कंगना की 'इमरजेंसी' पर सेंसर बोर्ड का ब्रेक, आखिर क्यों उठ खड़ा हुआ विवाद
कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी की रिलीज टल गई है। अब अपने तय समय 6 सितंबर को यह फिल्म सिल्वर स्क्रीन पर नजर नहीं आएगी। इमरजेंसी को लेकर विवाद क्या है समझने की कोशिश करेंगे।
Emergency Film Controversy: कंगना रनौत के कई रंग हैं। वो अदाकारा, सोशल एक्टिविस्ट और राजनेता है। हिमाचल के मंडी से बीजेपी की सांसद है। विवादों से इनका चोली दामन का साथ रहा है। हाल ही में जब किसान आंदोलन वाले मुद्दे पर उन्होंने बयान जारी किया को बीजेपी बैकफुट पर आ गई। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने तलब भी किया और साफ तौर पर कहा कि आप इस तरह बयान ना दें। पार्टी ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि बयान देने के लिए कंगना अधिकृत नहीं हैं। लेकिन इस समय उनके चर्चा की वजह फिल्म इमरजेंसी है। इमरजेंसी में उन्होंने इंदिरा गांधी की भूमिका निभाई है। हालांकि इस फिल्म को लेकर आपत्ति जताई गई जिसके बाद सेंसर बोर्ड ने रिलीज के लिए हरी झंडी नहीं दी। यहां बताएंगे कि पूरा मामला क्या है।
विवाद की वजह
कंगना की फिल्म इमरजेंसी पर जब विवाद गहराने लगा तो उन्होंने वीडियो शेयर कर कैप्शन में लिखा इमरजेंसी वर्सेज फ्रीडम ऑफ एक्स्प्रेशन की लड़ाई बता डाला। अब फ्रीडम ऑफ एक्स्प्रेशन खुद में विवादित विषय हो चुका है। सामान्य तौर पर जिसके खिलाफ कार्रवाई होती है वो अपने बोल पर पहरेदारी का आरोप लगाता है वहीं दूसरा पक्ष उसी बोल को देश विरोधी,समाज विरोधी बताता है। सबसे पहले तो यह समझिए कि इमरजेंसी की पूरी कहानी क्या है। इस फिल्म में 1975 से 1977 का जिक्र है। इसमें दिखाया गया है कि किस तरह से इंदिरा ने खुद को इंडिया मान लिया।
उनके समर्थक इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा के नारे बुलंद करते थे। किस तरह से अभिव्यक्ति की आजादी को बुरी तरह कुचल दिया गया। जिन नेताओं या लोगों पर तनिक भी सरकार विरोधी होने का शक था उन्हें जेलों में ठूस दिया गया। लेकिन फिल्म में इंदिरा गांधी की हत्या का भी जिक्र है और विरोध या आपत्ति जताने वाले कह रहे हैं कि इसमें सिख समाज की गलत छवि पेश की गई है।
उनके समर्थक इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा के नारे बुलंद करते थे। किस तरह से अभिव्यक्ति की आजादी को बुरी तरह कुचल दिया गया। जिन नेताओं या लोगों पर तनिक भी सरकार विरोधी होने का शक था उन्हें जेलों में ठूस दिया गया। लेकिन फिल्म में इंदिरा गांधी की हत्या का भी जिक्र है और विरोध या आपत्ति जताने वाले कह रहे हैं कि इसमें सिख समाज की गलत छवि पेश की गई है।
अदालत में अर्जी
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (जबलपुर) में फिल्म के खिलाफ एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है, जिसमें इसकी रिलीज पर रोक लगाने की मांग की गई है। सिख संगत जबलपुर और श्री गुरु सिंह सभा इंदौर द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया है कि फिल्म ने सिख समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। याचिका में इंदौर के सरदार मंजीत सिंह भाटिया और जबलपुर के सरदार मनोहर सिंह ने हाईकोर्ट को बताया कि आपातकाल में सिखों की तस्वीर सही तरह से पेश नहीं की गई है। फिल्म में चार सिखों को खालिस्तान की मांग करते हुए हिंदुओं पर गोली चलाते हुए दिखाया गया है। जिसमें सिखों को भयावह और खतरनाक तरीके से पेश किया गया है, इससे सिख समाज की छवि पर असर पड़ता है।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (जबलपुर) में फिल्म के खिलाफ एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है, जिसमें इसकी रिलीज पर रोक लगाने की मांग की गई है। सिख संगत जबलपुर और श्री गुरु सिंह सभा इंदौर द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया है कि फिल्म ने सिख समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। याचिका में इंदौर के सरदार मंजीत सिंह भाटिया और जबलपुर के सरदार मनोहर सिंह ने हाईकोर्ट को बताया कि आपातकाल में सिखों की तस्वीर सही तरह से पेश नहीं की गई है। फिल्म में चार सिखों को खालिस्तान की मांग करते हुए हिंदुओं पर गोली चलाते हुए दिखाया गया है। जिसमें सिखों को भयावह और खतरनाक तरीके से पेश किया गया है, इससे सिख समाज की छवि पर असर पड़ता है।
रनौत के समर्थन में मुंतशिर
इन सबके बीच गीतकार मनोज मुंतशिर, कंगना रनौत के समर्थन में उतरे और सवाल किया कि क्या सिखों के आदर्श सतवंत सिंह, बेअंत सिंह हो सकते हैं। हकीकत तो यह है कि सिखों की पग में भारत का रज है जो उनके शौर्य की कहानी कहती है। सवाल यह भी है कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर विरोध और समर्थन करने की अंधी रेस में सभी लोग कूद पड़े हैं। किसी भी चीज का विरोध गलत नहीं है। लेकिन यह तो देखना होगा कि क्या आप विरोध के नाम पर दूसरे की आजादी के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहे।
इन सबके बीच गीतकार मनोज मुंतशिर, कंगना रनौत के समर्थन में उतरे और सवाल किया कि क्या सिखों के आदर्श सतवंत सिंह, बेअंत सिंह हो सकते हैं। हकीकत तो यह है कि सिखों की पग में भारत का रज है जो उनके शौर्य की कहानी कहती है। सवाल यह भी है कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर विरोध और समर्थन करने की अंधी रेस में सभी लोग कूद पड़े हैं। किसी भी चीज का विरोध गलत नहीं है। लेकिन यह तो देखना होगा कि क्या आप विरोध के नाम पर दूसरे की आजादी के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहे।
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