Kani Kusruti Interview: ‘सभी चीज़ों की जीत एक सपने जैसा लगता है’
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Kani Kusruti Interview: ‘सभी चीज़ों की जीत एक सपने जैसा लगता है’

एक्ट्रेस ने अपनी दो फिल्मों के बारे में बताया जो कान्स फिल्म फेस्टिवल में पहुंचीं. पायल कपाड़िया की ग्रैंड प्रिक्स विनर फिल्म ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट और शुचि तलाटी की गर्ल्स विल बी गर्ल्स और भी बहुत कुछ है.


पायल कपाड़िया की फिल्म ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट की लीड एक्ट्रेस में से एक कनी कुसरुति जब हमारे साथ इंटरव्यू के लिए जुड़ी तो सबसे पहले उन्होंने इस बात से ध्यान खींचा कि उनकी मुस्कान लाजवाब है. कान्स फिल्म फेस्टिवल की अपनी तूफानी यात्रा पूरी करने के बाद कुसरुति सीधा केरल में एक सीरीज की शूटिंग में जुट गई. उनके सरनेम कुसरुति का मलयालम में अर्थ है 'शरारती' उनकी आंखों में एक ऐसी चमक है जो एक्ट्रेस की शरारती नेचर को दिखाती है. जब वो बोलती हैं, तो उनकी बातचीत में हंसी के साथ-साथ एक चमक भी होती है. एक्ट्रेस अपने विचार को लेकर काफी स्पष्ट हैं. ये बात अभी पूरी तरह समझ में नहीं आई ये यात्रा इतनी छोटी थी कि ये लगभग एक सपने जैसा लगता है. उन्होंने द फेडरल को बताया कि, रेड कार्पेट पर कपाड़िया, दिव्या प्रभा, छाया कदम और हृदु हारून के साथ अपनी खुशी के बारे में बताते हुए और उस समय को याद करते हुए अपना एक्सपीरियंस शेयर किया. जब उनकी फिल्म को ग्रैंड प्रिक्स के लिए विजेता घोषित किया गया था.

उन्होंने इंटरव्यू में बताया कि, हम सभी वाकई बहुत खुश थे खास तौर पर इसलिए क्योंकि मेरा मानना है कि कपाड़िया वाकई इसकी हकदार थीं. इसलिए नहीं कि मैं उनकी फिल्म का हिस्सा थी बल्कि इसलिए क्योंकि उनकी अपनी आवाज़ है. कुसरुति ने आगे कहा, उन्होंने फिल्म ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट में मलयाली नर्स प्रभा का किरदार निभाया है. मुंबई और रत्नागिरी में ये फिल्म आए दिव के संघर्षों के दौरान उभरने वाले चीजों को लेकर है. जो हम आमतौर पर देखते हैं. कुसरुति ने शांत भाव से इस किरदार को निभाया है. वो याद करती हैं कि जब उन्होंने स्क्रिप्ट पढ़ी, तो उन्हें ये सबसे हटकर लगी थी. साथ ही ये फिल्म हमें बड़ा होने का एहसास कराती है, जो कभी-कभी करना बहुत मुश्किल होता है.

भारत में महिलाओं की जीत

विजेता घोषित होने से पहले ही कुसरुति, जिन्हें अपने सह-कलाकारों की तरह सिर्फ़ फ़ेस्टिवल में ही फ़िल्म देखने का मौक़ा मिला था. कान्स में फ़िल्म के इस चयन से वो बहुत ख़ुश थीं. जब कान्स जैसे फ़ेस्टिवल में किसी फ़िल्म को चुना जाता है, तो मुझे उम्मीद होती है कि फ़िल्म में कुछ नया या अनोखा होगा. कुछ ऐसा जिसे मैं अपने साथ घर ले जाऊंगी. मैं ये जानने के लिए भी उत्सुक थी कि निर्देशन ने स्क्रिप्ट के पार्ट पर घ्यान दिया की नहीं और मुझे ये देखकर बहुत हैरानी हुई कि निर्देशन के स्क्रिप्ट पार्ट पर ध्यान दिया.

उन्होंने आगे बताया कि, कान्स में उनके इस पल को खास बनाने वाली बात ये थी कि कपाड़िया ने फिल्म के किरदारों को सीधा मंच पर बुलाया. इस समय को कुसरुति को खोना नहीं था. इस फिल्म ने वो हासिल किया जो पिछले 30 सालों में किसी भी भारतीय फिल्म ने नहीं किया. ये भी एक बड़ी बात थी कि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री से हम लोग शामिल हुए. मेरे लिए ये एक सबसे अलग एहसास था. मुझे लगा कि ये हम सभी के लिए था. ऐसा लगा कि ये जीत भारत की सभी महिलाओं की जीत है.

फिल्म तीन महिला किरदारों की यात्रा को दर्शाती है और उनकी एकजुटता, प्यार और शादी के साथ उनके संघर्ष और एक नए शहर में जीवित रहने की कठिनाइयों को शानदार ढंग से पेश करती है. इंटरव्यू के दौरान हमने उनसे पूछा कि क्या कोई पुरुष निर्देशक इन बारीकियों को इतनी अच्छी तरह से संभाल सकता था. तो उन्होंने कहा, जो खुद को केवल महिला निर्देशकों के साथ काम करने तक सीमित नहीं रखता. यहां पर किसी महिला या परुष को लेकर बात नहीं चल रही. मुझे ऐसा लगता है कि एक पुरुष निर्देशक भी महिला की तरह दिख सकता है. पिछले कुछ सालों में उन्हें कई अलग-अलग महिला अभिनेताओं और निर्देशकों के साथ काम करने का सौभाग्य मिला है. ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट के सेट पर ज़्यादातर महिलाएं ही थीं.

पायल की फिल्म में महिला किरदारों का सफर एक-दूसरे को शामिल करता हैं. उनका सफर एक तरह की दोस्ती थी. फिल्म उन सभी तरह के बंधनों के बारे में है जो तब बनते हैं जब आप अपने जन्म स्थान से बहुत दूर होते हैं. एक ऐसे शहर में काम करते हैं जहां बहुत सारी आज़ादी मिलती है. इन रिश्तों में वे भी शामिल हैं जिनमें आप दूसरे की बात सुनने और अपनी पुरानी मान्यताओं या कुछ सामाजिक रूप से कुछ बातों पर विश्वास को छोड़ देते हैं.

कुसरुति इस बात पर जोर देती हैं कि फिल्म किस तरह अपने किरदारों के विपरीत अनुभवों को बखूबी दर्शाती है. कुछ लोगों के लिए, पहले की तुलना में ज़्यादा आज़ादी वाली जगह पर होना आश्चर्यजनक है. दूसरों के लिए ये बहुत ज़्यादा बोझिल हो सकता है. शहर में रहने और जीवित रहने के लिए आपको बहुत सारे पैसे की ज़रूरत होती है. यहां सिर्फ़ महिला किरदारों की बात नहीं है, बल्कि ज़्यादातर मुख्य किरदार के लिए भी हैं. अपने-अपने तरीके से जीवित रहने की कोशिश कर रहे हैं. शूटिंग के दौरान, महिलाओं के बीच एक ख़ास तरह की दोस्ती विकसित हुई.

ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट के विजेता घोषित होने से पहले ही कुसरुति ने दिव्या जॉन द्वारा डिजाइन की गई सबसे अलग ड्रेस पहनकर सुर्खियां बटोरी थीं. मुझे नहीं लगा कि मैं कोई आम काम कर रही हूं. क्योंकि ऐसे बहुत से कलाकार है जिन्होंने अलग-अलग तरीकों से अपने लुक से सुर्खियां बटोरी.

मैं कैंसल कल्चर के खिलाफ हूं. ये ऐसी चीज नहीं है जिसे मैं तब तक सराहती हूं जब तक कि कोई व्यक्ति कई तरह का गंभीर उत्पीड़क न हो. अगर कुछ लोगों को पछतावा है कि उन्होंने क्या गलत किया है और वे सही रास्ता अपनाना चाहते हैं, तो मैं उन्हें खुद को बेहतर बनाने का मौका देना चाहूंगी. बिरयानी करने की उनकी एक वजह थी कि उस समय उनकी आर्थिक स्थिति सहीं नहीं थी. पिछले दो या तीन सालों में मुझे कुछ आर्थिक आजादी मिली है और मैं कम से कम पैसे की खातिर कुछ ऑफर न लेने का विकल्प चुन सकती हूं. बहुत से लोग ये नहीं जानते कि मैं किन-किन परिस्थितियों को सहा है.

कुसरुति इन दिनों मलयालम वेबसीरीज आइज की शूटिंग कर रही हैं, जिसका निर्देशन मनु अशोकन ने किया है. जो एसिड अटैक सर्वाइवर्स और थ्रिलर जैसी फिल्मों के लिए जाने जाते हैं. केरल के कई सिनेप्रेमियों की तरह वो भी सिनेमा के साथ बड़ी हुई हैं. जब उन्होंने एक थिएटर में काम करना शुरु किया तो वो केजी जॉर्ज जैसे फेमस मलयालम निर्देशकों के साथ काम करना चाहती थीं, जिनका पिछले साल निधन हो गया था. साथ ही मैं पी. पद्मराजन के साथ कुछ फिल्में करना चाहती हूं. उनकी फिल्मों में उनकी कहानी कहने का तरीका पसंद है. एक एक्ट्रेस के रूप में मैं उनके कुछ किरदार निभाना पसंद करती. वो फ्रांस एक्टर डेनी लावंट को अपना आदर्श मानती हैं. मुझे उनका लुक काफी पसंद है. इसी के साथ वो चार्ली चैपलिन, जिम कैरी और जगती श्रीकुमार जैसे सितारों की एक्टिंग खूब पसंद करती हैं. जिस तरह से वे अभिनय करते हैं, उसमें कुछ पागलपन है.

कुसरुति की एक और फिल्म थी. शुचि तलाटी जो पहली फीचर फिल्म गर्ल्स विल बी गर्ल्स थी. इस फिल्म में ऋचा चड्ढा और अली फजल का पहला प्रोडक्शन था. जिसे कान्स में दिखाया गया था. ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट की तरह इसमें भी नारीवादी पहलू दिखाए गए थे. स्क्रिप्ट पर अपनी प्रतिक्रिया को याद करते हुए उन्होंने कहा था कि, जब मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी, तो मुझे ये समझ में नहीं आया था कि मैंने कास्टिंग डायरेक्टर से बात की, जिन्होंने कहा, शुचि आपको वाकई पसंद करती हैं, लेकिन मैं उलझन में थी क्योंकि मैंने इसे अपने तरीके से समझा. शुचि से फोन पर बात करने के बाद उनका नजरिया बदल गया था. जिस पल मैंने उनसे बात की, मुझे लगा कि यह कुछ अलग है. मुझे एहसास हुआ कि एक अभिनेता के रूप में आगे बढ़ने का सही मौका है.

(इन स्टोरी का हिंदी अनुवाद कोमल गौतम द्वारा किया गया है)

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