कोटा में कोटा से सहमत नहीं मायावती, कहा आरक्षण ख़त्म करने के प्लान जैसा
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कोटा में कोटा से सहमत नहीं मायावती, कहा आरक्षण ख़त्म करने के प्लान जैसा

उन्होंने कहा, "क्योंकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों पर अत्याचार एक समूह के रूप में हुआ है और यह समूह समान है, जिसमें किसी भी प्रकार का उप-वर्गीकरण करना उचित नहीं होगा।"


Quota in Qupta: बसपा प्रमुख मायावती ने रविवार (4 अगस्त) को कहा कि पार्टी अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले से सहमत नहीं है. उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने लखनऊ में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, "अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लोगों को उप-वर्गीकृत करने की अनुमति दी गई है, हमारी पार्टी इससे बिल्कुल सहमत नहीं है."

मायावती ने कहा, "क्योंकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों पर अत्याचार एक समूह के रूप में हुआ है और ये समूह समान है, जिसमें किसी भी प्रकार का उप-वर्गीकरण करना उचित नहीं होगा."
मायावती ने स्पष्ट तौर पर कहा कि भविष्य में आरक्षण में किसी भी तरह के बदलाव की कोशिशें की जाए. मायावती ने मांग की कि संविधान के नौवीं अनुसूची में इसे शामिल किया जाए. मायावती ने अनूसूचित जातियों और जनजातियों को आगाह करते हुए कहा कि आपातकालीन की स्थिति को समझते हुए दोनों ही वर्गों को एकजुटता दिखने की जरूरत है. यदि वे बंटे रहेंगे तो विरोधी इसका फायदा उठाएंगे.

केंद्र और राज्य सरकारों में बढेगा का मतभेद
मायावती ने कहा कि अदालत के इस फैसले के बाद आरक्षण के मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकारों में मतभेद की स्थिति बनेगी. मनमानी भी बढ़ेगी, अलग अलग सरकारें मनचाही जातियों को आरक्षण देने का काम करेंगी. इससे समाज में असंतोष की भावना भी उत्पन्न होगी .

सुप्रीम कोर्ट का फैसला आरक्षण को खत्म करने के प्लान जैसा
मायावती ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से फैसला दिया है, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि ये फैसला कहीं न कहीं आरक्षण को ख़त्म करने के प्लान जैसा ही है. क्रीमी लेयर के मानक पर भी बसपा सुप्रीमों ने सवाल उठाये. उन्होंने ये भी कहा कि पंजाब राज्य के मामले में 20 साल पहले के फैसले पर सुनवाई सही नहीं है. एससी एसटी के बीच उपजाति का विभाजन करना सही फैसला नहीं होगा.

सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है, ताकि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण दिया जा सके.


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