इंडियन 2 मूवी रिव्यू: फिल्म की कहानी में नहीं दिखा दम, लेकिन चमक उठे कमल हसन
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इंडियन 2 मूवी रिव्यू: फिल्म की कहानी में नहीं दिखा दम, लेकिन चमक उठे कमल हसन

इंडियन 2 लोगों को निराश करती है क्योंकि फिल्म में मजबूत स्टोरी देखने को नहीं मिली.


कमल हासन एक और बड़े बजट की फिल्म के साथ बड़े पर्दे पर लौट आए हैं, जिसका नाम इंडियन 2 है. इस सीक्वल में कमल हासन और एस. शंकर की जोडी एक बार फिर से नजर आई. इससे पहले दोनों ने साल 1996 में साथ काम किया था. ये जोड़ी 28 साल बाद देखने को मिली है. इस फिल्म के दो पार्ट है. पहले पार्ट को देखने के बाद फैंस को इस फिल्म की अगली कड़ी से काफी उम्मीदें हैं. सवाल ये है कि क्या शंकर और कमल दूसरे दौर में भी वही जादू दिखा पाएंगे.

इंडियन 2 की शुरुआत भोले-भाले युवाओं के एक समूह से होती है, जो देश की भ्रष्ट व्यवस्थाओं को उजागर करने और उनका मज़ाक उड़ाने के लिए एक यूट्यूब चैनल, बार्किंग डॉग्स चलाते हैं. वो फेमस आरके लक्ष्मण के कार्टून नायक, कॉमन मैन की आवाज़ हैं, जो अपने आस-पास के सभी सवाल उठाते हैं. लेकिन जब उनकी सारी कोशिशें विफल हो जाती है तो उन्होंने सभी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर हैशटैग #ComeBackIndian बनाया.

उनकी आवाज वहां पहुंचती है जहां पहुंचनी चाहिए और ताइपे में रहने वाले सेनापति तुरंत सहमत हो जाते हैं कि वो गंदगी साफ करने के लिए भारत लौट आएं. कमल हसन ने फिल्म में दमदार अभिनय किया है. जब स्टोरी कमजोर पड़ती है, तो 230 से ज़्यादा फिल्में बना चुके इस दिग्गज ने अकेले ही इंडियन 2 को अपने कंधों पर संभाल लिया है. उन्होंने क्लाइमेक्स में कई जोखिम भरे स्टंट भी किए हैं.. कमल हासन से ज्यादा सिद्धार्थ जिन्होंने फिल्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, अपने अभिनय से छाप छोड़ते हैं.

जिस तरह इंडियन में पिता और बेटे के एंगल ने भावनात्मक प्रभाव डाला था, उसी तरह यहां सिद्धार्थ और उनकी मां के एंगल ने भी अपनी छाप छोड़ी है. नेदुमुदी वेणु और विवेक जैसे दिवंगत प्रतिभाशाली अभिनेताओं को फिर से बड़े पर्दे पर जीवंत होते देखना अच्छा है. हालांकि फिल्म में रकुल प्रीत सिंह, प्रिया भवानी शंकर, बॉबी सिम्हा, एसजे सूर्या और रेणुका जैसे कलाकारों की टोली है, लेकिन कमल द्वारा निर्देशित इस फिल्म में उनके पास बड़ा स्कोर करने की बहुत गुंजाइश नहीं है.

प्रोडक्शन डिजाइन काफी साफ दिखाई दिए और एक्शन कोरियोग्राफी भी. इंडियन 2 में जो चीज काम नहीं आई, वो यह है कि स्क्रीनप्ले में कोई भी बढ़िया पल नहीं है. कई राज्यों में होने वाली विभिन्न भ्रष्ट घटनाएं और सेनापति किस तरह से अलग-अलग वर्मा कलई का इस्तेमाल करके उनमें से हर एक को मार डालता है. ये फिल्म को एक डॉक्यूमेंट्री जैसा एहसास देता है. हालांकि निर्देशक शंकर ने इन सीन को आम जनता को आकर्षित करने के लिए रोमांच से भरने की कोशिश की, लेकिन ये काम नहीं कर पाया. दिलचस्प बात ये है कि दूसरा भाग तीसरी किस्त के ट्रेलर के साथ समाप्त होता है, जो सेनापति के पिता के फ्लैशबैक के साथ अच्छा लगता है.

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