
Sikandar Review: Salman Khan का पुराना स्टाइल, कमजोर कहानी और बेमतलब एक्शन
सलमान खान और साउथ डायरेक्टर मुरुगादॉस की ये फिल्म एक भटकती हुई यात्रा की तरह लगती है, जिसका कोई ठिकाना नहीं. क्या इस बार रश्मिका मंदाना फिर से उनकी किस्मत बदलने में कामयाब होंगी?
Salman Khan इस फिल्म में संजय राजा का किरदार निभा रहे हैं, जो राजकोट का सबसे अमीर और ताकतवर आदमी है. वो भारत के 25% सोने का मालिक है और दिल का भी बहुत बड़ा है. लोगों की मदद के लिए वो करोड़ों रुपये लुटा देता है. कभी धारावी में जमीन खरीदकर वहां के लोगों की मदद करता है. तो कभी 6000 बीमार मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराता है, लेकिन इसी चक्कर में वो अपनी खूबसूरत पत्नी साईश्री (रश्मिका मंदाना) को समय देना ही भूल जाता है. वो उसे लता मंगेशकर के गाने गाकर रिझाने की कोशिश करती है, लेकिन राजा साहब का ध्यान सिर्फ राजकोट, मुंबई और धारावी के लोगों पर है.
अब सवाल ये है कि क्या यह सब राजनीति में उतरने की तैयारी तो नहीं? क्योंकि फिल्म में संजय राजा एक डायलॉग मारते हैं. जरूरत पड़ी तो विधायक या सांसद भी बन सकता हूं. इस डायलॉग के बाद विलेन तक डर जाता है और शायद दर्शकों को भी इस पर सोचने पर मजबूर कर देता है.
एक्शन और स्टाइल
एक्शन सीन इस फिल्म की सबसे बड़ी हाईलाइट है, लेकिन उनमें कोई नया पैनापन नहीं है. सलमान खान अकेले 10-20 गुंडों से भिड़ जाते हैं. कभी फरसा चला रहे होते हैं, कभी त्रिशूल और कभी कोई बड़ा सा भाला. खून से लथपथ हथियारों वाले सीन मुरुगादॉस की फिल्मों की खासियत रही है और यहां भी वही देखने को मिलता है. हालांकि, सलमान इस बार थके-हारे लगते हैं. उनकी एनर्जी पहले जैसी नहीं दिखती, लेकिन उनका स्वैग अभी भी मौजूद है. जब वो गले की चेन घुमाकर गुंडों की पिटाई करते हैं या कार की खिड़की पर सिर पटककर विलेन की धुनाई करते हैं, तो थिएटर में सीटियां जरूर बजती हैं.
कमजोर कहानी
फिल्म का सबसे बड़ा माइनस पॉइंट इसकी कमजोर और बेतुकी कहानी है. डायरेक्टर ए. आर. मुरुगादॉस, जिन्होंने गजनी, ठुप्पक्की और कथ्थी जैसी हिट फिल्में दी हैं. इस बार कहानी और स्क्रिप्ट पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाए. ऐसा लगता है कि वह पूरी फिल्म में सिर्फ सलमान खान की फैन सर्विस करने में व्यस्त थे. विलेन (सत्यराज) और उनके बेटे (प्रतीक बब्बर) का कोई मजबूत बैकस्टोरी नहीं है. काजल अग्रवाल और बाकी कलाकारों को सिर्फ दिखाने के लिए रखा गया है. शरमन जोशी जो सलमान के भरोसेमंद दोस्त बने हैं, वो भी स्क्रीन पर असहज नजर आते हैं. रश्मिका मंदाना, जो सलमान की पत्नी बनी हैं, फिल्म में ज्यादा देर तक नहीं टिकतीं. वो कुछ ही सीन के बाद गायब हो जाती हैं और सिर्फ फ्लैशबैक में ही नजर आती हैं.
म्यूजिक- डांस
प्रीतम इस बार सलमान खान के लिए कोई दमदार गाना नहीं दे पाए. ना ‘बॉडीगार्ड’ के गानों जैसी एनर्जी है, ना ‘बजरंगी भाईजान’ के गानों जैसी मासूमियत. हालांकि, 'बम बम भोले शंभू' गाना थोड़ा बेहतर है. इस गाने में रश्मिका मंदाना अपने 'सामी सामी' स्टेप्स दोहराती हैं, जो दर्शकों को थोड़ा एंटरटेन करता है. संतोष नारायणन का बैकग्राउंड स्कोर जबरदस्त है, लेकिन कहीं-कहीं ओवरड्रामेटिक लगने लगता है. खासकर जब सलमान खान की एंट्री होती है और बैकग्राउंड में रैप गूंजता है. No throne left to reign, Storms rise in his wake ये लाइनें सुनकर दर्शकों को हंसी भी आ सकती है.
फिल्म सिकंदर एक बड़े बजट की मसाला फिल्म है, लेकिन इसमें न कहानी है. न दमदार डायलॉग्स, और न ही कुछ नया. सलमान खान के डाई-हार्ड फैंस इसे देखने जरूर जाएंगे, लेकिन आम दर्शकों को यह फिल्म थका देने वाली लग सकती है.
अच्छे पॉइंट्स
सलमान खान की स्क्रीन प्रेजेंस
कुछ एक्शन सीन
बैकग्राउंड स्कोर और ‘बम बम भोले शंभू’ गाना
कमजोर पॉइंट्स
कमजोर स्क्रिप्ट और बिना सिर-पैर की कहानी
सलमान खान की थकान साफ झलकती है
सह-कलाकारों को कोई खास स्क्रीन टाइम नहीं मिला. अगर आप सलमान खान के फैन हैं, तो एक बार देख सकते हैं. वरना, इसे स्किप करना ही बेहतर होगा.