SP-Congress में बढ़ने लगी दूरी, डिंपल यादव का बयान कर रहा इशारा
Samajwadi Party Congress Relationship: क्या समाजवादी पार्टी कांग्रेस के रिश्तों खटास आ चुकी है। गौतम अडानी जॉर्ज सोरोस पर एमपी डिंपल यादव का बयान इशारा कर रहा है।
Dimple Yadav View on Gautam Adani-George Soros: संसद के दोनों सदनों में कामकाज बाधित हो रहा है। लोकसभा में जहां कांग्रेस गौतम अडानी (Gautam Adani)के मुद्दे पर तल्ख तेवर के साथ विरोध कर रही है। वहीं सत्ता पक्ष यानी बीजेपी ने राज्यसभा में जॉर्ज सोरोस (George Soros)के मुद्दे पर हमलावर है। इन सबके बीच कांग्रेस के सबसे खास सहयोगी समाजवादी पार्टी का नजरिया कुछ अलग है। बुधवार को संसद परिसर में सांसद डिंपल यादव (Dimple Yadav) से पत्रकारों ने सवाल किया कि इन दोनों विषयों पर उनकी पार्टी का नजरिया क्या है। जवाब में उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ना तो अडानी और ना ही सोरोस के मुद्दे से सरोकार है। वो चाहती हैं कि संभल मुद्दे पर, बांग्लादेश के मुद्दे पर चर्चा हो। अब राजनीति में सीधे सीधे नाराजगी जाहिर करने के लिए संकेतों के जरिए और बयानों की मदद ली जाती है तो क्या समाजवादी पार्टी(Samajwadi Party) और कांग्रेस (Congress) के बीच दूरी बढ़ रही है।
सियासत के बारे में सामान्य सी धारणा है कि कोई भी दो दल कभी भी एक सुर में नहीं बोल सकते। कुर्सी की लड़ाई जहां जनता को मत देना है वहां किसी भी दल के बीच संबंध चिरकाल तक के लिए नहीं हो सकते। अगर ऐसा होता तो 2017 में जब समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच यूपी विधानसभा (UP Assembly Elections 2017) के लिए समझौता हुआ तो बिना किसी बाधा के आगे भी जारी रहा होता। लेकिन 2017 में जब नतीजे दोनों दलों के बीच नहीं आए तो रिश्ता टूट गया। यूं कहें कि उस समय प्रचलित स्लोगन दो लड़कों की जोड़ी टूट गई। यानी राहुल गांधी (Rahul Gandhi)और अखिलेश यादव के रिश्ते अलग हो गए। 2017 के बाद 2019 में अखिलेश यादव और राहुल गांधी साथ आ सकते थे। लेकिन अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने बुआ यानी मायावती (Mayawati) के साथ राजनीतिक रिश्ता बनाना फायदे का सौदा माना। हालांकि नतीजों के बाद मायावती खुद अलग हो गईं। साल 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजों मे सपा को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। सपा को उम्मीद थी कि 2022 में बीजेपी का कमल नहीं खिलेगा। लेकिन उनकी साइकिल लखनऊ पहुंचने से पहले पंचर हो गई। यानी इस हार के बाद इस तरह की संभावना बनने लगी कि बिना गठबंधन बात नहीं बन सकती।
2024 के आम चुनाव (General Elections 2024) के पहले इंडिया गठबंधन हिचकोले खाते हुए अस्तित्व में आया। आम चुनाव 2024 में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party)और कांग्रेस (Congress) दोनों को जबरदस्त फायदा हुआ। समाजवादी पार्टी सांसदों की 37 सीट और कांग्रेस 6 सीट बड़े गठबंधन के तौर पर जीत दर्ज की। लोकसभा में राहुल गांधी और अखिलेश यादव बगल में बैठा करते थे। ऐसा लगने लगा कि दोनों की जोड़ी अटूट है। लेकिन हरियाणा के चुनाव (Haryana Assembly Elections 2024) में जब कांग्रेस ने साफ कर दिया कि यहां पर समाजवादी पार्टी को सीट देने का सवाल नहीं पैदा होता वहीं से खटास ने दोनों के संबंधों में जगह बना ली। तनातनी का नजारा यूपी विधानसभा उपचुनाव में देखने को मिली। जब हरियाणा चुनाव के नतीजों के ठीक एक दिन बाद समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवारों को घोषित कर दिया। यानी कि धीरे धीरे तनाव भारी पड़ने लगा और उसमें इजाफा और हुआ जब महाराष्ट्र (Maharashtra Assembly Elections 2024) में कांग्रेस पार्टी ने समाजवादी पार्टी को तवज्जो नहीं दी। लेकिन कहा जाता है कि सियासत भी मौसम की तरह है। महाराष्ट्र के नतीजे जब कांग्रेस के खिलाफ गए तो समाजवादी पार्टी को खुल कर खेलने का मौका मिला।
समाजवादी पार्टी ने महाराष्ट्र में कांग्रेस (Congress defeat in Maharashtra Elections) की हार पर कहा कि सबसे बड़े दल को आत्मचिंतन की जरूरत है। वहीं ममता बनर्जी ने जह इंडिया गठबंधन की कमान संभालने की इच्छा जाहिर की तो अखिलेश यादव समर्थन करने में पीछे नहीं रहे। यानी कि खटास को बढ़ने का एक और मौका मिला। सियासत के जानकार कहते हैं कि यूपी की राजनीतिक पृष्ठभूमि ऐसी है कि जो दोनों दलों को एक साथ आने से रोकेगी। आप इसे संभल वाले मामले से देख सकते हैं। संभल में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों दलों के नेता नहीं जा सके। लेकिन समाजवादी पार्टी ने राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के संभल जाने की कोशिश को पिकनिक करार दे अपने नजरिए को साफ कर दिया।