CWC MEETING 2023 PHOTO
x
CWC इस बात पर चर्चा करेगी कि मनरेगा के मुद्दे पर किस तरह और कब जन गोलबंदी की जाए। (फाइल फोटो : INC)

सरकार के खिलाफ मनरेगा को नया हथियार बनाएगी कांग्रेस, CWC बैठक आज

‘वोट चोरी’ का मुद्दा लोगों के बीच असर न छोड़ पाने के बाद, कांग्रेस की शीर्ष निर्णय लेने वाली संस्था इस बात पर मंथन करेगी कि किस तरह रणनीतिक मोड़ लिया जाए और ग्रामीण रोजगार योजना के मुद्दे पर बीजेपी सरकार को घेरा जाए।


कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने महात्मा गांधी के नाम पर जो ग्रामीण रोजगार गारंटी क़ानून मनरेगा (MGNREGA) बनाया था, उसे बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने बदलकर VB-G RAM G एक्ट, 2025 कर दिया और उसको राष्ट्रपति की मंज़ूरी भी मिल चुकी है। अब कांग्रेस इसी मुद्दे के इर्दगिर्द अपनी आगे की राजनीतिक लड़ाई तय करने का प्लान कर रही है। आज यानी शनिवार 27 दिसंबर को नई दिल्ली में होने वाली कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की बैठक में इसी मुद्दे पर मंथन होने के आसार हैं।

कहा जा रहा है कि बैठक में इस मुद्दे को ज़िंदा रखने और आगे की रणनीति तय करने की कोशिश करेगी। पार्टी के लिए यह ज़रूरी है कि वह बीजेपी सरकार के उस कदम पर प्रतिक्रिया देती दिखे, जिसके तहत उस क़ानून का नाम बदला गया जिसे कांग्रेस की एक ‘मार्की’ यानी सबसे बड़ी उपलब्धि माना जाता था। पार्टी के भीतर के लोगों का कहना है कि यह कांग्रेस के लिए एक अवसर भी है और मजबूरी भी। मजबूरी इसलिए, क्योंकि मनरेगा की सफलता और यूपीए सरकार की विरासत से इसका सीधा जुड़ाव रहा है।

और यह एक अवसर इसलिए भी है क्योंकि इससे पार्टी के सामने दो संभावनाएं खुलती हैं। पहली, यह कांग्रेस के सामाजिक न्याय के एजेंडे और हाशिए पर पड़े तथा ग्रामीण वर्गों का समर्थन दोबारा हासिल करने की कोशिश से पूरी तरह मेल खाता है। 2024 के लोकसभा चुनावों में आंशिक पुनरुत्थान के बाद, कांग्रेस ने दलितों, ओबीसी और अल्पसंख्यकों जैसे हाशिए के वर्गों पर अपना फोकस और तेज़ किया।

नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के भाषण इस बात पर केंद्रित रहे कि नरेंद्र मोदी सरकार की “कॉरपोरेट समर्थक” और “गरीब विरोधी” नीतियों से अमीर और सवर्ण वर्ग को लाभ हुआ है। हालांकि, ‘वोट चोरी’ अभियान को अपेक्षित समर्थन न मिलने के कारण पार्टी अब एक मूल आजीविका के मुद्दे की ओर रुख करना चाहती है। उसका मानना है कि रोटी-रोज़गार जैसे बुनियादी मुद्दों पर लौटना और इसे मनरेगा को कमजोर किए जाने से जोड़ना उस साल में चुनावी तौर पर समझदारी भरा कदम होगा, जब चार राज्यों, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और असम में चुनाव होने हैं।

कांग्रेस का आकलन है कि ग्रामीण आबादी की आजीविका से जुड़े मुद्दों पर सीधा हमला बीजेपी के लिए ज़्यादा चुनौतीपूर्ण होगा, बनिस्बत चुनाव आयोग की आलोचना और सत्तारूढ़ पार्टी पर संस्थानों पर क़ब्ज़े के आरोपों के।

दूसरी बात, ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना पर देशव्यापी अभियान ऐसा मुद्दा हो सकता है जिस पर कांग्रेस को अन्य विपक्षी दलों के साथ साझा ज़मीन मिल जाए। यहां तक कि उन दलों के साथ भी जिनसे उसके रिश्ते हाल के वर्षों में तनावपूर्ण रहे हैं क्योंकि नया क़ानून वित्तीय बोझ राज्यों पर डालता है। इससे INDIA गठबंधन में नई जान पड़ सकती है, जो 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद लगभग निष्क्रिय हो गया है। ऐसा ही एक दल तृणमूल कांग्रेस है। टीएमसी-शासित पश्चिम बंगाल सरकार पहले ही अपने ‘कर्मश्री’ ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम का नाम महात्मा गांधी के नाम पर रख चुकी है।

रणनीतिक मोड़ की तैयारी

संसद द्वारा VB-G RAM G एक्ट को मंज़ूरी मिलने के बाद से बीते एक हफ्ते में पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम, जयराम रमेश, सलमान खुर्शीद और आनंद शर्मा सहित कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता, जैसे पवन खेड़ा और राजीव शुक्ला, पार्टी का पक्ष रखने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों में गए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 19 से 22 दिसंबर के बीच शीर्ष नेताओं ने कम से कम 50 प्रेस कॉन्फ़्रेंस को संबोधित किया।

20 दिसंबर को कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक वीडियो बयान जारी कर कहा कि पार्टी मनरेगा पर बीजेपी सरकार के हमले का जवाब देने के लिए तैयार है। CWC से जुड़े कुछ नेताओं का मानना है कि अगर हम सरकार पर पर्याप्त दबाव बना पाए, तो यह ऐसा मुद्दा है जिस पर उन्हें पीछे हटना पड़ सकता है।

कांग्रेस नेताओं का कहना है कि CWC इस बात पर चर्चा करेगी कि इस मुद्दे पर कैसे और कब लामबंदी की जाए कुछ ऐसा, जो पार्टी ने बड़े पैमाने पर आख़िरी बार सितंबर 2022 से जनवरी 2023 के बीच राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान किया था। हालांकि, स्वभाव से कांग्रेस कोई कैडर-आधारित संगठन नहीं है, जो कम समय में बड़े पैमाने पर गोलबंदी के लिए जानी जाती हो।

एक और चुनौती यह है कि पार्टी को नोटबंदी, GST सुधार और राफ़ेल जैसे मुद्दों पर भी अपने अभियानों की गति बनाए रखने में दिक्कत आई है। पार्टी भले ही अभी चुनावी सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) और ‘वोट चोरी’ के ख़िलाफ़ अपना अभियान छोड़ने को तैयार न हो, लेकिन नेताओं का मानना है कि बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान इसे अपेक्षित समर्थन नहीं मिला। यही वजह है कि पार्टी VB-G RAM G एक्ट के ख़िलाफ़ अभियान की ओर रणनीतिक मोड़ ले रही है।

Read More
Next Story