
‘द फैमिली मैन 3’ रिव्यू, क्या ये वाकई सीरीज का सबसे दमदार सीजन है?
इस बार भी कहानी न तो किसी हीरो की टॉक्सिक मर्दानगी को ग्लोरिफाई करती है और न ही बेवजह का दिखावा करती है. सबकुछ सादा, रियल और दिल को छूने वाला.
आज हम बात करने वाले हैं उस सीरीज की, जिसने एक बार फिर साबित कर दिया है कि मनोज बाजपेयी यानी हमारे श्रीकांत तिवारी, अकेले ही पूरी वेब वर्ल्ड को हिला सकते हैं। जी हां द फैमिली मैन सीजन 3 आखिरकार रिलीज हो चुका है और इसके साथ एक बार फिर शुरू हो गई है फिल्म इंडस्ट्री की सबसे गर्म बहस स्टारडम ज़रूरी है या कहानी? और इसमें OTT ने जो सबसे तगड़ी दलील पेश की है, वो है द फैमिली मैन 3. राज और डीके की ये सीरीज फिर साबित करती है कि दमदार कहानी हो, ईमानदार अभिनय हो, और तगड़ा डायरेक्शन हो, तो किसी बड़े स्टार के नाम का सहारा लेने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती. इस बार भी कहानी न तो किसी हीरो की टॉक्सिक मर्दानगी को ग्लोरिफाई करती है और न ही बेवजह का दिखावा करती है. सबकुछ सादा, रियल और दिल को छूने वाला.
आज के इस रिव्यू में हम बात करेंगे पूरी कहानी की एक्टिंग, डायरेक्शन, कमजोर और मजबूत पहलुओं की और आखिर में देखें या न देखें? तो चलिए शुरू करते हैं. कहानी में क्या है? सीजन 3 में श्रीकांत तिवारी की जिंदगी पहले से कहीं ज्यादा उलझ चुकी है. इस बार कहानी का फोकस उत्तर-पूर्वी भारत पर है एक ऐसी जगह जहां से ड्रग्स तस्करी का एक बड़ा नेटवर्क पूरे देश के लिए खतरा बन चुका है और इस खतरे के पीछे कौन है? नया विलेन रुक्मा यानी की जयदीप. वो इस किरदार में खतरनाक, शांत, और एकदम अनप्रिडिक्टेबल नजर आ रहे हैं. इस बार श्रीकांत सिर्फ देश को नहीं बचा रहा…बल्किन वो अपनी फैमिली को भी बचाने की कोशिश में है, क्योंकि हालात इतने गंभीर हो जाते हैं कि उसे एहसास होता है कि दुश्मन सिर्फ देश के पीछे नहीं उसके घर तक पहुंच चुके हैं. कहानी में एक ऐसा मोड़ आता है जहां श्रीकांत को अपनी फैमिली को लेकर छुपकर भागना पड़ता है. कौन किसके साथ है? कौन किसके खिलाफ? और कौन जीतेगा इस खेल में? ये सब आपको देखने को मिलेगा अमेज़न प्राइम पर स्ट्रीम हो रही सीरीज में.
कैसी है पूरी सीरीज?
दोस्तों, एक बात मैं साफ कह दूं सीजन 3 एक सेकंड के लिए भी बोर नहीं करता. हर एपिसोड में नया ट्विस्ट, नया टर्न, लेकिन… हां, एक दिक्कत है. मजबूत पहलू, कहानी का स्केल बड़ा है, कलाकार ज्यादा हैं, एक्शन बहुत इंटेंस है और इमोशन्स और तमाशा दोनों हैं, लेकिन परेशानी ये हुई कि कहानी बहुत बड़ी थी, लेकिन एपिसोड सिर्फ 7 हैं. इस वजह से कई जगह लगता है कि सीन बहुत तेजी से कट रहे हैं, एक पल कुछ हो रहा है और अगले ही सेकंड अचानक कुछ नया धमाका. कभी-कभी कहानी थोड़ी कन्फ्यूजिंग लगने लगती है. जैसे किसी ने पूरी कहानी को एक छोटे पैकेट में ठूंस दिया हो, लेकिन जो चीज इस बार बहुत अच्छी लगी वो है फैमिली का रोल. अब सुचि और बच्चे सिर्फ “साइडलाइन फिगर” नहीं हैं. इस बार पूरा परिवार मिलकर लड़ता है. ऐसा पहली बार दिखा है कि जितना श्रीकांत अपने घर को बचाना चाहता है, उतना ही उसका परिवार भी उसे बचाने के लिए लड़ता है. इस बार एक्शन भी ज्यादा रियलिस्टिक, ज्यादा क्रूर और ज्यादा इंटेंस है.
डायरेक्शन और राइटिंग
राज और डीके ने शो को शुरू किया था, लेकिन इस बार कमान उन्होंने सुमन कुमार और तुषार सेठी को दी है और कहना पड़ेगा सीजन 3 शायद इस शो का सबसे मजबूत सीजन है. कैमरा वर्क शानदार है. क्लाइमेक्स शॉट टॉप-क्लास हैं. स्क्रीनप्ले टाइट बेहद खूब. दर्जनों ट्रैक होने के बावजूद सीरीज ट्रैक से उतरती नहीं डायलॉग सुमित अरोड़ा के हैं...जो सामाजिक मुद्दों को हल्के-फुल्के अंदाज़ में छू जाते हैं. हां, इस बार कॉमेडी कम है. जेके के वन-लाइनर्स उतने सुनने को नहीं मिलते. लेकिन इस seriousness की वजह से इसका असर गहरा हो जाता है.
एक्टिंग की बात करें तो मनोज vs जयदीप दोनों की एक्टिंग लाजवाब. अब आते हैं इस सीरीज की जान पर...मनोज बाजपेयी...क्या करें? इनके बारे में कुछ कहना सूरज को रोशनी दिखाने जैसा है. इनकी ईमानदारी, इनकी थकान, इनका गुस्सा, इनकी मजबूरी सब कुछ इतने सच्चे तरीके से दिखता है कि आप भूल जाते हैं कि वो एक्टिंग कर रहे हैं. जयदीप अहलावत...इस आदमी ने एक बार फिर प्रूव किया है कि वो विलेन नहीं… खतरा है. उनकी स्क्रीन प्रेज़ेंस इतनी heavy है कि कई सीन में वो मनोज बाजपेयी पर भारी पड़ जाते हैं. दोनों की टक्कर सीजन का हाइलाइट है. बाकि कलाकार
प्रियामणि ने इस बार वाकई चमककर काम किया है. बच्चे आश्लेषा ठाकुर और वेदांत सिन्हा बेहद नैचुरल. शारिब हाशमी हमेशा की तरह शो का दिल. निम्रत कौर… शानदार, लेकिन उनके किरदार को और गहराई मिल सकती थी. दर्शन कुमार, दलीप, श्रेया, सीमा बिस्वास सबने कहानी को मजबूती दी है. कमजोरी क्या है? कहानी का स्केल बड़ा था लेकिन एपिसोड कम कई ट्रैक बहुत जल्दी निपटा दिए गए. कुछ जगह confusion, ह्यूमर कम, गंभीरता ज्यादा, लेकिन ये कमजोरियां सीरीज को गिराती नहीं हैं. बस इसे परफेक्ट मास्टरपीस बनने से रोकती हैं.
देखें या न देखें?
अगर आप मनोज बाजपेयी के फैन हैं. रियलिस्टिक एक्शन पसंद करते हैं. फास्ट-पेस्ड थ्रिलर का मज़ा लेते हैं और ऐसी कहानियां चाहते हैं जहाँ स्टारडम नहीं बल्कि कहानी बोलती है. तो द फैमिली मैन सीजन 3 आपके लिए ही बना है. हां, थोड़ी-बहुत खामियां हैं, लेकिन जो प्रदर्शन, भावनाएं और रियलिज़्म ये सीरीज देती है, वो इसे जरूर-देखने-लायक बनाती हैं. रेटिंग: 4 / 5

