सारेजहां से अच्छा रिव्यू
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सारे जहां से अच्छा रिव्यू: जासूसों की कहानी, थ्रिल में कमी

सारे जहां से अच्छा गुमनाम जासूसों की कहानी है. दमदार कलाकारों के बावजूद पहले सीजन में थ्रिल की कमी और कमजोर क्लाइमेक्स कहानी को अधूरा छोड़ते हैं.


इंडिपेंडेंस डे वीक पर रिलीज हुई वेब सीरीज सारे जहां से अच्छा गुमनाम जासूसों की दुनिया पर आधारित है. कुल छह एपिसोड वाली इस सीरीज में प्रतीक गांधी, सनी हिंदुजा, रजत कपूर, कृतिका कामरा और तिलोत्तमा शोम जैसे मंझे हुए कलाकार नजर आते हैं. गौरव शुक्ला और भावेश मंडालिया द्वारा लिखित और सुमित पुरोहित के निर्देशन में बनी यह कहानी सच्ची घटनाओं से प्रेरित है.

कहानी

सीरीज 1970 के दशक में सेट है, जब अमेरिका, रूस और चीन परमाणु हथियार बनाने की दौड़ में थे. भारत के वैज्ञानिक डॉ. होमी जहांगीर भाभा भी देश की सुरक्षा के लिए परमाणु बम बनाने के पक्ष में थे. एक इंटरव्यू में वे 18 महीने में भारत को न्यूक्लियर पावर बनाने की बात कहते हैं, लेकिन कुछ समय बाद एक विमान हादसे में उनकी मौत हो जाती है. भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ का एजेंट विष्णु शंकर (प्रतीक गांधी) इस हादसे को रोकने में असफल रहता है. इसी बीच रॉ के प्रमुख आर.एन. काओ (रजत कपूर) को पता चलता है कि 1971 के युद्ध में हार के बाद पाकिस्तानी राष्ट्रपति भुट्टो (हेमंत खेर) गुप्त रूप से परमाणु बम बनाने की तैयारी कर रहे हैं. मिशन की जिम्मेदारी आईएसआई प्रमुख मुर्तजा मलिक (सनी हिंदुजा) को सौंपी जाती है, जबकि विष्णु को इस्लामाबाद में राजनयिक के रूप में तैनात किया जाता है, ताकि पाकिस्तानी मंसूबों को नाकाम किया जा सके.

मजबूत और कमजोर पहलू

सीरीज पेशेवर जासूसों की कार्यशैली के साथ उनकी निजी जिंदगी के द्वंद्व को भी दिखाती है. इस बार पाकिस्तानी पक्ष को सिर्फ औपचारिक संवादों तक सीमित नहीं रखा गया है, बल्कि मुर्तजा के जरिए भारतीय जासूसों पर कसते शिकंजे को भी दर्शाया गया है. विष्णु और मुर्तजा का आमना-सामना दिलचस्प है, लेकिन इसे और रोमांचक बनाया जा सकता था. पहले तीन एपिसोड सधे हुए अंदाज में आगे बढ़ते हैं और कहानी अमेरिका, रूस, फ्रांस सहित कई देशों तक जाती है. हालांकि, ‘शह और मात’ के इस खेल में थ्रिल की कमी खलती है. कुछ उप-कथानक तेजी से सुलझ जाते हैं, जिससे यथार्थ का अभाव महसूस होता है. कुछ पात्र जैसे फातिमा (कृतिका कामरा) रोचक हैं, लेकिन उनके किरदार में गहराई नहीं है.

अभिनय

प्रतीक गांधी तेज-तर्रार एजेंट विष्णु शंकर के रूप में प्रभावी हैं. वे अपने किरदार के पेशेवर रवैये और निजी संघर्षों को सहजता से जीते हैं. सनी हिंदुजा आईएसआई प्रमुख के तौर पर कठोर और मानवीय, दोनों रूपों में प्रभाव डालते हैं. अनूप सोनी, सुहैल नय्यर और तिलोत्तमा शोम भी अपने-अपने किरदारों में दमदार हैं. कुणाल ठाकुर छोटी भूमिका में भी असर छोड़ते हैं.

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