
UDAN budget reduction: ऊंची उड़ान के सपनों में लगी बजट की बंदिश
UDAN RCS: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा कि उड़ान योजना ने 1.5 करोड़ मध्यमवर्गीय नागरिकों को यात्रा करने के सपने को पूरा करने में मदद की.
Union Budget: केंद्र सरकार द्वारा उड़ान RCS (उड़े देश का आम नागरिक रीजनल कनेक्टिविटी स्कीम) के बजट आवंटन में भारी कटौती इस योजना की प्रभावशीलता को लेकर बढ़ते संदेह को दर्शाती है. भले ही सरकार इसकी कमियों को स्वीकार न कर रही हो. बता दें कि वित्त वर्ष 2025-26 के केंद्रीय बजट में 32% की कमी कर इसके लिए बजट आवंटन ₹540 करोड़ कर दिया गया है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा कि उड़ान योजना ने 1.5 करोड़ मध्यमवर्गीय नागरिकों को तेजी से यात्रा करने के उनके सपने पूरे करने में मदद की. उन्होंने घोषणा की कि इस योजना की सफलता से प्रेरित होकर, इसे संशोधित किया जाएगा. ताकि अगले 10 वर्षों में 120 नए डेस्टिनेशन को जोड़ा जा सके और 4 करोड़ यात्रियों को हवाई यात्रा की सुविधा मिले. साथ ही, यह योजना हेलिपैड और छोटे हवाई अड्डों को भी सहायता प्रदान करेगी. विशेष रूप से पहाड़ी और पूर्वोत्तर क्षेत्रीय जिलों में.
संशोधन की जरूरत क्यों?
अगर यह योजना वास्तव में सफल रही होती तो इसमें बजट आवंटन बढ़ाया जाता, न कि इसे संशोधित करने की आवश्यकता पड़ती. सितंबर 2024 की एक रिपोर्ट में रेटिंग और रिसर्च एजेंसी ICRA ने बताया कि उड़ान योजना को लागू करने में कई चुनौतियां सामने आईं, जिसके कारण इसकी पैठ सीमित रही. कम क्षमता वाली उड़ानें, नए हवाई अड्डों के वाणिज्यिक परिचालन में देरी और बुनियादी ढांचे की अन्य बाधाओं के कारण यह योजना अपने उद्देश्यों को पूरी तरह हासिल नहीं कर पाई. वित्तीय रूप से अस्थिर एयरलाइंस और सीमित फ्लीट उपलब्धता ने भी उड़ान की सफलता को बाधित किया. रिपोर्ट के अनुसार, उड़ान 5.0 तक केवल 41% आवंटित मार्गों पर ही परिचालन शुरू हो पाया.
अस्थिर यात्री संख्या
ICRA की रिपोर्ट में बताया गया कि उड़ान योजना के तहत यात्री संख्या लगातार अस्थिर रही है.
- FY18: 2.63 लाख यात्री
- FY22: 33 लाख यात्री
- FY24: 18.13 लाख यात्री (गिरावट)
इसके पीछे प्रमुख कारण यह था कि तीन साल की अवधि पूरी होने के बाद कई मार्ग बंद हो गए और FY23 और FY24 में अपेक्षाकृत कम नए मार्ग आवंटित किए गए.
बुनियादी ढांचे की देरी
ICRA की एक अन्य रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि उड़ान योजना के धीमे क्रियान्वयन का मुख्य कारण हवाई अड्डों के उन्नयन में देरी और आवश्यक नियामकीय स्वीकृतियां प्राप्त करने में कठिनाई रही. कई मार्गों पर कम मांग और अप्रत्याशित मौसम संबंधी परिस्थितियों ने भी संचालन को प्रभावित किया. जिससे कुछ एयरलाइंस को उड़ानें बंद करनी पड़ीं.
कैग रिपोर्ट: योजना की कई खामियां उजागर
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट के अनुसार, उड़ान-3 तक कुल 774 आवंटित मार्गों में से 52% (403 मार्ग) पर परिचालन शुरू ही नहीं हो सका. 371 मार्गों में से केवल 112 मार्ग (30%) ही तीन साल की पूरी रियायती अवधि तक चल सके. इन 112 मार्गों में भी सिर्फ 54 मार्ग (7%) ही मार्च 2023 तक जारी रह पाए. इसके अलावा, हेलिपोर्ट संचालन की भी भारी विफलता रही. हेलीकॉप्टर ऑपरेटरों द्वारा प्रस्तावित अधिकांश हेलिपोर्ट या तो अनुपयोगी रहे या सीमित उपयोग में आए.
उत्साही शुरुआत लेकिन अधूरे वादे
साल 2016 में शुरू की गई यह योजना, भारत के छोटे शहरों और दूरदराज के क्षेत्रों को हवाई यात्रा से जोड़ने के लिए क्रांतिकारी पहल के रूप में लाई गई थी. सरकार का दावा था कि यह नीति छोटे हवाई मार्गों को वित्तीय प्रोत्साहन और कम परिचालन लागत के माध्यम से सुलभ बनाएगी. लेकिन एक दशक बाद भी, योजना पूरी तरह सफल नहीं हो पाई और अब सरकार ने इसके बजट में कटौती कर दी है.
उड़ान के सामने प्रमुख चुनौतियां
शुरुआत में योजना ने छोटे शहरों को राष्ट्रीय विमानन नेटवर्क से जोड़ने की उम्मीद जगाई थी. 2014 में 74 हवाई अड्डों की संख्या बढ़कर 2022 में 141 हो गई. नई हवाई मार्ग तेजी से शुरू किए गए. हालांकि, यात्रियों की संख्या निराशाजनक रही. FY25 में नवंबर 2024 तक केवल 13 लाख यात्रियों ने उड़ान योजना के तहत यात्रा की. जबकि लक्ष्य 30 लाख था.
ऑपरेशनल गलतियां
उड़ान योजना की संरचना वायबिलिटी गैप फंडिंग (VGF) मॉडल पर आधारित थी. जिसके तहत एयरलाइनों को पहले तीन वर्षों के लिए सब्सिडी दी गई थी. हालांकि, जैसे ही यह सब्सिडी खत्म हुई, एयरलाइंस ने अपनी सेवाएं घटा दीं या पूरी तरह बंद कर दीं. कई छोटी एयरलाइंस वित्तीय कठिनाइयों के कारण टिक नहीं पाईं. बड़े घरेलू एयरलाइंस लॉस-मेकिंग रूट्स में रुचि नहीं ले रही थीं. 19 में से केवल 5 ऑपरेटर सक्रिय बचे. जबकि 9 ऑपरेटरों ने उड़ान ही नहीं भरी.
अन्य परिवहन विकल्पों से प्रतिस्पर्धा
एक्सप्रेसवे और हाई-स्पीड रेल नेटवर्क के विस्तार ने हवाई यात्रा की आवश्यकता को कम कर दिया. सड़क और रेलवे सस्ता और भरोसेमंद विकल्प बने रहे.
नीतिगत पुनर्विचार की जरूरत?
सरकार अब समुद्री विमानों और हेलीकॉप्टर सेवाओं जैसी विशेष योजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जिससे यह संकेत मिलता है कि पारंपरिक उड़ान मार्ग टिकाऊ नहीं रह गए. कैप्टन जीआर गोपीनाथ (एयर डेक्कन के संस्थापक) ने कई बार संरचनात्मक समस्याओं और नियामक बाधाओं की ओर इशारा किया है. उनका कहना है कि बड़ी एयरलाइंस के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए छोटे एयरलाइंस को लगातार सरकारी समर्थन की जरूरत होगी, अन्यथा छोटे ऑपरेटर बाजार से बाहर हो जाएंगे और क्षेत्रीय विमानन केवल बड़ी एयरलाइनों के हाथों में सीमित रह जाएगा.
उड़ान योजना को ओवरहॉल करने की जरूरत?
उड़ान योजना की असफलता का मुख्य कारण यथार्थवादी योजना की कमी रही. लोगों की रेल और सड़क यात्रा की प्राथमिकता को सही से आंका नहीं गया. यरलाइंस की लाभ कमाने की जरूरतों को नजरअंदाज किया गया. तीन साल बाद बिना सब्सिडी के एयरलाइंस को टिकाए रखने का कोई रोडमैप नहीं था. अगर उड़ान योजना को सफल बनाना है तो इसे मात्र संशोधित करने के बजाय, पूरी तरह ओवरहॉल करने की जरूरत है. लंबी अवधि के लिए आर्थिक प्रोत्साहन देने की नीति बनानी होगी. एयरलाइनों को निरंतर सेवाएं जारी रखने के लिए जवाबदेह बनाना होगा. बुनियादी ढांचे की बाधाओं को दूर करना अनिवार्य होगा. क्या सरकार उड़ान योजना को फिर से मजबूत कर पाएगी या यह योजना इतिहास बन जाएगी? यह तो आने वाला समय ही बताएगा.