
Metro In Dino Review: टूटते-बनते रिश्तों का इमोशनल सफर, संगीत- इमोशन्स से सजी है ये फिल्म
अनुराग बसु की नई फिल्म मेट्रो इन दिनों रिश्तों की सच्चाई, प्यार और इमोशन्स से भरी एक म्यूजिकल कहानी है. जानिए इस फिल्म में क्या है खास और क्यों ये आपके दिल को छू सकती है.
‘मेट्रो… इन दिनों’ अनुराग बसु की एक दिल को छूने वाली फिल्म है, जो 4 जुलाई को सिनेमाघरों में रिलीज हुई है. ये फिल्म उन लोगों के लिए है जो प्यार, रिश्तों और भावनाओं से भरी कोई सच्ची कहानी देखना चाहते हैं. ये सिर्फ एक म्यूजिकल फिल्म नहीं है, बल्कि रिश्तों के बदलते रंगों और समय के साथ आए बदलावों को बहुत खूबसूरती से दर्शाती है. फिल्म के किरदार अपने दिल की बात गानों के जरिए कहते हैं, जो सीधे दर्शकों के दिल में उतर जाते हैं.
कहानी की शुरुआत होती है काजोल घोष (कोंकणा सेन शर्मा) और मोंटी (पंकज त्रिपाठी) से, जो मुंबई में रहते हैं. एक होली पार्टी के दौरान मोंटी और उनके दोस्त एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर पर बात करते हैं, जिससे काजोल को अपने रिश्ते की सच्चाई का एहसास होता है. काजोल की मां शिबानी घोष (नीना गुप्ता), जो पुणे में हैं, एक लंबी शादी में सम्मान की तलाश कर रही हैं. कॉलेज रीयूनियन उन्हें एक नई शुरुआत का मौका देता है.
दिल्ली में रहने वाली चुम्की (सारा अली खान) अपने बॉयफ्रेंड आनंद के साथ ट्रस्ट की प्रॉब्लम से जूझ रही है, तभी उसकी जिंदगी में पार्थ (आदित्य रॉय कपूर) की एंट्री होती है. इसी तरह बैंगलोर में रहने वाले आकाश (अली फजल) और श्रुति (फातिमा सना शेख) शादी और करियर को बैलेंस करने की कोशिश कर रहे हैं.
इन सभी कहानियों को अनुराग बसु ने बहुत ही बारीकी और संवेदनशीलता के साथ जोड़ा है, जिससे फिल्म एक सुंदर माला की तरह लगती है. फिल्म का संगीत इसकी जान है. प्रीतम, पापोन और राघव चैतन्य का म्यूजिक कहानी के हर पल को और भी असरदार बना देता है. गाने सिर्फ बैकग्राउंड नहीं, बल्कि कहानी की आत्मा हैं.
पंकज त्रिपाठी ने मोंटी के रोल में कमाल कर दिया है. उनकी मासूमियत और कॉमिक टाइमिंग फिल्म में जान डालती है. कोंकणा सेन शर्मा का किरदार एक सशक्त महिला का है, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया है. नीना गुप्ता, अली फजल, फातिमा और अनुपम खेर जैसे कलाकारों ने भी अपने किरदारों को पूरी ईमानदारी से जिया है. हालांकि सारा अली खान और आदित्य रॉय कपूर की जोड़ी उतनी दमदार नहीं लगी, और सारा की एक्टिंग थोड़ी कमजोर महसूस होती है.
फिल्म का दूसरा हाफ थोड़ा खिंचता है, लेकिन निर्देशक ने किसी भी कहानी को अधूरा नहीं छोड़ा. ‘मेट्रो इन दिनों’ एक ऐसी फील-गुड फिल्म है जो ये दिखाती है कि हर रिश्ता परफेक्ट नहीं होता, लेकिन उसकी खूबसूरती उसी अधूरापन में होती है. ये फिल्म आपको हंसाएगी, रुलाएगी और अंत में सोचने पर मजबूर करेगी.