Mirzapur Season 3 Review: खून से सनी ‘सिंहासन’ की कहानी
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Mirzapur Season 3 Review: खून से सनी ‘सिंहासन’ की कहानी

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के बदनाम इलाकों पर बनी क्राइम थ्रिलर सीरीज मिर्जापुर का तीसरा सीजन कुछ हिस्सों में तो चमकता हुआ दिखाई दिया, लेकिन निराशाजनक भी हाथ लगी.


जब उत्तर प्रदेश के इलाकों में स्थापित साहस, खून-खराबे और हिम्मत की गाथा मिर्जापुर का पहला सीजन साल 2018 में रिलीज हुआ था. फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर की भारी सफलता से प्रेरणा लेते हुए. वर्चस्व की लड़ाई की कहानी खूंखार अपराधियों, भ्रष्ट पुलिस और राजनेताओं के बीच सांठगांठ की सीरीज है. मिर्जापुर के माफिया राजा अखंडानंद त्रिपाठी उर्फ कालीन भैया पूर्वांचल क्षेत्र के व्यवसाय और अवैध हथियारों के व्यापार पर नियंत्रण रखते थे. उसका गुस्सैल, गाली-गलौज करने वाला, सत्ता का भूखा बेटा मुन्ना त्रिपाठी जिसने अपने तीखे अभिनय और अपने मजाकिया एक-लाइनरों से फैंस का दिल जीत लिया था. साथ ही मुन्ना सीरीज में अपने पिता के साम्राज्य को विरासत में पाने के लिए संघर्ष करता दिखाई दिया था. वो हमेशा अक्सर अपनी योग्यता को साबित करने के लिए हिंसा का सहारा लेता था.

लेकिन दो भाई गुड्डू और बबलू पंडित मुन्ना के रास्ते में तब आते हैं जब वो कालीन भैया के साथ काम करने लगते हैं. सीजन 1 और सीजन 2 में हमने गुड्डू और गोलू गुप्ता को जीवित रहते हुए देखा और अपने भाई और बहन की मौत का बदला लेने की आग में जलते हुए देखा है. उन्होंने अपनी बदले की आग में कई लोगों को गोलियों से छलनी किया. कालीन भैया की शक्ति और धन की क्रूर दुनिया में वफादारी बदलती रहती है. जब सीजन 2 खत्म होता है, तो सरगना का वफादार मकबूल और उनकी पत्नी बीना त्रिपाठी अपनी खुद की परस्पर विरोधी वफादारी से जूझते हैं. बीना अपने पिछले दुखों से पीड़ित होती है. साथ ही वो त्रिपाठी परिवार से बदला लेना चाहती थी.

मिर्जापुर ने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर एक अलग की इतिहास रच दिया है. साथ ही इस सीरीज ने ये साबित कर दिया कि अगर एक अच्छी कहानी को अच्छे से बताया जाए तो दर्शक गाली-गलौज और हिंसा का कॉकटेल स्वीकार करने के लिए तैयार हैं. पहला सीज़न इतना फेमस हुआ कि सोशल मीडिया मिर्जापुर मीम्स से भर गया. इस सीरीज ने लोगों के दिलों पर राज किया. जिस तरह छह साल पहले गैंग्स ऑफ वासेपुर ने किया था. सीजन 1 पूरी तरह से सफल रहा, तो सीजन 2 में चीजें गड़बड़ होने लगीं. वहीं सीजन 3 में गुड्डू और गोलू अपने आप में जानवर बनते दिखाई दिए है. मुन्ना की मौत के बाद और कालीन भैया के अंडरग्राउंड होने के बाद वो अलग ही स्वॉग में दिखाई दिए. उन्होंने मिर्जापुर सिंहासन पर अपनी पकड़ मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया.

इस बीच कालीन भैया के भतीजे शरद शुक्ला जिनके पिता जौनपुर के सरदार रति शंकर शुक्ला सीजन 1 में गुड्डू ने हत्या कर दी थी. वो बदला लेने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार थे और मुन्ना की विधवा पत्नी और उत्तर प्रदेश की सीएम माधुरी यादव के साथ मिर्जापुर की गद्दी पर दावा ठोकने की साजिश रचते हैं. शो में एक समय पर गोलू गुड्डू को बताती है कि उसे निर्णय लेते समय केवल ताकत के बजाय दिमाग का इस्तेमाल करने की आवश्यकता है, लेकिन गुड्डू खुद को नष्ट करते हुए दिखाई देता है.

सीजन 3 पूरा सीजन एक ही स्टोरी लाइन में चलता हुआ दिखाई देता है. बेशक, हमेशा की तरह एड्रेनालाईन से भरपूर एक्शन और खून-खराबा है और लेखक एक मोड़ और वहां एक लालच पेश करते हैं, लेकिन ये सीरीज कुछ खास कमाल नहीं कर पाई. इस सीजन में मुन्ना की कमी सभी को खल रही है. साथ ही पंकज त्रिपाठी के कालीन भैया की कमी भी खली. इस सीजन में फीमेल रोल को काफी बड़ा के दिखाया गया है. गोलू का किरदार उतना जच के सामने नहीं आया जैसे कि पिछले की दो सीजन नें आया था. इसी तरह ईशा तलवार की एक्टिंग लोगों को खूब पसंद आई. वहीं बीना त्रिपाठी सीरीज की सबसे दिलचस्प किरदार में से एक हैं. लेकिन उनका स्क्रीन स्पेस ज्यादा नहीं देखने को मिला. अली फजल और श्वेता त्रिपाठी एक हद तक हमें बांधे रखते हैं. हमें कुछ सीन हंसाने पर मजबूर कर देते है और सोचने पर मजबूर करते है कि ये क्या मजाक है, लेकिन ये 10 घंटे की सीरीज देखना पर्याप्त नहीं.

तीसरा सीजन अपनी ही असफलता का शिकार हो जाता है. ऐसा लगता है कि ये खुद को पीछे छोड़ने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अपनी ही महत्वाकांक्षा से लड़खड़ा दिखाई दे रहा है. अपने तीसरे सीजन में किसी को ये सलाह देना कि आप इस सीरीज को देखना शायद की कोई कर पाए. ऐसा लगता है कि ये सीरीज एक मौका चूक गया. तो, क्या आपको इसे देखना चाहिए? अगर आप इस सीरिज के कट्टर फैन हैं, तो आपको इसके 10 एपिसोड में आनंद लेने के लिए शायद कुछ न कुछ मिल ही जाएगा. बस यही उम्मीद है कि सीजन 4 इसे बचाए पाए. मिर्जापुर सीजन 3 अमेजन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीमिंग कर रहा है.

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