
बिहार हार पर काँग्रेस में घमासान, आत्ममंथन से फिर भी परहेज़
बिहार में हार से कांग्रेस में उथल-पुथल मच गई है, नेताओं की जवाबदेही की मांग बढ़ रही है, नेताओं का आरोप है कि एक ताकतवर गुट ईमानदार रिव्यू को रोक रहा है।
Bihar Election Result Aftermath : बिहार विधानसभा चुनाव में बुरी तरह पिछड़ने के एक हफ़्ते बाद भी राज्य इकाई में चल रहे उथल-पुथल के बीच कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व अब भी गंभीर आत्ममंथन से बचता दिख रहा है।
राजद-नीत महागठबंधन के तहत 61 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद कांग्रेस का सिर्फ़ 6 सीटों पर सिमट जाना पार्टी के लिए बड़ा झटका था। लेकिन इतनी करारी हार के बावजूद, ज़िम्मेदारी तय करने की बजाय पार्टी इसे लगभग पूरी तरह चुनाव आयोग और ‘समझौता किए गए चुनावी सिस्टम’ पर डालती दिख रही है—ताकि राहुल गांधी द्वारा चुनी गई चुनावी टीम पर सवाल न उठें।
भीतरखाने दबाव बढ़ा
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं बिहार से लेकर AICC तक को हैरानी है कि हार के 10 दिन बाद भी परंपरागत नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए किसी पदाधिकारी ने इस्तीफ़ा देने की पेशकश तक नहीं की।
बिहार के कटिहार से कांग्रेस सांसद और पार्टी के दिग्गज नेता तारिक अनवर इस पर सबसे मुखर आलोचना कर रहे हैं।
अनवर ने द फ़ेडरल से कहा कि चालीस साल की राजनीतिक ज़िंदगी में मैंने इतनी बड़ी और अप्रत्याशित हार के बाद इतनी गैर-गंभीरता कभी नहीं देखी। न बिहार प्रभारी (कृष्णा अलावारू) और न ही PCC प्रमुख (राजेश राम) ने अब तक ज़िम्मेदारी ली। बैठक तक नहीं बुलाई गई कि आखिर चूक कहाँ हुई।
पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि राहुल गांधी के करीब माने जाने वाला एक समूह लगातार यह नैरेटिव फैलाने में लगा है कि बिहार की हार पूरी तरह वोट चोरी और चुनाव आयोग-बीजेपी की मिलीभगत का नतीजा है, जबकि चुनाव प्रभारी नेताओं की नाकामी पर पर्दा डालने की कोशिश हो रही है।
चुनाव नतीजों के तुरंत बाद राहुल ने X पर लिखा था कि परिणाम वास्तव में चौंकाने वाले हैं और चुनाव शुरू से ही निष्पक्ष नहीं थे। जयराम रमेश ने भी आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और चुनाव आयोग द्वारा संगठित वोट चोरी हुई है।
कांग्रेस में बढ़ती दरार
पार्टी में एक बड़ा वर्ग यह तो मानता है कि चुनावी प्रक्रिया में कई गड़बड़ियाँ हुईं, पर उनका कहना है कि “वोट चोरी” को हर हार का बहाना बना देना आत्मघाती है।
एक वरिष्ठ AICC पदाधिकारी ने कहा कि किसी को यह नहीं कह रहे कि गड़बड़ी नहीं हुई, लेकिन वही बहाना बार-बार करके हम अपनी कमियों से आँखें चुरा रहे हैं। अगर चुनाव इतना ही रिग्ड हैं, तो CWC की बैठक बुलाकर साफ कहें कि ऐसे चुनावों में भाग ही क्यों लें? लेकिन अगर लड़ रहे हैं, तो हर बार उसी पर दोष मत डालिए।
नेता ने आगे कहा कि बिहार चुनाव के दौरान ही PCC प्रमुख, प्रभारी कृष्णा अलावारू, CLP नेता शकील अहमद खान और कई दिग्गजों के खिलाफ कार्यकर्ता खुलकर नाराजगी दिखा रहे थे।
परिणाम आने के बाद ये सभी नेता नदारद हैं और कई तो अपना चुनाव भी हार गए।
सूत्रों के मुताबिक़, नतीजों के बाद पार्टी कार्यकर्ता पटना के उस होटल में अलावारू से मिलने गए, जहाँ वह ठहरे थे, लेकिन वे मिले ही नहीं। नाराज़ नेताओं ने होटल में जमकर खाना मंगवाया और बिल अलावारू के कमरे में चढ़ा दिया।
महागठबंधन में भी मतभेद
शनिवार को कांग्रेस मुख्यालय सादाक़त आश्रम में नेताओं ने अलावारू, राजेश राम, अखिलेश प्रसाद सिंह, शकील अहमद खान और पप्पू यादव के खिलाफ ज़बरदस्त विरोध प्रदर्शन किया। दिलचस्प यह कि प्रदर्शनकारियों से बात करने सिर्फ़ पप्पू यादव पहुँचे, जो पार्टी पदाधिकारी तक नहीं हैं।
इसी बीच झारखंड के विधायक इरफान अंसारी ने AIMIM को महागठबंधन में शामिल न करने के लिए तेजस्वी यादव को जिम्मेदार ठहराया। उनका कहना है कि इससे सीमांचल की कई मुस्लिम-बहुल सीटों में नुकसान हुआ।
हालाँकि कांग्रेस के अंदरूनी सूत्र मानते हैं कि AIMIM ने कुछ सीटों पर नुकसान पहुँचाया, पर AIMIM से गठबंधन का विकल्प कांग्रेस के लिए कभी व्यावहारिक नहीं था क्योंकि बीजेपी इसे बड़े हथियार की तरह इस्तेमाल करती।
नेतृत्व को लेकर असंतोष चरम पर
एक पूर्व सांसद ने कहा कि RJD से गठबंधन में कई चुनौतियाँ थीं; जंगलराज का नैरेटिव, सीट-बंटवारे में देरी लेकिन AIMIM से हाथ मिलाना संभव ही नहीं था। सवाल यह है कि क्या हमारे पास अकेले लड़ने की क्षमता थी?
बिहार चुनाव के लिए बनाए गए वार रूम के एक सदस्य ने बताया कि पहले चरण की वोटिंग से पहले ही पार्टी को एहसास हो गया था कि हालात बिगड़े हुए हैं, पर नेतृत्व ने सुझावों पर ध्यान नहीं दिया।
कई नेताओं का मानना है कि हर हार के बाद भी पार्टी में ज़िम्मेदारी निर्धारित नहीं की जाती। हरियाणा, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और दिल्ली में हालिया हारों के लिए भी वही नेता जिम्मेदार हैं जिन्हें बार-बार अहम पद दिए जाते हैं जैसे केसी वेणुगोपाल और अजय माकन।
सूत्रों का कहना है कि असली कारण यह है कि ईमानदार समीक्षा करने पर राहुल गांधी के चुनावी प्रबंधन पर सवाल उठेंगे जिससे हाईकमान हर कीमत पर बचना चाहता है।
नतीजों के कुछ ही दिनों बाद कांग्रेस द्वारा 14 दिसंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में महारैली करने का निर्णय भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, ताकि बिहार की हार पर उठने वाले कठिन सवालों से बचा जा सके।
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