Farmers protest: जमी बर्फ पिघलने के आसार! बीच का रास्ता निकालने की कवायद
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Farmers protest: जमी बर्फ पिघलने के आसार! बीच का रास्ता निकालने की कवायद

farmers demands: केंद्र ने किसानों को उत्पादन लागत में कमी का आश्वासन दिया है. किसानों ने एमएसपी में लाभ मार्जिन में क्रमिक वृद्धि और लोकलुभावन नीतियों की समीक्षा की मांग की है.


farmer organizations demands: हरियाणा और पंजाब के प्रदर्शनकारी किसान (Farmers protest) अपनी मांगों को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर इकट्ठे हुए हैं. उनकी प्रमुख मांग कृषि उपज पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी देने वाला कानून बनाना है. वहीं, केंद्र सरकार (central government) किसानों की मांगों को पूरा करने की संभावनाओं पर विचार करने के लिए विभिन्न किसान संगठनों के साथ बातचीत कर रहा है.

केंद्र का आश्वासन

जबकि किसान चाहते हैं कि एमएसपी (MSP) में पूंजी की लागत और फसल से होने वाले लाभ का 50 प्रतिशत (जिसे सी2+50 फार्मूला भी कहा जाता है) शामिल हो. जैसा कि स्वामीनाथन आयोग ने सिफारिश की है, केंद्र ने किसानों को आश्वासन दिया है कि वह आने वाले दिनों में उत्पादन की लागत को कम करने के लिए कदम उठाएगा. 7 दिसंबर को किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उन्हें आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार खेती की लागत कम करने के लिए बीज, खाद, ट्रैक्टर और अन्य इनपुट लागतों पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) हटाने की संभावना पर विचार कर रही है. यह लंबे समय से विभिन्न किसान संगठनों की प्राथमिक मांगों में से एक रही है.

एमएसपी में भूमि किराया और मजदूरी

भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक ने द फेडरल को बताया कि बैठक के दौरान हमने वित्त मंत्री से कहा कि सी2+50 फॉर्मूला लागू करने की जरूरत है. क्योंकि उपज पर मौजूदा एमएसपी किसानों के लिए पर्याप्त नहीं है और किसानों द्वारा वहन की जाने वाली लागत को पूरा नहीं करती है. हम चाहते हैं कि सरकार एमएसपी की गणना करते समय जमीन का किराया, किसानों और खेती में शामिल परिवार के सदस्यों की मजदूरी जैसी लागतों को शामिल करे. मलिक 19 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे, जिसने वित्त मंत्री सीतारमण से मुलाकात की. यह बैठक तीन घंटे से अधिक समय तक चली. मलिक ने कहा कि किसानों ने उन स्थितियों में केंद्र से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है, जहां किसानों को अपनी उपज एमएसपी से नीचे बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

लाभ मार्जिन में क्रमिक वृद्धि पर विचार

मलिक ने कहा कि हमने यह भी सुझाव दिया है कि सरकार स्वामीनाथन आयोग द्वारा सुझाए गए फॉर्मूले के आधार पर एमएसपी की गणना करने की गारंटी नहीं दे सकती है. इसलिए केंद्र को कम से कम उत्पादन की लागत और 10 प्रतिशत लाभ के आधार पर एमएसपी की गणना करने पर विचार करना चाहिए. केंद्र सरकार (central government) हर साल या दो साल में 10 प्रतिशत का लाभ मार्जिन बढ़ा सकती है. पहले साल यह उत्पादन की लागत और लाभ का 10 प्रतिशत हो सकता है और दूसरे साल इसे बढ़ाकर लाभ का 20 प्रतिशत किया जा सकता है. सरकार धीरे-धीरे लाभ मार्जिन बढ़ाने पर विचार कर सकती है. चर्चा के दौरान किसान नेताओं ने केंद्र से बागवानी, डेयरी और मधुमक्खी पालन सहित सभी प्रकार की कृषि को इसमें शामिल करने की भी मांग की.

लोकलुभावन योजनाओं की समीक्षा

किसान संगठनों (farmer organizations) ने एक स्वर में यह भी मांग की है कि केंद्र सरकार अपनी पीएम-किसान सम्मान निधि योजना, जो किसानों के खातों में 6,000 रुपये देती है और महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की समीक्षा करे. किसानों ने मांग की है कि 6,000 रुपये के वजीफे को बढ़ाकर कम से कम 12,000 रुपये वार्षिक किया जाए तथा केंद्र से आग्रह किया जाए कि वह छोटे किसानों को पैसा देने पर विचार करे, ताकि वे फसल बीमा योजना का प्रीमियम भर सकें. मलिक ने कहा कि हमने सरकार से कहा है कि 6,000 रुपये की वार्षिक राशि पर्याप्त नहीं है और इसे बढ़ाकर 12,000 रुपये किया जाना चाहिए तथा सरकार को फसल बीमा योजना का प्रीमियम देना चाहिए, ताकि इसे किसानों के लिए अधिक लाभकारी बनाया जा सके. फिलहाल, अधिकांश किसानों को लगता है कि फसल बीमा योजना किसानों के पक्ष में काम नहीं करती है और उन्हें इससे कोई लाभ नहीं होता है. केंद्र सरकार के साथ बातचीत में किसानों ने एक प्रतिशत ब्याज दर पर आसान ऋण की भी मांग की है.

विभाजन के संकेत

किसानों के बीच संभावित विभाजन को दर्शाते हुए कुछ प्रदर्शनकारी किसानों (Farmers protest) ने केंद्र के साथ बातचीत करने वालों पर सरकार के पक्ष में झुकाव रखने का आरोप लगाया है. किसान नेता रमनदीप सिंह मान ने द फेडरल से कहा कि पिछले 16 दिनों से किसान हरियाणा-पंजाब सीमा पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन सरकार की ओर से कोई बातचीत करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है. हालांकि किसानों के कुछ समूह और संगठन (farmer organizations) केंद्र सरकार से मिल रहे हैं. लेकिन यह कहना मुश्किल है कि केंद्र सरकार कितने सुझावों पर विचार करेगी.

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