
हिंदी सिनेमा में इतिहास का गलत चित्रण, मुस्लिम विरोधी प्रचार का बढ़ता असर
वरिष्ठ पत्रकार कावेरी बामजई का कहना है कि हाल ही में बॉलीवुड ने औरंगजेब को छद्म नाम देकर भारतीय मुसलमानों को शैतान बताया है.
The Federal के शो 'Off The Beaten Track' के ताजे एपिसोड में निलांजन मुखोपाध्याय ने वरिष्ठ पत्रकार और लेखक कावरी बमज़ई के साथ एक गंभीर मुद्दे पर चर्चा की. इस चर्चा में बमज़ई ने हिंदी सिनेमा में एक परेशान करने वाले ट्रेंड की ओर इशारा किया. उन्होंने बताया कि हालिया फिल्मों, खासकर 'छावा' में औरंगजेब को एक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, ताकि मुस्लिम विरोधी भावनाओं को बढ़ावा दिया जा सके. इन फिल्मों के जरिए विकृत कहानी कहने की कोशिश की जा रही है, जिसका उद्देश्य समाज की सोच को प्रभावित करना है.
छावा का असर
चर्चा की शुरुआत नागपुर में औरंगजेब की कब्र पर हुए विवाद से हुई, जहां विरोध प्रदर्शन हुए थे. बमज़ई ने कहा कि इस विरोध के केंद्र में छावा फिल्म है, जो मुस्लिम सम्राटों के चित्रण को लेकर विवादों में घिरी है. उनका कहना था कि औरंगजेब अब केवल एक ऐतिहासिक पात्र नहीं है, बल्कि उसे अब भारतीय मुसलमानों का प्रतीक बना दिया गया है. बमज़ई ने यह भी स्पष्ट किया कि 1990 के दशक में जिन मुस्लिम खलनायकों, खासकर पाकिस्तानी जिहादियों, का चित्रण किया जाता था, अब उनकी जगह मुग़ल सम्राट जैसे औरंगजेब ने ले ली है. यह एक जानबूझकर किया गया बदलाव है. फिल्में जैसे छावा और तन्हाजी ने औरंगजेब का इस्तेमाल मुस्लिमों को दानवीकरण करने के लिए किया है. अब पाकिस्तानी आतंकवादी की जगह औरंगजेब ने ले ली है और यह भारतीय मुसलमानों के लिए एक रूपक बन गया है. यह सिर्फ एक संकेत नहीं है, बल्कि अब यह खुलेआम प्रचार हो चुका है.
धार्मिक रूपांतरण का खतरनाक चित्रण
छावा फिल्म में धार्मिक रूपांतरण को एक मुस्लिम उपकरण के रूप में दर्शाए जाने पर बमज़ई ने चिंता जताई. उन्होंने कहा कि फिल्म के आखिरी 20 मिनट काफी परेशान करने वाले हैं. इसमें बहुत ही क्रूर तरीके से धर्म परिवर्तन को दिखाया गया है और इसका संदेश स्पष्ट है: ‘धर्म परिवर्तन करो या दर्द सहो’."
इतिहास का गलत चित्रण
बमज़ई ने यह भी कहा कि यह नई फिल्मों का खतरनाक पहलू यह है कि वे इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश कर रही हैं. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि मराठा और मुग़लों के बीच का संघर्ष, जिसे कभी एक राजनीतिक और क्षेत्रीय संघर्ष माना जाता था, अब उसे हिंदू-मुसलमान के धार्मिक युद्ध के रूप में पेश किया जा रहा है. यह एक झूठी द्वंद्वता है, जो राजनीति और क्षेत्रीय संघर्षों को धार्मिक रूप में बदल देती है.
नफरत फैलाने वाली सिनेमा का उदय
निलांजन ने पूछा कि क्या आज की राजनीतिक सिनेमा और अतीत के सिनेमा में कोई अंतर है. बमज़ई ने कहा कि यह राजनीतिक फिल्में नहीं हैं. यह नफरत फैलाने वाले भाषण हैं, जो दो-तीन घंटे तक चलते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री ने बॉलीवुड हस्तियों से देश निर्माण में योगदान देने की अपील की थी और इसके बाद फिल्मों में सरकार की विचारधारा को समर्थन देने वाला तत्व दिखने लगा है.
क्षेत्रीय सिनेमा की दिशा में आशा
हालांकि, बमज़ई ने यह भी कहा कि क्षेत्रीय सिनेमा, खासकर मराठी और मलयालम सिनेमा, में उम्मीद की किरण दिखाई देती है. अगर आप वास्तविक मुद्दों—गरीबी, जाति, लिंग—के बारे में जानना चाहते हैं तो आप इन सिनेमा इंडस्ट्रीज की तरफ देख सकते हैं. हिंदी सिनेमा ने अब कहानी कहने की कला को खो दिया है.