Tirupati laddus row: 80 के दशक में भी मिलावटी घी ने मचाई थी खलबली, जानें क्या था पूरा मामला
तिरुपति मंदिर के लड्डू तैयार करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले घी में कथित तौर पर गौमांस की चर्बी और अन्य वसा पाए जाने की घटना पहली नहीं है. देश में एक दशक पहले भी मिलावटी घी का मामला सामने आ चुका है.
Tirupati Laddu controversy: आंध्र प्रदेश के प्रतिष्ठित तिरुपति मंदिर के प्रसिद्ध लड्डू तैयार करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले घी में कथित तौर पर गौमांस की चर्बी और अन्य वसा पाए जाने की घटना ने कई लोगों को स्तब्ध कर दिया है. हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब ऐसी घटना हुई है. एक दशक पहले, एक प्रमुख उद्योगपति को शुद्ध वनस्पति घी के नाम पर गोमांस में मिला हुआ घी बेचने के आरोप में जेल भेजा गया था. यह मामला साल 1983 का है और साल 2014 में ही सीबीआई की विशेष अदालत ने राजिंदर मित्तल और तीन अन्य को चार साल की सजा सुनाई थी. हालांकि, उससे पहले निचली अदालत ने उन्हें बरी कर दिया था. जेल के अलावा मित्तल पर 18,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था.
राजिंदर मित्तल ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ के चेयरमैन थे. वहीं, अन्य तीन लोग हरियाणा के रहने वाले सुभाष चंद, उनके भाई तिरलोक चंद और अमृतसर के हरबिंदर सिंह थे. 11 अन्य आरोपी भी थे. लेकिन लंबी कानूनी कार्यवाही के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी.
घटना
यह मामला 1983 में सामने आया था, जिससे पूरे देश में आक्रोश फैल गया था. उस समय इस मामले ने संसद को भी हिलाकर रख दिया था. यह सब तब शुरू हुआ, जब मित्तल इंडस्ट्रीज के टैंकों में गोमांस की चर्बी पाई गई, जिसके तत्कालीन प्रमुख द्वारका दास मित्तल थे. मित्तल समूह के पास बठिंडा केमिकल्स लिमिटेड और पायनियर इंडस्ट्रीज के साथ-साथ अन्य व्यापारिक हित भी थे. समूह वनस्पति तेल और साबुन सामग्री का निर्माण करता था. बठिंडा के लोगों के शोर मचाने पर दो खाद्य निरीक्षकों ने बठिंडा केमिकल्स से गोमांस के नमूने लिए थे. इसके बाद द्वारका दास, उनकी पत्नी वेद कुमारी और बेटों राजिंदर और विनोद के खिलाफ खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम के तहत दो शिकायतें दर्ज की गईं.
सीबीआई जांच
चार वर्षों की जांच और सुनवाई के बाद निचली अदालत ने 1987 में इस तर्क के आधार पर अभियुक्तों को बरी कर दिया कि खाद्य निरीक्षकों की शिकायत पर संज्ञान नहीं लिया जा सकता. क्योंकि उनके पास इस मामले में आवश्यक अथॉरिटी नहीं थी. सरकार ने आदेश के खिलाफ अपील की और उसी वर्ष मामला सीबीआई को सौंप दिया गया.
सीबीआई के आरोप
एजेंसी के अनुसार, द्वारका दास, राजिंदर और सह-अभियुक्त हरचरण दास ने मई-जून 1983 में जनरल फूड, इंदौर और जैन शुद्ध वनस्पति, नई दिल्ली से गोमांस वसा खरीदी थी. उन्होंने पंजाब के बठिंडा स्थित अपने कारखाने में अखाद्य गोमांस वसा को प्रोसेस्ड किया और फिर संसाधित वसा के डिब्बे, जो अभी भी अखाद्य थे, अन्य आरोपियों, अमृतसर के हरबिंदर सिंह, लखबीर सिंह, रतन सिंह और नरवाना के जोगी राम, तरलोक चंद और सुभाष चंद को आपूर्ति की. इस अखाद्य गोमांस वसा को फिर नरिंदर कुमार को बेचा गया, जो अभियोजन पक्ष का गवाह बन गया और अन्य लोगों को नकली ब्रांड नाम के तहत खाद्य वनस्पति घी के रूप में बेचा गया. सीबीआई ने 2014 में विशेष अदालत में दलील दी कि आरोपियों ने अखाद्य गोमांस वसा के 100 कंटेनर घी के रूप में बेचे थे.
दिल्ली के जैन
इस विवाद में एक और कारोबारी समूह दिल्ली स्थित जैन शुद्ध वनस्पति प्राइवेट लिमिटेड था, जिसका उस समय कारोबार 32 करोड़ रुपए था. इसके तत्कालीन प्रबंध निदेशक विनोद कुमार जैन उस समय 36 वर्ष के थे. जैन परिवार के पास एक दर्जन से ज़्यादा कारोबार थे, जिनका उस समय कुल कारोबार 100 करोड़ रुपये से ज़्यादा था, जिसमें बीयर से लेकर रेडीमेड गारमेंट तक शामिल थे. जैन परिवार द्वारा 3.4 करोड़ रुपये के गोमांस वसा के आयात पर संसद में हुई तीखी बहस के बाद सीबीआई ने समूह के स्वामित्व वाले 20 से ज़्यादा परिसरों पर बड़े पैमाने पर छापे मारे थे.
विनोद जैन को सख्त राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार किया गया और 29 दिनों तक तिहाड़ जेल में रखा गया. हालांकि, बाद में दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं थे कि जैन “वनस्पति” बनाने के लिए गोमांस की चर्बी का उपयोग करने में मित्तल के प्रमुख सहयोगी थे. बहरहाल 30 साल से अधिक समय तक चली लंबी सुनवाई के बाद विशेष सीबीआई अदालत ने 2014 में मित्तल और अन्य को धोखाधड़ी, षड्यंत्र, सबूत नष्ट करने और खाद्य पदार्थों में मिलावट का दोषी ठहराया.