंदन: उसका सपना है कि अपनी मां के लिए पक्का घर बनाए, ताकि उसे हमेशा मजदूरी न करनी पड़े. दोनों दोस्तों का मानना है कि केवल सरकारी नौकरी ही उन्हें जाति और धर्म के भेदभाव से बचा सकती है.
जाति और धर्म का बोझ
फिल्म की असली ताकत है यह दिखाना कि कैसे जाति और धर्म का बोझ इंसान की पूरी जिंदगी पर भारी पड़ता है. चंदन अपनी जाति के कारण हर जगह अपमान सहता है. उसकी मां को स्कूल की नौकरी से सिर्फ इसलिए निकाल दिया जाता है क्योंकि गांव वाले नहीं चाहते कि उनके बच्चे उसके हाथ का बना खाना खाएं. शोएब धर्म के कारण ताने सुनता है. जब उसके दोस्त ही उसका मजाक उड़ाते हैं, तो वो टूट जाता है. इन हालातों में दोनों की दोस्ती एक-दूसरे के लिए सहारा बनती है.
दमदार अभिनय
फिल्म का दिल है इसके कलाकार. विशाल जेठवा (चंदन): उन्होंने अपने किरदार में खामोशी, गुस्सा और दर्द को इतनी बारीकी से दिखाया है कि उनकी आंखें ही पूरी कहानी कह देती हैं. ईशान खट्टर (शोएब): उन्होंने अपने किरदार में मजबूरी और रॉनेस (कच्चापन) को इतनी ईमानदारी से निभाया है कि शायद यह उनके करियर का सबसे सशक्त अभिनय है. दोनों की दोस्ती इतनी असली लगती है कि दर्शक खुद उस रिश्ते का हिस्सा महसूस करता है. भावनात्मक सीन जो तोड़ देते हैं
फिल्म में कई सीन सीधे दिल को चीर देते हैं. चंदन का मां के नौकरी से निकाले जाने का सीन. चंदन का अपना पूरा नाम बताने से डरना. सरकारी फॉर्म भरते वक्त ‘SC’ वाले कॉलम पर टिक करने की उसकी हिचकिचाहट. शोएब का अपने धर्म की वजह से टूटना और दोस्त के पास सुकून ढूंढना. ये सब हमें उस समाज की हकीकत दिखाता है, जो अक्सर हमारी नजरों से छिपी रहती है.
विजुअल्स और निर्देशन
नीरज घायवान और सिनेमैटोग्राफर प्रतीक शाह ने कैमरे से ऐसा जादू किया है कि फिल्म का हर फ्रेम एक दस्तावेज़ जैसा लगता है. लॉकडाउन के खाली रास्ते, भूख से बेहाल लोग और जातिगत भेदभाव के दृश्य – ये सब इतने असली लगते हैं कि दर्शक इन्हें भुला नहीं पाता. फिल्म की खासियत यह है कि यह संघर्ष को ग्लैमरस या रोमांटिक नहीं बनाती, बल्कि उसकी असली और कड़वी सच्चाई सामने रखती है.
निर्देशक की दृष्टि
नीरज घायवान की पिछली फिल्म ‘मसान’ पहले ही साबित कर चुकी है कि वह समाज की जटिल सच्चाइयों को बेहद संवेदनशीलता से पेश करना जानते हैं. ‘होमबाउंड’ में भी उन्होंने वही किया है. चूंकि नीरज खुद लंबे समय तक अपनी दलित पहचान से जुड़े संघर्ष से गुजरे हैं, इसलिए उनकी नजर इस कहानी को और भी प्रामाणिक और सच्चा बनाती है
बाकी कलाकार और तकनीक
मुख्य कलाकारों के अलावा बाकी सपोर्टिंग कास्ट ने भी बेहतरीन काम किया है. गांव की महिलाएं, अफसर, और स्थानीय लोग सबके छोटे-छोटे रोल फिल्म को और असली बना देते हैं. फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक और साउंड डिजाइन सीन को और भी गहराई देता है. कई जगह खामोशी ही सबसे बड़ा असर छोड़ती है.
क्यों देखें यह फिल्म?
अगर आप सोचते हैं कि फिल्में सिर्फ मनोरंजन के लिए होती हैं, तो यह आपकी सोच बदल देगी. ये फिल्म आपको हंसाती भी है, रुलाती भी है और सोचने पर मजबूर भी करती है. ‘होमबाउंड’ हमें यह सिखाती है कि असली इंसानियत जाति और धर्म से ऊपर होती है. ये एक फिल्म नहीं है, बल्कि एक अनुभव है. यह फिल्म हमें आईना दिखाती है. सवाल यह नहीं है कि हम उसमें क्या देखते हैं, बल्कि यह है कि हम उस आईने में खुद को कैसे देखते हैं. अगर आप सिनेमा को सिर्फ टाइमपास नहीं, बल्कि समाज का दस्तावेज़ मानते हैं, तो यह फिल्म आपके लिए है. नीरज घायवान की यह कृति आपके दिल और दिमाग दोनों पर गहरी छाप छोड़ जाएगी.