
तनाव, बीमारी और थकान से जूझ रहा कॉरपोरेट भारत, रिपोर्ट ने चेताया
भारत के कॉरपोरेट सेक्टर में 86% कर्मचारी मानसिक संकट से जूझ रहे हैं। रिपोर्ट ने तनाव, बर्नआउट और लाइफस्टाइल बीमारियों को राष्ट्रीय आपातकाल बताया है।
भारत के कॉरपोरेट सेक्टर में सेहत से जुड़ा गहरा संकट सामने आया है। इंडस्ट्री संगठन सीआईआई (CII) और डिजिटल हेल्थ प्लेटफॉर्म मेडीबडी (MediBuddy) द्वारा जारी 2025 कॉरपोरेट वेलनेस इंडेक्स के मुताबिक, 86% कर्मचारी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। यह रिपोर्ट 1,000 से अधिक कंपनियों और लाखों स्वास्थ्य डेटा इंटरैक्शन पर आधारित है। इसमें बताया गया है कि दफ्तर अब तनाव, बर्नआउट और लाइफस्टाइल बीमारियों के केंद्र बनते जा रहे हैं।
कॉरपोरेट भारत में करीब 5 करोड़ लोग काम करते हैं, यानी 4.3 करोड़ कर्मचारी मानसिक रूप से बीमार हैं। विशेषज्ञ इसे किसी राष्ट्रीय आपातकाल से कम नहीं मान रहे। रिपोर्ट में कहा गया है कि अब वेलनेस को दिखावे की पहल नहीं, बल्कि ज़रूरी नीति के तौर पर अपनाना होगा। खराब स्वास्थ्य से उत्पादकता घट रही है और प्रदर्शन पर सीधा असर पड़ रहा है।
जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां
मानसिक स्वास्थ्य से आगे बढ़ते हुए, रिपोर्ट ने बताया कि 70% से अधिक कर्मचारी किसी न किसी लाइफस्टाइल बीमारी से प्रभावित हैं।विटामिन की कमी और मधुमेह सबसे आम बीमारियां हैं।स्वास्थ्य जांचों में विटामिन B12 (12%), HbA1c टेस्ट (11%) और ब्लड काउंट (10%) शीर्ष पर रहे।लंबे कार्य-घंटे, खराब खानपान और धूप की कमी इसके बड़े कारण बताए गए।
डर्मेटोलॉजी (13%) और गैस्ट्रोएंटरोलॉजी (6%) कंसल्टेशन में भी बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट ने चेताया कि मानसिक बीमारियों से भारत को 1.03 ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हो सकता है।
बढ़ता तनाव और युवा पीढ़ी पर असर
पिछले एक साल में मानसिक स्वास्थ्य मामलों में 15% वृद्धि दर्ज हुई।आत्महत्या के खतरे में 22% तक बढ़ोतरी हुई।लगभग आधे कर्मचारी कार्यस्थल पर तनाव या चिंता झेल रहे हैं।25 साल से कम उम्र के 90% युवा कर्मचारियों ने चिंता के लक्षण बताए, जबकि 45 से ऊपर वालों में यह आंकड़ा 67% रहा।दक्षिण भारत में 35% कर्मचारी हर दिन गुस्से की शिकायत कर रहे हैं।
आर्थिक और सामाजिक असर
रिपोर्ट बताती है कि हर 1 रुपये के निवेश पर 3–4 रुपये की बचत होती है। इससे उत्पादकता 6–8% बढ़ती है, बीमार छुट्टियां घटती हैं और कर्मचारियों की स्थिरता बेहतर होती है।
अन्ना सेबेस्टियन का मामला
जुलाई 2024 में केरल की 26 वर्षीय चार्टर्ड अकाउंटेंट अन्ना सेबेस्टियन की पुणे में नौकरी शुरू करने के चार महीने बाद मौत हो गई। उनकी मां ने कंपनी (Ernst & Young) के चेयरमैन को लिखे पत्र में “अत्यधिक काम का बोझ” और “तनाव” को मौत की वजह बताया।अन्ना को लगातार चिंता, नींद न आना और सीने में दर्द की समस्या थी।परिवार ने कंपनी पर टॉक्सिक वर्क कल्चर का आरोप लगाया, जहां देर रात तक काम और वीकेंड ड्यूटी सामान्य बात थी।इस घटना ने पूरे देश में गुस्सा भड़का दिया और सरकार को जांच शुरू करनी पड़ी।
विशेषज्ञों की चेतावनी
डॉक्टरों और विशेषज्ञों का कहना है—“यह सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि ज़िंदगियां हैं।”भारत की कॉरपोरेट बर्नआउट दर 78% है, जो वैश्विक औसत से कहीं अधिक है।2024 में भारत का कॉरपोरेट वेलनेस मार्केट 2.5 बिलियन डॉलर था, जो 2033 तक 4 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि केवल मार्केट ग्रोथ नहीं, बल्कि असली बदलाव जरूरी है।
जवाबदेही और समाधान की मांग
रिपोर्ट का साफ संदेश है कि दिखावटी वेलनेस कार्यक्रमों से आगे बढ़कर सिस्टमेटिक वेलनेस रणनीति अपनानी होगी।इंटीग्रेटेड मानसिक और शारीरिक सहयोग, वेलनेस पर लागत का आकलन और फीडबैक आधारित जवाबदेही जरूरी है।
वर्कप्लेस एक्सपर्ट्स का कहना है कि “लोग कंपनियों को नहीं, बॉस को छोड़कर जाते हैं। टॉक्सिक नेतृत्व, बेकाबू वर्कलोड और कमजोर वेलनेस इंफ्रास्ट्रक्चर को अब और नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।