Nishikant Dubey BJP MP Godda Jharkhand
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निशिकांत दुबे झारखंड के गोड्डा से बीजेपी सांसद हैं। इन्होंने कहा था कि देश में सिविलवार के लिए सीजेआई की टिप्पणी जिम्मेदार है। फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

न्यायपालिका का हमेशा सम्मान, MP निशिकांत दुबे के बयान से BJP ने झाड़ा पल्ला

देश में सिविल वार के लिए CJI जिम्मेदार हैं। इस बयान पर हंगामे के बाद भाजपा ने अपने सांसद निशिकांत दुबे के बयान को निजी बताते हुए किनारा कर लिया है।


सुप्रीम कोर्ट को लेकर बीजेपी सांसदों निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा द्वारा की गई तीखी टिप्पणियों के बाद, भारतीय जनता पार्टी ने इन बयानों से साफ तौर पर दूरी बना ली है। पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने एक देर रात X (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए कहा कि भाजपा का इन बयानों से कोई लेना-देना नहीं है और पार्टी न्यायपालिका का हमेशा सम्मान करती आई है।

भाजपा की ओर से किनारा

जेपी नड्डा ने अपने बयान में कहा,"भारतीय जनता पार्टी का सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा द्वारा न्यायपालिका और देश के मुख्य न्यायाधीश को लेकर दिए गए बयानों से कोई संबंध नहीं है। ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं। भाजपा न तो इन बयानों से सहमत है और न ही कभी इनका समर्थन करती है। पार्टी इन बयानों को पूरी तरह खारिज करती है।"



क्या बोले थे सांसद?

झारखंड के गोड्डा से सांसद निशिकांत दुबे ने कहा था कि "सुप्रीम कोर्ट देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए जिम्मेदार है"। उन्होंने ये भी कहा,"अगर हर मामले में सुप्रीम कोर्ट जाना है, तो संसद और विधानसभा को बंद कर देना चाहिए।"

दूसरी ओर, सांसद दिनेश शर्मा ने संविधान का हवाला देते हुए कहा कि"लोकसभा और राज्यसभा को कोई निर्देश नहीं दे सकता।"

जेपी नड्डा का सख्त निर्देश

जेपी नड्डा ने यह भी स्पष्ट किया कि पार्टी के सभी नेताओं को ऐसे बयानों से बचने के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने कहा:"न्यायपालिका हमारे लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा है। भाजपा ने हमेशा सुप्रीम कोर्ट सहित सभी अदालतों के आदेशों और सुझावों को सहर्ष स्वीकार किया है क्योंकि हम संविधान की रक्षा में इन संस्थाओं को मजबूत स्तंभ मानते हैं। मैंने दोनों सांसदों और अन्य सभी को इस तरह के बयान न देने के निर्देश दिए हैं।"

क्या है मामला?

सांसदों की ये टिप्पणियां ऐसे समय आई हैं जब सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा 10 विधेयकों को मंजूरी नहीं देने को "अवैध और मनमाना" करार दिया। अदालत ने यह भी कहा कि जब कोई विधेयक दूसरी बार पारित हो, तो उसे राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा तीन महीने के भीतर मंजूरी दी जानी चाहिए। कोर्ट ने यह सुझाव भी दिया कि संविधान से जुड़े मामलों वाले विधेयकों को राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट के पास विचार के लिए भेज सकते हैं।

इसके अलावा, फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है।17 अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया कि वह 'वक्फ-बाय-यूज़र' प्रावधान को समाप्त नहीं करेगी और वक्फ बोर्ड में किसी गैर-मुस्लिम को शामिल नहीं किया जाएगा।

कांग्रेस का पलटवार

कांग्रेस पार्टी ने निशिकांत दुबे के बयान की तीखी आलोचना की। पार्टी प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा,"सुप्रीम कोर्ट को निशाना बनाया जा रहा है। इसे कमजोर करने की कोशिशें हो रही हैं। अलग-अलग मुद्दों पर सुनियोजित तरीके से न्यायपालिका के खिलाफ बयान दिए जा रहे हैं, फिर वह इलेक्टोरल बॉन्ड का मामला हो, वक्फ एक्ट, या आगामी चुनाव आयोग से जुड़ा मुद्दा।"

यह प्रकरण न केवल केंद्र और न्यायपालिका के बीच के संबंधों को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि संवैधानिक संस्थाओं को लेकर देश में बहस किस स्तर पर पहुंच चुकी है। भाजपा के लिए यह स्पष्ट करना आवश्यक था कि पार्टी इन बयानों से खुद को अलग रखती है, ताकि उसकी संवैधानिक प्रतिबद्धता पर कोई सवाल न उठे।

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