हर संस्था में होती है सुधार की गुंजाइश लेकिन इसका मतलब बुनियादी ढांचे में कमी नहीं : सीजेआई
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अन्य क्षेत्रों के विपरीत, न्यायपालिका में आगे बढ़ने के साथ न्यायाधीश का कार्यभार मात्रा और जटिलता दोनों के संदर्भ में बढ़ जाता है.
CJI DY Chandrachud : हर संसथान में सुधार की गुंजाइश होती है लेकिन इसका मतलब ये कतई नहीं है कि उस संसथान के बुनियादी ढांचे में कोई कमी है. ये बात भारत के मुख्यन्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूड़ ने महाराष्ट्र में एक समारोह के दौरान एक सवाल के उत्तर में कही.
कोलाजिय्म को लेकर किया गया था सवाल
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूड़ ने शनिवार को मराठी दैनिक 'लोकसत्ता' द्वारा आयोजित श्रृंखला में उद्घाटन व्याख्यान देने के बाद बातचीत के दौरान कॉलेजियम प्रणाली के बारे में बात कर रहे थे.
सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर एक प्रश्न के उत्तर में सीजेआई डीवाई चन्द्रचूड़ ने कहा कि यह एक संघीय प्रणाली है, जहां विभिन्न स्तरों की सरकारों (केन्द्र और राज्य दोनों) और न्यायपालिका को जिम्मेदारी दी गई है.
आम सहमति और परिपक्वता की जरुरत
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, "यह परामर्शात्मक वार्ता की प्रक्रिया है, जहां आम सहमति बनती है, लेकिन कई बार आम सहमति नहीं भी बन पाती, लेकिन ये व्यवस्था का हिस्सा है. हममें यह समझने की परिपक्वता होनी चाहिए कि यह हमारी व्यवस्था की ताकत का प्रतिनिधित्व करता है."
सीजेआई ने कहा कि "मैं चाहता हूं कि हम आम सहमति बनाने में अधिक सक्षम हों, लेकिन मुद्दे की बात ये है कि न्यायपालिका के विभिन्न स्तरों और सरकारों के विभिन्न स्तरों पर इस मामले को बहुत ही परिपक्वता के साथ निपटाया जाना चाहिए."
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यदि किसी विशेष उम्मीदवार के बारे में कोई आपत्ति है, तो "बहुत अधिक परिपक्वता के साथ" चर्चा की जाती है. "हमें यह समझना होगा कि हमने जो संस्था बनाई है उसकी आलोचना करना बहुत आसान है...हर संस्था बेहतरी की क्षमता रखती है. लेकिन यह तथ्य कि संस्थागत सुधार संभव हैं, हमें इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहिए कि संस्था में बुनियादी तौर पर कुछ गलत है."
उन्होंने कहा, "यह तथ्य कि ये संस्थाएं पिछले 75 वर्षों से समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं, हमारे लिए लोकतांत्रिक शासन प्रणाली पर भरोसा करने का एक कारण है, जिसका न्यायपालिका भी एक हिस्सा है."
न्यायपालिका में पदोन्नति के साथ साथ बढ़ता जाता है कार्यभार
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अन्य क्षेत्रों के विपरीत, न्यायपालिका में आगे बढ़ने के साथ न्यायाधीश का कार्यभार मात्रा और जटिलता दोनों दृष्टि से बढ़ता जाता है. "हमारे न्यायाधीश छुट्टियों में भी घूमते-फिरते या लापरवाही नहीं बरतते, बल्कि वे अपने काम के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध रहते हैं."
क्या न्यायाधीशों को कानून के बारे में सोचने के लिए मिल पाता है समय
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उनके द्वारा पारित आदेश अगले दशकों में देश को परिभाषित करेंगे, लेकिन न्यायाधीशों को (अपने काम के अलावा) कानून के बारे में सोचने या पढ़ने के लिए शायद ही समय मिलता है.
सीजेआई ने पूछा, "क्या हम अपने न्यायाधीशों को कानून के बारे में सोचने या पढ़ने के लिए पर्याप्त समय देते हैं या आप चाहते हैं कि वे मामलों के निपटारे में महज एक यांत्रिक मशीन बनकर रह जाएं."
खामियों के बावजूद सोशल मीडिया से हुआ फायदा
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि अपनी कमियों के बावजूद, सोशल मीडिया का उदय समाज के लिए अच्छा है.
उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि सोशल मीडिया के कारण न्याय की पूरी दुनिया में बदलाव आया है. न्यायाधीशों को इस बात का बहुत ध्यान रखना होगा कि वे क्या कहते हैं, उचित भाषा का प्रयोग करें."
उन्होंने कहा, "मुझे अब भी लगता है कि सोशल मीडिया का आगमन समाज के लिए अच्छा है, क्योंकि यह उपयोगकर्ता को समाज के एक बड़े वर्ग तक पहुंचने में सक्षम बनाता है."
(शीर्षक को छोड़कर, इस कहानी को फेडरल स्टाफ द्वारा संपादित नहीं किया गया है और एक सिंडिकेटेड फीड से स्वतः प्रकाशित किया गया है।)
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