Shakhahaari Movie Review: Sandeep Sankad की मर्डर मिस्ट्री फिल्म से दर्शक हुए निराश
संदीप सनकाद की कन्नड़ फिल्म शाखाहारी हाल ही में अमेज़ॅन प्राइम वीडियो पर रिलीज की गई है. फिल्म आपको एक बेहतरीन सिमैटिक एक्सपीरिएंस देने का वादा करती है.
साल 2024 की शुरुआत फरवरी में रिलीज़ हुई कन्नड़ फिल्म शाखाहारी अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज कर दी गई है. कन्नड फिल्म शाखाहारी के पीछे का कॉन्सेप्ट काफी दिलचस्प है. ये एक मर्डर मिस्ट्री और थ्रिलर का काफी जबरदस्त कॉम्बिनेशन है. जिसकी कहनी एक होटल के मालिक, एक पुलिस वाले और एक जेल से भागे हुए कैदी के ईर्द गिर्द घूमती है. जिसमें लोग एक छोटे से गांव के रेस्तरां के भीतर रहस्यमय तरीके से गायब हो जाते हैं.
जैसा कि अक्सर होता है, किसी फिल्म में किसी दिलचस्प कहानी को अगर जिंदा रखना है तो उसकी स्टोरी लाइन भी उसी के हिसाब से डिजाइन की जाती है. ऐसा ही कुछ फिल्म में दर्शकों को देखने को मिला. हालांकि, जब कोई व्यक्ति किसी सोच से बहुत अधिक प्रभावित हो जाता है, तो उसे फिल्म में बदलना चुनौतीपूर्ण हो जाता है. इसी संघर्ष का सामना निर्देशक संदीप सनकाद ने शाखाहारी फिल्म के लिए किया. थ्रिलर फिल्म की स्टोरी और दर्शकों का तालमेल रखना ये सबसे कठीन कार्य है. संदीप सनकाद ने इस फिल्म को एक अलग दृष्टिकोण से देखा था.
कहानी का आधार सीधा-सादा है. एक गांव का रसोइया रघु एक जर्जर जगह में एक छोटा सा होटल चलाता है. फिल्म जैसे- जैसे आगे बढ़ते ही वो खुद को दुविधा में पाता है जब एक हत्या का आरोपी पुलिस स्टेशन से भागने के बाद उसकी दुकान को छिपने के लिए इस्तेमाल करता है. सब-इंस्पेक्टर गोपालकृष्ण देशपांडे, जो उस केस को देखता है, वह भी अपने निजी मुद्दों से जूझ रहा होता है. उसकी पत्नी एक गंभीर बीमारी से जूझ रही होती है.
किसी फिल्म को मनोरंजक बनाने के लिए, खास तौर पर जब कहानी कहने के लिए थ्रिलर शैली का इस्तेमाल किया जाता है, तो निर्देशक को खुद को कम अभिनेताओं तक सीमित रखना चाहिए और कथन पर बहुत ज़्यादा ध्यान देना चाहिए। इसलिए, कुछ उप-कथानक हटाए जा सकते थे क्योंकि आप सोचते रहते हैं कि ये कहाँ ले जा रहे हैं, दर्शकों का ध्यान मुख्य कथा से हटाते हैं और फिल्म के प्रभाव को कम करते हैं। निर्देशक शायद उन्हें रूपकों के रूप में इस्तेमाल करना चाहते थे, लेकिन ऐसा होने के लिए, पटकथा लेखकों को दृश्यों को प्रभावी बनाने के लिए और अधिक निवेश करने की ज़रूरत थी।
अधेड़ उम्र का रसोइया हर दिन बस में एक महिला की एक झलक पाने के लिए इंतजार करता है, जिसके बारे में हमें बहुत बाद में पता चलता है कि वो उससे शादी करना चाहती थी, लेकिन उसके माता-पिता के उसके फैसले के विरोध के कारण ऐसा नहीं हो सका. फिल्म के अंत में वो अपने बदले के कारण अपने रिश्ते को फिर से जिंदा करने की कोशिश में उसके होटल पर आती है, लेकिन ग्राहकों की भीड़ उन्हें बात करने से रोकती है. इस सीन को और अधिक नाजुक ढंग से पेश किया जा सकता था, लेकिन रघु ने इमोशन को अच्छी तरह से व्यक्त करने में संघर्ष किया, जिससे दर्शकों को सहानुभूति के बजाय अधिक चिढ़ हुई.
रघु, जो फिल्म का मुख्य किरदार है, वो अपनी भूमिका से पूरी तरह से जुड़ने में विफल रहता है, या तो खराब लिखी गई स्क्रिप्ट या उसकी खुद की रुचि की कमी. उसका किरदार लगातार अपने ग्राहकों से नाराज़ रहता है, जिससे दर्शक इस तरह के व्यवहार के पीछे के कारण के बारे में सोचते रहते हैं. इसके अलावा ये हैरान करने वाला है कि एक ग्राहक को छोड़कर किसी जलते हुए मांस की गंध का एहसास नहीं होता. ये एक स्पॉइलर के रूप में काम कर रहा था, लेकिन ये फिल्म की स्क्रिप्ट की कमज़ोर नींव को देखाती है.
जैसा कि अल्फ्रेड हिचकॉक ने एक बार एक इंटरव्यू में लेखक फ्रांकोइस ट्रूफ़ोट से कहा था, सस्पेंस के लिए ज़रूरी है कि दर्शक इस बात से अवगत हों कि भयानक घटना घट सकती है और फिर उन्हें एक ऐसे तार पर लटकाए रखें जो तनाव पैदा करता है. हाथापाई या थप्पड़ हमेशा मौत की ओर नहीं ले जाता है, लेकिन अगर ऐसा बार-बार होता है, तो आप जानते हैं कि निर्देशक को कुछ नहीं मिल सकता.
(ये स्टोरी कोमल गौतम द्वारा हिंदी में अनुवाद की गई है)