
जब दिव्या भारती ने पिता से छुपाकर की थी शादी, दिवाली पर खुला था राज
उनके पिता ओम प्रकाश भारती इस रिश्ते के खिलाफ थे, इसलिए दिव्या ने शादी की बात उनसे छुपा ली थी.
दिव्या भारती और साजिद नाडियाडवाला की छुपी शादी की कहानी किसी से छुपी नहीं है. दिव्या भारती ने महज 18 साल की उम्र में फिल्म प्रोड्यूसर साजिद नाडियाडवाला से गुपचुप शादी कर ली थी. उनके पिता ओम प्रकाश भारती इस रिश्ते के खिलाफ थे, इसलिए दिव्या ने शादी की बात उनसे छुपा ली थी.
जब दिव्या भारती फिल्म शोला और शबनम की शूटिंग कर रही थीं. तब साजिद नाडियाडवाला सेट पर गोविंदा से मिलने आए. वहीं पहली बार साजिद ने दिव्या को देखा और उन्हें पहली ही नजर में उनसे प्यार हो गया. धीरे-धीरे उनकी दोस्ती प्यार में बदल गई और फिर उन्होंने 10 मई 1992 को एक प्राइवेट सेरेमनी में शादी कर ली. उस समय दिव्या सिर्फ 18 साल की थीं.
पिता से छुपाकर शादी
दिव्या ने ये शादी अपने पिता ओम प्रकाश भारती से छुपाकर की थी क्योंकि उनके पिता इस रिश्ते के खिलाफ थे. हालांकि उनकी मां मीता भारती को इस बारे में पता था. उन्होंने कहा था कि शादी करने से पहले पिता से बात करनी चाहिए, लेकिन दिव्या ने बिना बताए ही शादी कर ली. शादी के बाद भी दिव्या अपने मायके में ही रहीं और साजिद से छुप-छुप कर मिलती थीं. कुछ महीने बाद दिवाली के दिन साजिद ने दिव्या के घर आकर उनके पिता को सच्चाई बता दी कि वो और दिव्या शादी कर चुके हैं.
दिव्या के पिता ने पहले कुछ नहीं कहा लेकिन तीन दिन बाद, उन्होंने खुद कहा अब जब दोनों की शादी हो चुकी है, तो हमें इसे स्वीकार कर लेना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए. इस तरह दिव्या के पिता ने भी इस रिश्ते को मान लिया. लेकिन ये खुशियां ज्यादा दिन तक नहीं टिकीं. 5 अप्रैल 1993 को शादी के कुछ ही महीनों बाद दिव्या की उनके घर की बालकनी से गिरकर मौत हो गई. वो सिर्फ 19 साल की थीं. उनकी अचानक मौत ने पूरे देश को झकझोर दिया था और साजिद नाडियाडवाला बुरी तरह टूट गए थे.
दिव्या की मौत के बाद भी साजिद ने उनके माता-पिता का साथ नहीं छोड़ा. उन्होंने हमेशा उन्हें अपने माता-पिता की तरह ही संभाला और सारी जिम्मेदारियां निभाईं. सालों तक उन्होंने दिव्या के माता-पिता का ध्यान रखा. बाद में 2000 में साजिद ने पत्रकार वार्दा खान से शादी कर ली, लेकिन दिव्या के परिवार से उनका रिश्ता बना रहा. दिव्या और साजिद की प्रेम कहानी बहुत छोटी थी लेकिन बेहद भावुक और यादगार रही. ये कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा प्यार समय का मोहताज नहीं होता और सच्चे रिश्ते, चाहे जितने छोटे हों, बहुत गहरे असर छोड़ते हैं.