कैसे बॉलीवुड फिर से जीवंत कर रहा है जलियांवाला बाग हत्याकांड
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कैसे बॉलीवुड फिर से जीवंत कर रहा है जलियांवाला बाग हत्याकांड

उधम सिंह, द वेकिंग ऑफ ए नेशन और केसरी 2 में जलियांवाला बाग हत्याकांड की कहानी.


बॉलीवुड ने जलियांवाला बाग हत्याकांड को तीन अलग-अलग फिल्मों के माध्यम से दिखाने की कोशिश की है, जिसे अनायास ही एक त्रयी कहा जा सकता है. फिल्म उधम सिंह में प्रतिशोध की कहानी दिखने को मिलती है. वही द वेकिंग ऑफ ए नेशन इस नरसंहार के पीछे की ब्रिटिश साजिश को उजागर करती है और केसरी 2 इस घटना के बाद ब्रिटिश शासन के खिलाफ कानूनी लड़ाई पर केंद्रित है.

जलियांवाला बाग हत्याकांड- इतिहास का अध्याय

13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड को भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सबसे काले और महत्वपूर्ण क्षणों में गिना जाता है. ब्रिगेडियर-जनरल रेजिनाल्ड डायर ने निहत्थी भीड़ पर गोलियां चलाने का आदेश दिया, जिसमें सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए. ये घटना भारतीय जनता की स्मृतियों में गहराई से अंकित हो गई. 100 से ज्यादा सालों के बाद बॉलीवुड इस भयावह घटना के कई पहलुओं को तीन प्रमुख फिल्मों के माध्यम से जीवंत कर रहा है.

उधम सिंह बदले की आग

शूजीत सरकार द्वारा निर्देशित और विक्की कौशल अभिनीत ये फिल्म उधम सिंह की कहानी पर आधारित है, जिन्होंने ब्रिटिश अधिकारी माइकल की हत्या कर बदला लिया था. ओड्वायर वही अधिकारी थे जिन्होंने जनरल डायर के फैसले का समर्थन किया था. फिल्म में उधम सिंह की मनःस्थिति और जलियांवाला बाग की भयावहता को गहराई से दिखाया गया है. ये एक पारंपरिक बायोपिक न होकर, एक ऐसे व्यक्ति की मानसिक यात्रा है, जिसे एक भीषण त्रासदी ने बदलकर रख दिया. इसमें उधम सिंह के विदेशों में क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने ओ'ड्वायर की हत्या और जलियांवाला बाग हत्याकांड के प्रभाव को गैर-रेखीय कथा शैली में प्रस्तुत किया गया है.

द वेकिंग ऑफ ए नेशन- साजिश का पर्दाफाश

राम माधवानी द्वारा निर्देशित ये वेब सीरीज जलियांवाला बाग नरसंहार के पीछे की ब्रिटिश रणनीति और उसके राजनीतिक मकसद को उजागर करती है. ये दिखाती है कि ये नरसंहार सिर्फ जनरल डायर का निर्णय नहीं था, बल्कि ब्रिटिश सरकार द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए बनाई गई एक योजनाबद्ध साजिश थी. Sony Liv पर रिलीज हुई इस सीरीज में हंस राज नामक एक भारतीय व्यक्ति को सह-साजिशकर्ता के रूप में दिखाया गया है, जिसने ब्रिटिश अधिकारियों की सहायता की थी. कहानी चार किरदारो पर एक वकील, एक पत्रकार, एक आम आदमी और उसकी पत्नी—के नजरिए से प्रस्तुत की गई है, जिससे दर्शकों को इस त्रासदी से गहरा जुड़ाव महसूस होता है.

केसरी 2 अदालत में लड़ी गई लड़ाई

अक्षय कुमार और अनन्या पांडे अभिनीत केसरी 2 कानूनी लड़ाई की उस गाथा को प्रस्तुत करती है, जिसे सर चेट्टूर शंकरन नायर ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ ब्रिटिश हुकूमत से लड़ी थी. करण सिंह त्यागी द्वारा निर्देशित ये फिल्म, रघु पलट और पुष्पा पलट की पुस्तक द केस दैट शुक द एम्पायर पर आधारित है.

शंकरन नायर, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और एक प्रतिष्ठित वकील थे, उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों पर नरसंहार के लिए जिम्मेदारी तय करने की कोशिश की. उन्होंने माइकल ओड्वायर पर आरोप लगाया, जिसके कारण लंदन में एक ऐतिहासिक मानहानि मुकदमा चला. हालांकि, अदालत का फैसला ओड्वायर के पक्ष में गया, लेकिन इस मुकदमे ने पूरी दुनिया का ध्यान ब्रिटिश साम्राज्य की क्रूरता पर केंद्रित कर दिया और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को और मजबूती दी.

त्रयी का सामूहिक प्रभाव

हालांकि ये तीनों फिल्में जानबूझकर एक सीरीज के रूप में नहीं बनाई गई थीं, लेकिन ये मिलकर जलियांवाला बाग हत्याकांड और उसके प्रभावों का एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं. द वेकिंग ऑफ ए नेशन ब्रिटिश सरकार की साजिश को उजागर करती है.

केसरी 2

ये त्रयी महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि बॉलीवुड ने लंबे समय तक जलियांवाला बाग जैसी ऐतिहासिक घटनाओं को केंद्र में रखकर फिल्में बनाने से परहेज किया. इससे पहले गांधी और रंग दे बसंती जैसी फिल्मों में इस घटना को छोटे रूप में दिखाया गया था, लेकिन इन नई फिल्मों ने इसे विस्तार और गहराई के साथ प्रस्तुत किया है. इस तरह बॉलीवुड अब ऐतिहासिक घटनाओं को अधिक गंभीरता और प्रामाणिकता के साथ पेश कर रहा है. ये फिल्में न केवल जलियांवाला बाग हत्याकांड की यादों को ताजा कर रही हैं, बल्कि इस ऐतिहासिक घटना के बहुआयामी प्रभावों को भी उजागर कर रही हैं.

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