
जस्टिस यशवंत वर्मा पर महाभियोग लाने की तैयारी, संसद के मानसून सत्र में पेश होगा प्रस्ताव
यह मामला भारत में न्यायपालिका की जवाबदेही और नैतिकता के मानकों की अग्निपरीक्षा बन गया है। अगर संसद में यह महाभियोग पारित हो जाता है तो यह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में पहला केस होगा।
केंद्र सरकार इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है। यह प्रस्ताव संसद के आगामी मानसून सत्र में पेश किया जा सकता है, जो जुलाई मध्य में शुरू होने की संभावना है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से बातचीत शुरू कर दी है, ताकि इस प्रस्ताव के लिए जरूरी समर्थन जुटाया जा सके।
कैश और आग की घटना बनी विवाद की जड़
मार्च में दिल्ली स्थित जज वर्मा के सरकारी आवास पर आग लगने की घटना सामने आई थी। दमकल विभाग की टीम को एक स्टोररूम में लगभग डेढ़ फीट ऊंचाई तक जले हुए नोटों का ढेर मिला। उस समय जस्टिस वर्मा दिल्ली हाई कोर्ट में कार्यरत थे। हालांकि, उन्होंने इसे एक साजिश बताते हुए नकदी से अनभिज्ञता जाहिर की, लेकिन इसके बाद उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया और तब से उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया है।
सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति की रिपोर्ट
भारत के तत्कालीन चीफ जस्टिस संजय खन्ना द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच समिति (जिसमें जस्टिस शील नागू, जीएस संधवालिया और अनु शिवरामन शामिल थे) ने 22 मार्च को जांच शुरू की थी। समिति ने 4 मई को अपनी रिपोर्ट सौंपी और कहा कि जस्टिस वर्मा नकदी की उत्पत्ति का कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे सके और यह आचरण इतना गंभीर है कि इसके लिए महाभियोग आवश्यक है। इसके बावजूद जब वर्मा ने इस्तीफा नहीं दिया तो सीजेआई खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर उनके निष्कासन की सिफारिश की थी।
महाभियोग की तैयारी
भारत के संविधान और न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के अनुसार, महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए लोकसभा में कम से कम 100 और राज्यसभा में 50 सांसदों का समर्थन जरूरी होता है। प्रस्ताव पहले एक सदन में पेश होता है, फिर अन्य सदन में। इस प्रस्ताव को सफल बनाने के लिए सरकार विपक्षी दलों जैसे कांग्रेस, टीएमसी और डीएमके से भी समर्थन लेने की कोशिश कर रही है।
इतिहास में पहली बार हो सकता है सफल महाभियोग
अगर यह प्रस्ताव पारित होता है तो यह भारत में किसी हाई कोर्ट के मौजूदा न्यायाधीश के खिलाफ पहला सफल महाभियोग होगा। अब तक केवल दो बार संसद में महाभियोग प्रक्रिया शुरू हुई है। 1993 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति वी रामास्वामी के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया। लेकिन समर्थन की कमी से वह पारित नहीं हो सका। साल 2011 में कोलकाता हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सौमित्र सेन के खिलाफ राज्यसभा में प्रस्ताव पारित हुआ था। लेकिन उन्होंने पहले ही इस्तीफा दे दिया था।
न्यायिक जवाबदेही पर बहस
इस घटनाक्रम ने न्यायिक प्रणाली में जवाबदेही और पारदर्शिता की आवश्यकता पर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। विपक्षी दलों ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी, जबकि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की जांच रिपोर्ट आने तक इंतजार किया। इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने महाभियोग के प्रस्ताव का स्वागत किया है और कहा है कि न्यायपालिका में जनता का विश्वास बनाए रखना जरूरी है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी बयान दिया है कि न्यायिक स्वतंत्रता का मतलब जवाबदेही से छूट नहीं हो सकती।