चंद्रशेखर केस: CBI के ट्रैप ऑपरेशन की सच्चाई पर उठे गंभीर सवाल
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चंद्रशेखर केस: CBI के ट्रैप ऑपरेशन की सच्चाई पर उठे गंभीर सवाल

भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करने वाले DRI अधिकारी चंद्रशेखर को CBI ने ट्रैप केस में गिरफ्तार किया, जबकि उन्होंने रिश्वत लेने से इनकार कर दिया था।


भारत की शीर्ष भ्रष्टाचार-रोधी एजेंसी, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। मामला उस वरिष्ठ राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) अधिकारी का है, जिसने कुछ निर्यातकों और सरकारी कर्मचारियों की संलिप्तता वाले भ्रष्टाचार का खुलासा किया था। इस अधिकारी को CBI ने एक “ट्रैप केस” में गिरफ्तार किया, हालांकि उसने कभी रिश्वत की रकम स्वीकार ही नहीं की थी। बाद में अधिकारी की मौत हो गई।

शुरुआत कैसे हुई?

2019 में निर्यातक सुधीर गुलाटी ने CBI में शिकायत दर्ज कराई। उनका आरोप था कि दो निजी व्यक्ति – अनूप जोशी और राजेश धांडा – DRI अधिकारी चंद्रशेखर की ओर से रिश्वत की मांग कर रहे हैं, ताकि उनके खिलाफ चल रही जांच को निपटा दिया जाए।CBI ने FIR दर्ज कर ट्रैप बिछाया और 1 जनवरी 2020 को जोशी, धांडा और चंद्रशेखर को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन 2021 में जांच पूरी होने से पहले ही जोशी और चंद्रशेखर की मौत कोविड से हो गई। इसके बाद दिसंबर 2021 में CBI ने सिर्फ राजेश धांडा के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया, जिसे अदालत ने लौटा दिया। अदालत का कहना था कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PC Act) की धाराएँ लागू नहीं हो सकतीं क्योंकि एकमात्र सरकारी अधिकारी (चंद्रशेखर) की मौत हो चुकी थी।

आरोपपत्र में दोहराव

अजीब स्थिति यह रही कि एक साल बाद, दिसंबर 2022 में, CBI ने लगभग वही आरोपपत्र उसी अदालत में फिर से दायर कर दिया। इस बीच पहले वाले विशेष जज का तबादला हो चुका था। नए जज ने संज्ञान लिया, जिसके खिलाफ धांडा ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। उनका कहना था कि यह संज्ञान लेना दरअसल पूर्व जज के आदेश की समीक्षा जैसा है, जो कानून की प्रक्रिया के खिलाफ है।

चंद्रशेखर के खिलाफ “ट्रैप”

CBI का आरोप था कि 31 दिसंबर 2019 को अनूप जोशी को 25 लाख की रिश्वत की पहली किस्त लेते रंगे हाथ पकड़ा गया। धांडा भले ही पैसे को छुए बिना होटल से निकल गए थे, उन्हें भी वापस लाकर गिरफ्तार कर लिया गया। CBI ने दावा किया कि धांडा ने पूछताछ में कहा कि चंद्रशेखर रिश्वत तभी लेंगे जब रकम उनके लुधियाना स्थित घर पर दी जाए। इसके बाद CBI की मौजूदगी में धांडा और चंद्रशेखर के बीच एक व्हाट्सऐप कॉल कराई गई, जिसे रिकॉर्ड भी किया गया।

रिकॉर्डिंग के अनुसार, जब धांडा ने कहा कि गुलाटी कुछ सामान देना चाहता है, तो चंद्रशेखर ने बार-बार “ना, ना, ना” कहकर मना कर दिया। धांडा ने फिर भी आग्रह किया, लेकिन चंद्रशेखर ने दोबारा मना करते हुए केवल इतना कहा—“कहां है ये? ठीक है, ठीक है।”बाद में बातचीत में उन्होंने कहा कि उनका “दिल अचानक बदल गया,” लेकिन CBI यह स्पष्ट नहीं कर सकी कि यह किस संदर्भ में कहा गया।

रिश्वत लेने से इनकार के बावजूद गिरफ्तारी

जब धांडा उनके घर रिश्वत की रकम लेकर पहुँचे तो चंद्रशेखर ने उसे लेने से इनकार कर दिया। CBI ने इसे “अस्थायी टालना” बताया और दावा किया कि वह बाद में रकम स्वीकार करते। इसी आधार पर चंद्रशेखर को भी गिरफ्तार कर लिया गया।

धांडा सवाल उठाते हैं “अगर मान भी लें कि चंद्रशेखरजी ने रकम दिल्ली में लेने को कहा होता, तो एजेंसी मुझे लुधियाना से वापस दिल्ली क्यों नहीं ले गई? क्यों ‘कंट्रोल्ड डिलीवरी’ अधूरी छोड़कर हमें गिरफ्तार कर लिया गया?”

चंद्रशेखर की असली लड़ाई

दस्तावेज़ बताते हैं कि गिरफ्तारी से पहले चंद्रशेखर लगातार अधिकारियों को पत्र लिख रहे थे। वे 2,000 करोड़ रुपये के टैक्स चोरी घोटाले की जांच कर रहे थे और उनके पास सबूत था कि कुछ निर्यातक सरकारी अधिकारियों को रिश्वत दे रहे हैं।दिलचस्प बात यह है कि CBI ने चंद्रशेखर के फोन की निगरानी 27 दिसंबर 2019 को शिकायत मिलने से पहले ही, 14 अक्टूबर 2019 से शुरू कर दी थी। यानी FIR दर्ज होने से दो महीने पहले!

गायब रिकॉर्ड और अनसुलझे सवाल

CBI के पास 835 कॉल रिकॉर्डिंग्स थीं, जिन्हें गृहमंत्रालय की अनुमति से इंटरसेप्ट किया गया था। लेकिन इनका इस्तेमाल धांडा के मुकदमे में नहीं किया गया।धांडा का सवाल है “अगर मैं चंद्रशेखरजी का तथाकथित ‘मध्यस्थ’ था, तो मेरी उनसे बातचीत की रिकॉर्डिंग भी होनी चाहिए। उसे सार्वजनिक क्यों नहीं किया जा रहा?”धांडा यह भी पूछते हैं कि DRI लुधियाना में चंद्रशेखर की टीम ने जो भ्रष्टाचार के दस्तावेज़ इकट्ठे किए थे, उनका क्या हुआ? गिरफ्तारी के बाद CBI वे सारे कागज़ात ले गई थी, लेकिन अब तक उनकी स्थिति स्पष्ट नहीं है।

यह पूरा मामला कई कानूनी और नैतिक सवाल खड़ा करता है। एक ओर CBI का दावा है कि यह रिश्वतखोरी का ट्रैप केस था, वहीं दस्तावेज़ बताते हैं कि चंद्रशेखर ने रिश्वत लेने से इनकार किया था। धांडा कहते हैं: “मैं आज एक मृतक इंसान की प्रतिष्ठा बचाने की लड़ाई लड़ रहा हूं, क्योंकि वह अब खुद का बचाव करने के लिए यहां नहीं हैं।”

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