100 साल के इतिहास में एएमयू को महिला वीसी, जानें- क्यों है विवाद
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की कमान अब नईमा खातून के हाथ में है. हालांकि उनकी नियुक्ति को लेकर कई तरह के सवाल खड़ किए जा रहे हैं.
Aligarh Muslim University News: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का चर्चा में बने रहने का अपना इतिहास है. चर्चा इस समय भी हो रही है. आप सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसा क्या हुआ. दरअसल एएमयू को अब उसका वाइस चांसलर मिल चुका है जिसका इंतजार पिछले एक साल था. लेकिन दूसरे चरण यानी 26 अप्रैल से पहले पीएम नरेंद्र मोदी जिस वक्त अलीगढ़ में चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे. ठीक उसी वक्त एएमयू को नईमा खातून के रूप में पहली महिला वाइस चांसलर मिल रही थीं. इस नियूक्ति को लेकर सियासी हो हल्ला हो रहा है लेकिन सरकार का कहना है कि चुनाव आयोग से अनुमति लेकर ही फैसला किया गया है. यहां एक वाजिब सी बात यह है कि अगर चुनाव आयोग से अनुमति लेने के बाद नियुक्ति की गई है तो राजनीतिक शोर क्यों है.
क्या है पूरा मामला
बता दें कि एएमयू वाइस चांसलर के लिए तीन नामों पर चर्चा हुई. कई दौर के मंथन के बाद नईमा खातून के नाम पर सहमति बनीं. नईमा खातून की नियूक्ति इस वजह से भी खास है क्योंकि विश्वविद्यालय के 100 साल के इतिहास में पहली महिला कुलपति मिली हैं. केंद्र सरकार की इस कवायद को मोदी वूमन कार्ड या शी कार्ड के तौर पर देखा जा रहा है, इसे इस तरह से प्रचारित किया जा रहा है कि देखिए मोदी सरकार महिलाओं के विकास के लिए कितनी जागरूक है यही नहीं मुसलमानों के विकास के लिए भी समर्पित है. सियासत में सत्ता और विपक्ष का तो काम ही एक दूसरे पर दोषारोपण करने का है. लेकिन सवाल टाइमिंग को लेकर है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामला लंबित
नईमा खातून की नियुक्ति इस वजह से चर्चा में है क्योंकि मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित है और 29 अप्रैल को अगली सुनवाई होनी है. यहां ध्यान देने वाली बात है कि एएमयू वूमन कॉलेज की प्रिंसिपल रहीं नईमा प्रोफेसर गुलरेज की पत्नी हैं जो इनकी नियुक्ति से पहले एक्टिंग वीसी की भूमिका में थे. वीसी बनने की कतार में कुल तीन लोग थे. यूनिवर्सिटी की एग्जीक्यूटिव काउंसिल ने कुल पांच नामों पर चर्चा की जिसकी अध्यक्षता साल 2023 में प्रोफेसर गुलरेज कर रहे थे. काउंसिल ने पांच नामों में से तीन को शॉर्टलिस्ट कर प्रस्ताव एएमयू कोर्ट को भेज दी. उन तीन नामों में नईमा खातून का भी था जिस इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामला लंबित है. बता दें किए एएमयू गवर्निंग बॉडी के आठ मेंबर्स ने निहित फायदे का हवाला देते हुए असहमति भी दायर की थी. इस बात की संभावना जताई जा रही है कि नईमा खातून की नियुक्ति पर आचार संहिता और चुनाव आयोग की सहमति का मुद्दा उठेगा.
नियुक्ति की टाइमिंग पर सवाल
सहमति के लिए जब नियुक्ति के प्रस्ताव को चुनाव आयोग के पास भेजा गया तो ईसी ने 9 अप्रैल 2023 को जवाब दिया कि आयोग को किसी तरह की आपत्ति नहीं है लेकिन यह भी कहा कि सरकार का मकसद पब्लिसिटी या राजीनितिक लाभ लेना नहीं होना चाहिए. हालांकि चुनाव आयोग ने अदालत वाले प्रसंग के बारे में स्पष्टता के साथ कुछ भी नहीं कहा. इन सबके बीच विपक्षी दल 22 अप्रैल के खास दिन का जिक्र कर रहे हैं जिस दिन पीएम मोदी अलीगढ़ में थे और अलीगढ़ में 26 अप्रैल को चुनाव होना था. विपक्षी दलों का कहना है कि सिर्फ और सिर्फ राजनीति फायदे के मकसद से ही 22 अप्रैल की तारीख का चुनाव किया ताकि दूसरे चरण के चुनाव के साथ साथ बाकी के पांच चरणों में फायदा उठाया जा सके.
विपक्ष को नहीं रास आई नियुक्ति
अगर विपक्षी दलों को नईमा खातून की नियुक्ति पर ऐतराज है तो उसके पीछे वजह भी है. 23 अप्रैल 2023 को प्रोफेसर तारिक मंसूर का वीसी के रूप में अंतिम दिन था. रिटायरमेंट की तारीख से एक महीने पहले प्रोफेसपर गुलरेज की नियुक्ति प्रो वाइस चांसलर के तौर पर कर दिया. इसे तरह से गुलरेज के वीसी ऑफिस का रास्ता आसान हो गया. रिटायरमेंट के बाद ही तारिक मंसूर बीजेपी का हिस्सा बने और उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य भी बन गए. यही नहीं वो बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं. दिलचस्प बात यह है कि मंसूर का उत्तराधिकारी कौन होगा उसका फैसला करने में केंद्र सरकार ने तेजी दिखाई क्योंकि 9 जनवरी की सुनवाई में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणी की थी.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि आखिर कैसे कोई वीसी उस नियुक्ति प्रक्रिया का हिस्सा बन सकता है जिसमें उसकी पत्नी का नाम भी हो. अगर यूनिवर्सिटी की एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सेक्शन 27 की व्यवस्था देखें तो वो ऐसा नहीं कर सकता. लेकिन यहां तो वो ना सिर्फ चयन प्रक्रिया का हिस्सा बना बल्कि अंतिम सूची की तैयारी में वोटिंग में हिस्सेदार बना.