Darjeeling Tea Coffee Climate Change
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क्या दार्जिलिंग की चाय पर क्लाइमेट चेंज का असर दिखने लगा है?

क्या दार्जिलिंग की चाय को पीछे छोड़ रही है दार्जिलिंग की कॉफी? जानें

दार्जिलिंग की मशहूर मसकैटेल फ्लेवर्ड चाय का उत्पादन सिर्फ 5.6 मिलियन किलोग्राम रह गया? 169 साल के इतिहास में यह अपनी सबसे निचली दर है...


Darjeeling Coffee And Tea : क्या आपने कभी सोचा है कि दार्जिलिंग के पहाड़ों में सिर्फ चाय नहीं, अब कॉफी भी खूब मिलती है? जी हाँ, वही दार्जिलिंग जिसकी हरी-भरी चाय की खेतों ने हमें सदियों से मोह लिया, वहां अब कांच की लाल चेरी और चमकदार पत्तों वाली कॉफी की फसल भी अपना सिक्का जमा रही है। ऐसा क्यों है और ये बदलाव कितना प्रभावी रहेगा, यहां जानें...

पहले लीजिए एक मज़ेदार तथ्य: दार्जिलिंग व कलिंपोंग ज़िलों में अब कुल 500 से भी ज़्यादा एकड़ ज़मीन पर कॉफी की खेती हो रही है। सोचिए, जो सब कुछ दस साल पहले केवल 2 एकड़ लतपनचकड़ में शुरू हुआ था, आज 500 एकड़ तक पहुँच गया- क्या बात है!

सकारात्मक बदलाव का सबसे बड़ा हक़दार हैं हमारे स्थानीय किसान, जैसे कि कलिंपोंग के संगसेई क्षेत्र के अर्जुन राई, जिन्होंने 2018–19 में आधे एकड़ बंजर जमीन पर पहली बार अरबिका कॉफी के पौधे लगाए। तीन साल बाद उनके पौधों ने पहली चेरी दी, और छह साल में पूरे पैदावार पर पहुँच गए। पिछले साल अर्जुन जी ने लगभग 100 किलो चेरी इकट्ठा की और ₹50 प्रति किलोग्राम की दर से बेचकर अच्छी-खासी कमाई की!

और जब शुरुआत में कच्चे चेरी के लिए दाम कम मिल रहे थे, तो COMP निदेशक डॉ. सैमुअल राई ने क्या किया? उन्होंने खुद हाथ से पल्प किया, रोस्ट किया और पाउडर बना कर बेच दिया- यानी सुपरमार्केट नहीं, लोकल मार्केट! इससे किसानों को बेहतर रेट मिला और कॉफी ने अपना स्वाद भी जमाया।

सरकारी भी अब पीछे नहीं हैं। पंचायत व ग्रामीण विकास विभाग किसानों का चयन कर उन्नत ट्रेनिंग दे रहा है। ताकि बाजार तक सही लिंकिंग हो सके। मंत्री प्रदीप मजूमदार के मुताबिक, अब मकसद सतत उत्पादन और बेहतर रिटर्न पक्का करना है। जीरा या अदरक वाले किसान भी अब कॉफी से आकर्षित हो रहे हैं, क्योंकि मसालों में वायरस-आधारित फ़सल रोगों का ख़तरा रहता है पर कॉफी अपेक्षाकृत सुरक्षित है।

गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (GTA) ने भी बड़ी भूमिका निभाई। सी. मुरुगन के नेत्तृत्व में 2018 में चिकमगलूर से 7.2 लाख चंद्रगिरी अरबिका के पौधे लाए गए, जो 500 किसानों में बाँटे गए। आज करीब 1,000 किसान निजी तौर पर 345 एकड़ पर कॉफी उगा रहे हैं, जबकि COMP खुद 194 एकड़ संभालता है-जहां से 6–7 टन कच्ची चेरी (या 2.5–3 टन तैयार पाउडर) निकलती है।

इतिहास की बात करें तो, आपको जानकर हैरानी होगी कि ब्रिटिशers ने 1840 के दशक में चाय व कॉफी दोनों की खेती लगभग एक साथ शुरू की थी। चाय ने उस समय सफलता पाई, पर कॉफी ठंडी व पालेदार जलवायु में नहीं पनपी। लेकिन आज हालात बदल रहे हैं। दार्जिलिंग में औसत वार्षिक तापमान धीरे-धीरे बढ़कर अब 18–23°C के अरबिका वेरिएंट के अनुकूल हो गया है और 160–250 सेमी वर्षा भी संतुलित रूप से हो रही है। IPCC की रिपोर्ट कहती है कि 2100 तक यहां का तापमान 5.4°C तक बढ़ सकता है, जिनमें से 90% बढ़ोतरी 2015 के बाद दर्ज हुई है। वहीं, कैलिंपोंग रोबस्टा के लिए बढ़िया है- 20–30°C और 100–200 सेमी सालाना बारिश।

अब ज़रा चाय की बात करें: क्या आप जानते हैं कि 2024 में दार्जिलिंग की मशहूर मसकैटेल फ्लेवर्ड चाय का उत्पादन सिर्फ 5.6 मिलियन किलोग्राम रह गया? 169 साल के इतिहास में यह अपनी सबसे निचली दर है। चाय के लिए जरूरी होता है दिन-रात के बीच कम से कम 4°C का अंतर, 80–90% आर्द्रता, और साल भर समान्य रूप से फैली 304–355 सेमी वर्षा। पर आज 250 इंच की भारी बरसात और फिर कम से कम 80 इंच का सूखा- इस असंतुलन ने चाय के स्वाद और पैदावार दोनों पर आघात किया है।

चाय बोर्ड ने क्या-स क्या सुझाव दिए? सुख-रोधक किस्में लगाएं, छाँव के पेड़ बढ़ाएं, ड्रेनेज सिस्टम ठीक करें, बारिश का पानी संजोएं, कीट नियंत्रण के रासायनिक विकल्प कम करें और 20 कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाया है। लेकिन कुछ बागानों में रासायनिक रहित उपाय कारगर नहीं साबित हो रहे, जिससे कीटों ने नुकसान पहुंचाया है।

तो सवाल यह है कि क्या कॉफी चाय की जगह लेगी? गोरखा फार्मों पर कॉफी-मशीन की गुनगुनाहट बढ़ रही है, जबकि चाय-बगानों में सन्नाटा भी। “यह बहुत संवेदनशील विषय है,” डॉ. राई कहते हैं, “पर कॉफी की पकड़ देखते हुए इसे नकारा नहीं जा सकता।”

तो अगली बार जब आप दार्जिलिंग जाएँ तो चाय का एक कप जरूर लीजिए। लेकिन कॉफी के चमकदार चेरी व सुगंधित बीन्स पर भी एक नज़र डालना मत भूलिए!


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