
वोटर लिस्ट विवाद: चुनाव आयोग की सफाई कितनी विश्वसनीय?
चुनाव आयोग ने वोट कटने के आरोपों को खारिज किया। विशेषज्ञों और विपक्ष ने आयोग की दलीलों को कमजोर बताया। 65 लाख वोटर डिलीशन का मुद्दा अब चुनावी राजनीति का बड़ा विषय बनता जा रहा है। आयोग पर निष्पक्षता और जवाबदेही को लेकर दबाव बढ़ा है।
बिहार में 65 लाख वोटरों के नाम कथित रूप से वोटर लिस्ट से हटाए जाने को लेकर उठे विवाद के बीच मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस पर सफाई दी। उन्होंने कहा कि स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया को जल्दबाजी में नहीं किया जा रहा और इस मुद्दे पर चुनाव आयोग की पीठ पर बंदूक रखकर राजनीति की जा रही है और मतदाताओं को निशाना बनाया जा रहा है। लेकिन बिहार के सात करोड़ वोटर चुनाव आयोग के साथ हैं।
निजता का अधिकार
चुनाव आयोग ने वोटर सत्यापन प्रक्रिया की सीसीटीवी रिकॉर्डिंग साझा करने से इनकार कर दिया। इसके पीछे उन्होंने 2019 में सुप्रीम कोर्ट के एक निर्देश का हवाला देते हुए कहा कि इससे निजता का उल्लंघन होगा। आरोपों को खारिज करते हुए ज्ञानेश कुमार ने कहा कि वोट चोरी जैसे आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है। यह प्रेस कॉन्फ्रेंस ऐसे समय में हुई, जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार के सासाराम से ‘वोट अधिकार यात्रा’ की शुरुआत की।
प्रक्रिया पर सवाल
चुनाव डेटा वैज्ञानिक डॉ. प्यारे लाल गर्ग ने आयोग की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त ने तथ्यों की जगह राजनीतिक भाषा का इस्तेमाल किया। पिछली वोटर लिस्ट जांचों में खुद आयोग ने स्वीकार किया था कि करीब 65 लाख नाम अवैध या फर्जी थे, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। चुनाव आयोग का काम नियमों का पालन करना है, न कि यह कहना कि "वोटर हमारे साथ हैं।"
गोपनीयता पर उठे सवाल
राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ शर्मा ने कहा कि आयोग दावा करता है कि वह 7 करोड़ वोटरों को संभाल रहा है, फिर भी 65 लाख नामों की गलत डिलीशन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि अगर कोई ड्राइवर हर दसवें दिन गाड़ी ठोक देता है तो यह नहीं कह सकते कि बाकी दिन तो सही चला रहा था। शर्मा ने आयोग के उस तर्क की भी आलोचना की जिसमें नाम कटने की वजह गलतियों को बताया गया, जबकि आधार जैसे बायोमेट्रिक सिस्टम में ऐसी गलती मुश्किल है।
ध्यान भटकाने की कोशिश
वरिष्ठ पत्रकार अशोक मिश्रा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के समय को लेकर भी सवाल उठाया, जो राहुल गांधी की यात्रा के साथ मेल खाता है। उन्होंने कहा कि आयोग को यह बताना चाहिए कि 65 लाख नाम क्यों हटे, न कि केवल अपनी साख की बात करनी चाहिए। ग्रामीण बिहार में लोग केवल आधार या वोटर आईडी के सहारे अपनी पहचान साबित करते हैं। आयोग द्वारा आधार को देर से स्वीकार करना भी इस स्थिति का कारण बना। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस को विपक्ष के अभियान से ध्यान हटाने की कोशिश बताया और कहा कि आयोग की तरफ से दी गई तकनीकी दलीलें आम मतदाता की समस्या का समाधान नहीं करतीं।
गंभीर सवाल
डॉ. गर्ग ने कहा कि यदि 7 करोड़ मतदाता पंजीकृत हैं तो 65 लाख नाम हटना सिर्फ क्लेरिकल गलती या प्रवास से नहीं समझाया जा सकता। कानून के अनुसार, अगर गलती से नाम हटे हों तो आयोग की जिम्मेदारी है उन्हें दोबारा जोड़ना, न कि नागरिकों की। उन्होंने आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस को जवाबदेही से बचने की कोशिश बताया।
आयोग की सफाई से संतुष्ट नहीं विशेषज्ञ
विशेषज्ञों ने कहा कि आयोग का ध्यान कानूनी बहस और गोपनीयता पर था, जबकि ज़रूरत थी पारदर्शिता और समाधान की। शर्मा ने कहा कि लोगों को यह फर्क नहीं पड़ता कि कौन सी पार्टी आयोग पर क्या कह रही है। उन्हें यह भरोसा चाहिए कि चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी होंगे। अब जब राहुल गांधी की वोट अधिकार यात्रा को जन समर्थन मिल रहा है, आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस ने मतदाता अधिकारों और संस्थागत जवाबदेही पर बहस को और तेज कर दिया है।