वायु प्रदूषण को रोकने में बेदम राज्य सरकारें, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार, कार्रवाई का दिया आदेश
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वायु प्रदूषण को रोकने में बेदम राज्य सरकारें, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार, कार्रवाई का दिया आदेश

सर्दियां शुरू होते ही दिल्ली-एनसीआर में भयावह स्थिति हो जाती है. लोगों को 2-3 महीने भयंकर वायु प्रदूषण की समस्या से गुजरना पड़ता है.


Delhi-NCR air pollution: उत्तर भारत में सर्दियों के मौसम की शुरुआत हो चुकी है. खासकर सुबह और शाम के वक्त गुलाबी ठंड पड़ने लगी है. हालांकि, सर्दियां शुरू होते ही दिल्ली-एनसीआर में भयावह स्थिति उत्पन्न हो जाती है. इस दौरान लोगों को भयंकर वायु प्रदूषण की समस्या से गुजरना पड़ता है. आलम यह होता है कि एक्यूआई 500 से ऊपर पहुंच जाता है और लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो जाता है. इतना ही नहीं आलम यह होता है कि पूरा दिल्ली-एनसीआर धुंध की गहरी चादर में समा जाता है और लोगों का गाड़ियां चलाना तक मुश्किल हो जाता है. इसको लेकर कई प्रयास भी किए जाते हैं. यहां तक कि किसानों के पराली जलाने तक में रोक लगाई गई है. लेकिन फिर भी पूरी तरह नियम और कायदे धरातल पर नहीं उतर पाते हैं. ऐसे में वायु गुणवत्ता में गिरावट को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा और पंजाब सरकारों को फटकार लगाई.

दिल्ली- एनसीआर में वायु प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी के बीच सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पंजाब और हरियाणा सरकारों को फटकार लगाई और प्रदूषण विरोधी कानूनों के उल्लंघनकर्ताओं पर मुकदमा चलाने के जून 2021 के आदेशों पर कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए उन्हें आड़े हाथों लिया. सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर उसके आदेश का पालन नहीं किया गया तो हरियाणा के मुख्य सचिव के खिलाफ अवमानना ​​की कार्रवाई की जाएगी. कोर्ट ने पूछा कि राज्य सरकार पराली जलाने वाले लोगों पर मुकदमा चलाने और नाममात्र जुर्माना लगाकर लोगों को क्यों छोड़ रहा है.

कोर्ट ने कहा कि पंजाब और हरियाणा ने साल 2021 से उल्लंघनकर्ताओं, विशेष रूप से पराली जलाने वाले किसानों पर मुकदमा नहीं चलाया और केवल नाममात्र का जुर्माना लगाया है. बता दें कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने प्रदूषण कानून उल्लंघनकर्ताओं पर मुकदमा चलाने के आदेश जारी किए थे. जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस एजी मसीह और जस्टिस ए अमानुल्लाह की पीठ ने सीएक्यूएम निर्देशों का पालन न करने के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए उल्लंघनकर्ताओं पर मुकदमा चलाने के लिए एक सप्ताह की समय सीमा तय की.

जस्टिस ओका ने कहा कि आदेशों के उल्लंघन के लिए मुकदमा क्यों नहीं चलाया जा रहा है? यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है. यह धारा 12 के तहत सीएक्यूएम द्वारा वैधानिक निर्देशों के क्रियान्वयन के बारे में है. हम (सीएक्यूएम) अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करेंगे. उसके बाद ही कार्रवाई होगी. यहां कोई राजनीतिक विचार लागू नहीं होगा. उन्होंने कहा कि क्योंकि अदालत ने हरियाणा सरकार को खेतों में आग लगाने के लगभग 200 दर्ज मामलों के लिए बुलाया, जिसके लिए "केवल नाममात्र का जुर्माना वसूला गया है".

अदालत ने कहा कि राज्यों को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा खेतों में पराली जलाने से होने वाली आग के स्थान और आकार के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई थी. पीठ ने कहा कि तो आप यह नहीं कह सकते कि स्थान नहीं मिले. लेकिन कोई भी मुकदमा चलाने वाला नहीं है, कोई भी (उल्लंघन करने वालों के खिलाफ) कार्रवाई करने वाला नहीं है. वे नाममात्र का जुर्माना भरेंगे. अदालत ने राज्य सरकारों से पूछा कि यह सब क्या चल रहा है? क्या अभियोजन को "किसी और के कहने पर" रोका या धीमा किया जा रहा है. " हम उन्हें भी समन जारी करेंगे. लोगों पर मुकदमा चलाने में यह हिचकिचाहट क्यों है?

बता दें कि इस महीने की शुरुआत में भी CAQM को कानून के "पूरी तरह से गैर-अनुपालन" के लिए फटकार लगाई गई थी. कोर्ट ने कहा कि क्या समितियां गठित की गई हैं? कृपया हमें उठाए गए एक भी कदम को दिखाएं. बस हलफनामा देखें और हमें जारी किए गए एक भी निर्देश को दिखाएं. जब उसे बताया गया कि CAQM तीन महीने में केवल एक बार मिलता है, तो वह प्रभावित नहीं हुई.

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