नतीजों के बाद अब बदलाव की कवायद, संघ, संगठन और बीजेपी में मंथन तेज
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नतीजों के बाद अब बदलाव की कवायद, संघ, संगठन और बीजेपी में मंथन तेज

BJP की अगुवाई में तीसरी दफा केंद्र में एनडीए की सरकार बनी है। लेकिन बीजेपी की टैली में गिरावट चिंता की बड़ी वजह है। इसे लेकर संघ और पार्टी में मंथन चल रहा है।


BJP-RSS Relation: आम चुनाव 2024 के नतीजे हैरान करने वाले रहे। दरअसल आम लोग हों या खास किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि बीजेपी की संख्या जादुई आंकड़े 272 से नीचे चली जाएगी। पार्टी का प्रदर्शन जहां राजस्थान, हरियाणा में खराब रहा वहीं यूपी और महाराष्ट्र ने तो पूरी तरह निराश किया। देश के सबसे बड़े सूबे में से एक यूपी में जहां बीजेपी 80 में 80 सीट पर जीत के सपने देख रही थी वहां महज 33 सीट पर जीत मिली। बीजेपी की सीट संख्या में कमी क्यों आई इसके लिए कई दौर का मंथन हो चुका है। उस मंथन में एक बात निकल कर सामने आई कि आत्मविश्वास, कार्यकर्ताओं में जोश की कमी, संघ के साथ समन्वय की कमी, संगठन मंत्रियों का पूरी तरह से सक्रिय ना होना हार की वजह बना। ऐसे में अब संघ और बीजेपी संगठन के बीच बेहतर समन्वय के लिए बदलाव की तैयारी हो रही है।

संगठन में फेरबदल की संभावना
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक संघ से नए संगठन मंत्री बीजेपी में भेजे जा सकते हैं. अगर मौजूदा समय की बात करें तो महाराष्ट्र, राजस्थान और तमिलनाडु में संगठन मंत्री नहीं है। हाल ही में 24-25 जुलाई को दिल्ली में हुई बैठक में यह मुद्दा उठा कि संगठन मंत्रियों के ना होने की वजह से बेहतर समन्वय स्थापित नहीं हो सका। इसके अलावा उम्रदराज संगठन मंत्रियों के जोश में कमी दिखी। बीजेपी में संगठन मंत्री आरएसएस की तरफ से भेजा जाता है और फैसला संघ को लेना है। संगठन मंत्री सरकार, संगठन और कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल बनाने का काम करता है. हालांकि इस बारे में कोई खास तिथि निर्धारित नहीं है. हालांकि अगस्त के आखिरी या सितंबर के शुरुआत में संघ और उसके आनुषंगिक संगठनों की बैठक होनी है और उसमें कोई ठोस फैसला हो सकता है।

हाल ही में आपने देखा होगा कि बीजेपी और संघ दोनों तरफ से कुछ ऐसे बयान आए जिसे विपक्ष की तरफ से हवा देने की कोशिश की गई कि संबंध सामान्य नही है। दोनों के बीच समन्वय की कमी है। संघ प्रमुख मोगन भागवत के कुछ बयान पर शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट ने निशाना साधते हुए कहा था कि बीजेपी का सच अब सामने आ रहा है। यह तो होना ही था। कुछ लोगों अपने अहम की संतुष्टि के लिए अपने विरोधियों पर निशाना साधते हैं लोगों के दुख और दर्द को नहीं समझते।

क्या कहते हैं जानकार
इस विषय पर सियासी पंडित अपनी राय कुछ इस तरह रखते हैं. गोरखपुर रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार अजीत सिंह कहते हैं कि आप बीजेपी और संघ को एक दूसरे से अलग नहीं कर सकते। जैसे एक्स ऑफिसियो पद होता है ठीक वैसे ही बीजेपी या संघ को कोई भी लीड करे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद एक ऐसा शब्द है जो एक दूसरे को बांधे रहता है। जब नतीजे मन के हिसाब से नहीं मिलते तो आरोप और प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है। अभी जिस तरह का माहौल आप देख रहे हैं वो क्षणिक है. बीजेपी और संघ में सेल्फ हील करने की क्वॉलिटी है और वो अपने आप हार से मिले जख्म को भर लेंगे। क्योंकि एक बात दोनों पक्ष को पता है कि अगर सत्ता हाथ में नहीं रही तो बड़े बड़े संकल्पों को यथार्थ में तब्दील करने में परेशानी आएगी।

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