यूपी में खुल कर नहीं खिला कमल, क्या ये सिर्फ तीन मुद्दे प्रदर्शन पर पड़े भारी
x
योगी आदित्यनाथ, सीएम, उत्तर प्रदेश

यूपी में खुल कर नहीं खिला कमल, क्या ये सिर्फ तीन मुद्दे प्रदर्शन पर पड़े भारी

दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर गुजरता है. लखनऊ के रास्ते बीजेपी तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने जा रही है. लेकिन यूपी ने इस दफा कमल को आधा ही खिलने दिया.


BJP performance in UP: देश के सबसे बड़े सूबे में से एक उत्तर प्रदेश में बीजेपी का प्रदर्शन हताशा भरा है. 80 में से बीजेपी के खाते में सिर्फ 33 और सहयोगियों के खाते में 3 सीट. इसका अर्थ यह है कि ना तो बीजेपी और ना ही उसके घटक दल बेहतर कर पाए. यह बात सच है कि दिल्ली की गद्दी पर एनडीए को एक बार फिर काबिज होने का मौका मिला है. लेकिन इस बार उसे अपने घटक दलों पर ज्यादा निर्भर होना होगा. दरअसल बीजेपी की खुद की सीट संख्या जादुई आंकड़े से कम है. नरेंद्र मोदी तीसरी बार देश की कमान संभालने जा रहे हैं लेकिन सरकार 2014 और 2019 की तरह उतनी मजबूत नहीं है. यहां हम यूपी के सभी हिस्सों के बारे में बताते हुए यह जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर चूक कहां हुई, क्या प्रत्याशी चयन में खामी थी. क्या लाभार्थी इस बार बीजेपी से दूर चले गए. या 400 पार का संविधान बदलने का जो बयान बीजेपी सांसद रहे लल्लू सिंह की तरफ से आया वो जिम्मेदार था. या तीनों वजहें बीजेपी के निराशाजनक प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार हैं.

हर तरफ लगा झटका

अगर यूपी की बात करें तो सभी हिस्सों में चाहे पश्चिमी यूपी हो या रुहेलखंड या बृज क्षेत्र या अवध का इलाका या बुंदेलखंड या पूर्वांचल हर तरफ झटका लगा है. सियासत पर गहरी नजर रखने वाले गोरखपुर के पत्रकार अजीत सिंह बताते हैं कि टिकट वितरण में खामी, बीजेपी सांसदों की निष्क्रियता. सिर्फ मोदी नाम पर नैया पार लगाने की ख्वाहिश ने पार्टी को सदमे में डाल दिया. बीजेपी ने 49 मौजूदा सांसदों को एक बार फिर मौका दिया था. लेकिन इलाके में उनके खिलाफ आक्रोश की लहर थी जिसे मोदी भी खत्म नहीं कर पाए. चंदौली में महेंद्र नाथ पांडे की हार उदाहरण है, वो मोदी सरकार में मंत्री रहे. लेकिन इलाके के लोगों की शिकायत है कि उनके दावे जमीन पर कहीं नजर ही नहीं आए.

लाभार्थियों ने मुंह मोड़ा

बीजेपी की हार में एक बड़ा कारण लाभार्थियों का पार्टी से मुंह मोड़ लेना है. अब ऐसा क्यों हुआ यह जानना दिलचस्प है. आप जानते होंगे कि अयोध्या सीट बीजेपी हार चुकी है. इस सीट से लल्लू सिंह चुनाव लड़ रहे थे. एनडीए के 400 पार के नारे से जब उन्होंने संविधान बदलने की बात कही वो बयान बीजेपी के लिए घातक साबित हुआ. इंडी ब्लॉक के नेता पिछड़े, वंचित, दलित समाज को यह संदेश देने में कामयाब हुए कि एक तरफ मोदी सरकार आपको मुफ्त में राशन तो दे रही है लेकिन आपके आरक्षण पर हमला करने जा रही है.आप लोगों के आने वाली संतानों का क्या होगा. संविधान पर हमला विपक्ष के लिए एक बड़ा हथियार बना जिसकी काट बीजेपी के पास नहीं थी. बीजेपी नेता सातों चरण तक यह सफाई देते रह गए कि संविधान पर हमला करने के बारे में कोई नहीं सोच सकता.

बूथ प्रबंधन में कमी, बेरोजगारी

जानकार कहते हैं कि जिस बूथ प्रंबंधन के मामले में बीजेपी की सानी नहीं उसमें कमी दिखी. कहने को तो बीजेपी ने एक लाख 60 हजार प्रभारी तैनात किए थे जो सपा कांग्रेस की संख्या से बहुत अधिक था. लेकिन वो सक्रियता नजर नहीं आई. इसके साथ ही विपक्ष ने अग्निवीर योजना, बेरोजगारी और पेपरलीक के मामले उठा कर यह समझाने में कामयाब हुए कि बीजेपी आपकी नौकरियों को खत्म करने की साजिश कर रही है.सरकारी नौकरियों को सीमित करना चाहती है. इसका असर यह हुआ कि चाहे अगड़ा समाज हो या पिछड़ा सबके दिमाग में यह बात बैठ गई कि बीजेपी का मतलब सरकारी नौकरियों का ना होना. इसके अलावा महंगाई भी हार की बड़ी वजह बन गई.

महंगाई बना मुद्दा

आजमगढ़ के सुदामा प्रसाद कहते हैं कि आंकड़ों में महंगाई दर के कम होने से क्या होता है. जब दाल, तेल आम आदमी की पहुंच से बाहर हो जाए तो गुस्सा आना लाजिमी है. अब बीजेपी की सरकार है तो जाहिर सी बात नाराजगी उनसे ही होती. इस मुद्दे पर आजमगढ़ के पत्रकार प्रवीण कुमार कहते हैं कि महंगाई तो सभी सरकारों में रही है. लेकिन इस मुद्दे को सपा और कांग्रेस ने इस तरह से लोगों के सामने रखा कि इसके लिए मोदी सरकार की नीति ही जिम्मेदार है.

Read More
Next Story