LAC के बेहद करीब चीन बना रहा हेलीपोर्ट, अरुणाचल के फिशटेल रीजन को क्यों है खतरा
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LAC के बेहद करीब चीन बना रहा हेलीपोर्ट, अरुणाचल के फिशटेल रीजन को क्यों है खतरा

भारत और चीन के बीच सीमा निर्धारण को लेकर कई मुद्दों पर असहमति है। इसका फायदा उठा कर चीन घुसपैठ की कोशिश करता रहता है।


China Heliport Construction: मैक्मोहन लाइन चीन और भारत के बीच सीमा का निर्धारण करती है। लेकिन इस लाइन को लेकर दोनों देशों में गतिरोध है। चीन इसका फायदा उठा कर भारत में कभी लद्दाख इलाके में, कभी उत्तराखंड तो कभी अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ की कोशिश करता है। चीन, घुसपैठ की कोशिश को ग्रेटर तिब्बत के तहज जायज भी ठहराता है, चीन के मुताबिक ये इलाके तिब्बत का दक्षिणी विस्तार है। मैक्सटार ने 15 सितंबर को एक सैटेलाइट तस्वीर साझा की है जिसमें एलएसी से करीब 20 किमी दूर गोंगारीदाबू क्यू नदी के किनारे हेलीपोर्ट बना रहा है जो अंतिम चरण में है। इस इलाके को भारत सरकार की तरफ से विवादित नहीं बताया गया। लेकिन एलएससी के करीब बन रहे इस हेलीपोर्ट को लेकर चिंता इस वजह से है क्योंकि यह अरुणाचल प्रदेश के फिशटेल रीजन के करीब है।

जानकारों का कहना है कि चीन द्वारा हेलीपोर्ट के निर्माण को आप नागरिकों के हिसाब से उचित मान सकते हैं। लेकिन इस बात की गारंटी क्या है कि वो उसका सैन्य इस्तेमाल नहीं करेगा। दूसरी बात ये कि अगर आप अपने घर में दीवाल खड़ी करें और उसकी वजह से पड़ोसी के घर में सूरज का रोशनी ना जाए तो वो कहां तक उचित है। इन सबके बीच पहले अरुणाचल प्रदेश के फिशटेल रीजन को समझिए। दिबांग घाटी में एलएसी के करीब कुछ इलाके खास तरीके के हैं जिन्हें फिशटेल नाम दिया गया। दिबांग घाटी में फिशटेल वन और अंजाव जिले में फिशटेल 2 है। ये दोनों इलाके इसलिए संवेदनशील माने जाते हैं क्योंकि चीन और भारत का नजरिया अलग अलग है।
निर्माणाधीन हेलीपोर्ट का रनवे करीब 600 मीटर लंबा है। जिसका इस्तेमाल हेलीकॉप्टरों के रोलिंग टेक-ऑफ के लिए किया जा सकता है। उच्च ऊंचाई वाले इलाकों के लिए बेहतरीन माना जाता है जहां हेलीकॉप्टरों के उपयोग के लिए कम शक्ति उपलब्ध होती है।इस रनवे के बावजूद नया हेलीपोर्ट ऐसे क्षेत्र में स्थित है जहां ऊंचाई तिब्बती पठार के बड़े भूभाग की तुलना में काफी कम है। इससे हेलीकॉप्टर को ऑपरेट करने में आसानी होती है जबकि पठार के बाकी हिस्से में ऊंचाई के कारण नुकसान है। इस क्षेत्र में सामान्य ऊंचाई 1500 मीटरकी सीमा में है और इसकी वजह से हेलिकॉप्टरों और विमानों द्वारा अधिक पेलोड ले जाया जा सकता है।

चीन ऐसे समय में नए हेलीपोर्ट का निर्माण कर रहा है जब बीजिंग भारत के साथ सीमा पर सैकड़ों 'शियाओकांग' या दोहरे उपयोग वाले गांवों का निर्माण करने में लगा है। ये गांव चीन के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ विवादित क्षेत्रों में अपने दावों को पुख्ता करने का एक साधन हैं। इन गांवों का निर्माण करके और जमीनी तथ्यों को बदलकर, चीन उस काम में शामिल हो गया है जिसे चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ रहे जनरल बिपिन रावत सलामी स्लाइसिंग बताते थे। यह विशेष रूप से भूटान के साम्राज्य में स्पष्ट है जहां इसके सीमावर्ती क्षेत्रों के असुरक्षित हिस्सों जिसमें इसके शाही परिवार की पैतृक भूमि भी शामिल है पर चीनियों ने कब्जा कर लिया है। एक व्यापक सड़क-नेटवर्क से जुड़े टाउनशिप का निर्माण किया है। जानकार कहते हैं कि चीन कैसे चुपचाप जमीन पर नए तथ्य बना रहा है। सैन्य गतिरोध को कम करने के मौजूदा प्रयास यह सवाल उठाते हैं कि 2020 से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन द्वारा बनाई गई नई सैन्य वास्तविकताओं को देखते हुए एक संभावित समझौते से क्या हासिल हो सकता है।

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