
Oscar Winners List 2025: जब भारतीय सिनेमा ने हॉलीवुड पर जीत हासिल की
2025 के ऑस्कर विजेताओं ने ये साबित कर दिया कि इंडियन फिल्में अब सिर्फ चुनौती देने वाली नहीं रहीं, बल्कि वो सिनेमा की असली विजेता बन चुकी हैं.
‘अनोरा’ और ‘द ब्रूटलिस्ट’ जैसी फिल्मों ने कुल आठ पुरस्कार जीतकर ये दिखा दिया कि अब अकादमी ऑस्कर अवॉर्ड दृश्यों की बजाय दमदार कहानियों को ज्यादा महत्व दे रही है. जब उन्होंने ‘अनोरा’ के लिए बेस्ट पिक्चर का अवार्ड लिया, तो उन्होंने इंडियन फिल्मों के बढ़ते प्रभाव को फोकस किया. इस बार बड़े बजट की हॉलीवुड फिल्में पीछे रह गईं और कम बजट की फिल्मों ने पूरी तरह से बाजी मार ली. ‘अनोरा,’ ‘द ब्रूटलिस्ट,’ ‘ए रियल पेन,’ ‘द सब्सटेंस,’ ‘एमिलिया पेरेज,’ ‘फ्लो,’ और ‘कॉनक्लेव’ जैसी फिल्मों ने अवॉर्ड जीते. जबकि हॉलीवुड की बड़ी बजट की फिल्मों में सिर्फ ‘ड्यून: पार्ट टू’ और ‘विकेड’ ही कुछ सम्मान बचा सकीं. ‘द ब्रूटलिस्ट’ और ‘अनोरा’ ने मिलकर कुल आठ अवॉर्ड जीते, जिससे ये रात पूरी तरह इंडियन फिल्मों के नाम रही.
एक ऐतिहासिक बदलाव
इंडियन फिल्मों के इस प्रभाव की शुरुआत साल 2017 में हुई थी, जब ‘मूनलाइट’ ने सभी को चौंकाते हुए ‘ला ला लैंड’ को हराकर बेस्ट पिक्चर जीता. ये सिर्फ एक गलती नहीं थी, बल्कि ये ऑस्कर में इंडियन सिनेमा की ओर बढ़ते रुझान की शुरुआत थी. साल 2020 में ‘पैरासाइट’ ने इतिहास रचते हुए पहली गैर-अंग्रेजी भाषा की फिल्म के रूप में बेस्ट पिक्चर जीता, जिससे ये स्पष्ट हो गया कि सशक्त कहानी किसी भी भाषा की सीमा को पार कर सकती है. इसके बाद ‘नोमैडलैंड,’ ‘CODA,’ और ‘एवरीथिंग एवरीवेयर ऑल एट वन्स’ जैसी फिल्मों ने इस बदलाव को और मजबूत किया, जिससे ये सिद्ध हुआ कि बड़े बजट की फिल्मों के लिए ऑस्कर जीतना अब और कठिन हो गया है.
क्यों बढ़ा इंडियन सिनेमा का प्रभाव?
ऑस्कर की इस बदली हुई तस्वीर के पीछे कई कारण हैं, जिनमें सबसे प्रमुख है सामाजिक रूप से प्रासंगिक कहानियों को बढ़ावा देना. ‘अनोरा,’ ‘द ब्रूटलिस्ट,’ और ‘द सब्सटेंस’ जैसी फिल्मों ने प्रवासन, सामाजिक स्वीकार्यता और आकांक्षाओं जैसे विषयों को प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किय. इन फिल्मों को पहले ही वेनिस, कान्स, सनडांस, ट्रिबेका और बुसान जैसे प्रतिष्ठित फिल्म महोत्सवों में सराहा गया था, जिससे उन्हें ऑस्कर में भी बढ़त मिली. दूसरी ओर बड़े बजट की स्टूडियो फिल्में केवल बॉक्स ऑफिस की कमाई पर ध्यान देती रहीं और सुरक्षित दायरे में रहकर ही फिल्में बनाती रहीं. हालांकि, क्रिस्टोफर नोलन और डेनिस विलेन्यूवे जैसे फिल्मकारों ने यह साबित किया कि जब कला और व्यावसायिकता का सही संतुलन बनाया जाए, तो बड़े बजट की फिल्में भी ऑस्कर जीत सकती हैं.
स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स का योगदान
इंडियन फिल्मों की सफलता में स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण रही. ‘एमिलिया पेरेज’ को नेटफ्लिक्स का समर्थन मिला, जबकि ‘द सब्सटेंस’ को मूबी ने प्रमोट किया. इससे ये स्पष्ट हो गया कि डिजिटल प्लेटफॉर्म अब अवॉर्ड जीतने वाली फिल्मों को आकार देने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. इसके अलावा नीऑन और A24 जैसी प्रोडक्शन कंपनियों ने भी इंडियन सिनेमा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया. नीऑन ने ‘पैरासाइट,’ ‘आई, टोन्या,’ ‘ट्राएंगल ऑफ सैडनेस’ जैसी ऑस्कर विजेता फिल्में दी हैं, जबकि A24 ‘एवरीथिंग एवरीवेयर ऑल एट वन्स,’ ‘लेडी बर्ड,’ और ‘मूनलाइट’ जैसी चर्चित फिल्मों को समर्थन दे चुकी है.
जोखिम उठाने वालों की जीत
ऑस्कर में इंडियन फिल्मों और बड़े बजट की फिल्मों की टक्कर ये दिखाती है कि अब सिनेमा सिर्फ सीन से नहीं, बल्कि कहानी और कलात्मकता से तय होती है. भले ही हॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर फिल्में बॉक्स ऑफिस पर राज कर रही हों, लेकिन ऑस्कर में इंडियन फिल्मों का बोलबाला साबित करता है कि दमदार कहानी और रचनात्मकता ज्यादा मायने रखती है, आने वाले सालों में भी ऑस्कर उन फिल्मों को सम्मानित करता रहेगा, जो जोखिम उठाकर नए और अनोखे एंगल को पेश करेंगी. फिलहाल इंडियन सिनेमा सुर्खियों में है और ये साबित कर चुका है कि असली जीत हमेशा कहानी की होती है, न कि सिर्फ बड़े बजट की.