Cloudburst
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पहाड़ी इलाकों में आमतौर पर बादल फटने की घटना होती है।

Cloudburst: एक पल में कुदरती कहर, जब आसमान से बरसता है संकट

बारिश के दिनों में बादल फटने की घटनाएं होती रहती हैं। वैसे तो बादल कहीं भी फट सकता है। यह बात अलग है कि पहाड़ी इलाके अधिक प्रभावित होते हैं।


What is Cloudburst: मौसम पर किसी का नियंत्रण नहीं है। हम सब इसके प्रत्यक्षदर्शी हैं। बिन मौसम बारिश, बिन मौसम गर्मी, बिन मौसम ठंड, कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ इस तरह की खबरें कानों तक टकराती है। दो चार दिन सुर्खियों में रहने के बाद मानव स्मृति से लोप। इन सबके बीच यहां पर एक खास मौसमी घटना का जिक्र करेंगे जिसे बादल फटना कहते हैं। आपने तीन चार दिन पहले हिमाचल प्रदेश की पार्वती घाटी को देखा होगा। यह भी देखा होगा कि किस तरह एकाएक अथाह पानी आशियानों को तिनके की तरह बहा कर ले जा रहा था। यही नहीं उत्तराखंड की बड़कोट तहसील में कैसे बादल फटने की वजह से तबाही मची। यहां सवाल यह कि बादल फटना क्या होता है और पहाड़ी इलाके क्यों अधिक प्रभावित होते हैं।

बादल फटने का अर्थ

बादल का फटना एक अत्यधिक तीव्र वर्षा की स्थिति होती है। जब बहुत कम समय में सीमित क्षेत्र में अत्यधिक मात्रा में पानी बरसता है। लगभग 100 मिमी या उससे अधिक बारिश प्रति घंटे। यह आमतौर पर तब होता है जब आकाश में मौजूद भारी बादल एक ही स्थान पर लंबे समय तक रुक जाते हैं और अचानक उनका पानी एक झटके में नीचे गिरता है, मानो कोई बड़ा जलाशय फट गया हो।

बादल फटने से क्या नुकसान होता है?

अचानक आई बारिश से नदियाँ और नाले उफान पर आ जाते हैं, जिससे बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। मिट्टी और चट्टानों का खिसकना आम हो जाता है, जिससे सड़कें और गांव तबाह हो सकते हैं। मकान बह जाते हैं, लोग बह जाते हैं, यातायात बाधित होता है और संचार सेवाएं टूट जाती हैं। खेतों में खड़ी फसलें नष्ट हो जाती हैं, मिट्टी की उर्वरता घटती है।

पहाड़ी इलाकों में बादल फटना क्यों आम है?

इस संबंध में स्काई मेट के वरिष्ठ अधिकारी महेश पलावत दे फेडरल देश को बताते हैं कि पहाड़ों की ऊँचाई पर हवा ऊपर उठती है और ठंडी होकर घनीभूत हो जाती है, जिससे बारिश होती है। जब नमी अधिक हो और हवा एक ही जगह पर फंसी हो तो बादल एक जगह ज्यादा देर तक बने रहते हैं। हिमालय जैसे क्षेत्रों में वायुमंडलीय दबाव में तेजी से बदलाव होता है, जिससे अस्थिर मौसम बनता है। मानसूनी हवाएं जब पहाड़ी बाधाओं से टकराती हैं, तो तेजी से ऊपर उठती हैं और घनघोर वर्षा करती हैं।

पेड़ों की कटाई और अंधाधुंध निर्माण ने ज़मीन की जल अवशोषण क्षमता को घटा दिया है, जिससे जलभराव और बाढ़ की स्थिति बढ़ जाती है।

भारत में बादल फटने की प्रमुख घटनाएं

2013 – केदारनाथ आपदा (उत्तराखंड), हजारों की मौत और तीर्थस्थल तबाह।

2021 – धराली और करनप्रयाग (उत्तराखंड), बादल फटने से भारी तबाही।

2023 – जम्मू-कश्मीर और हिमाचल, बादल फटने से पुल टूटे, गांव उजड़े।


प्राकृतिक आपदा

बादल फटना एक प्राकृतिक आपदा है जो चेतावनी के बिना आती है। इसकी रोकथाम संभव नहीं है, लेकिन पूर्व चेतावनी तंत्र, पर्यावरण संरक्षण और आपदा प्रबंधन से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। स्काइमेट के महेश पलावत कहते हैं कि मौसमी समीकरण के दूसरे से जुड़े हैं। जैसे अगर पहाड़ों के ऊंचाई वाले इलाकों में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो तो उसका असर तराई वाले इलाकों में होता है। अगर पहाड़ी इलाकों की बात करें तो जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पूर्वाेत्तर के इलाकों के साथ साथ दक्षिण भारत में पश्चिमी घाट में खतरे का स्तर अधिक बना रहता है।

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