दुमका पर क्यों टिकी है नजर, एक तरफ शिबू सोरेन की बहू दूसरी ओर चेला
x

दुमका पर क्यों टिकी है नजर, एक तरफ शिबू सोरेन की बहू दूसरी ओर चेला

दुमका सीट, संथाल राजनीति का केंद्र रहा है. 2024 चुनाव में इस सीट पर शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन और उनके शिष्य नलिन सोरेन आमने सामने हैं.


Dumka Loksabha News 2024: झारखंड की दुमका सीट चर्चा में है.चर्चा इस वजह से नहीं कि बीजेपी और जेएमएम के कैंडिडेट एक दूसरे के आमने सामने हैं. बल्कि वजह यह कि गुरुजी की बड़ी बहू सीता सोरेन बीजेपी और उनके शिष्य नलिन सोरेन जेएमएम से किस्मत आजमा रहे हैं. यह चुनाव दिलचस्प इस वजह से है कि पहली बार दुमका सीट से सोरेन परिवार के बाहर का कोई शख्स चुनावी लड़ाई में है. इस सीट पर जीत या हार किसी की हो शिबू सोरेन के खाते में खुशी कम ही जाएगी. दरअसल चुनाव से ठीक पहले सीता सोरेन ने बीजेपी का दामन थाम लिया जोकि जेएमएम के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है. ऐसी सूरत में नलिन सोरेन के तौर पर जेएमएम ने कैंडिडेट उतारा है जो सोरेन परिवार के सदस्य नहीं हैं.

यहां हम पहले बात करेंगे कि दुमका की स्थिति क्या है. इस लोकसभा में कुल मतदाताओं की संख्या साढ़े 15 लाख के करीब है जिसमें पुरुष और महिला मतदाताओं की संख्या बराबर बराबर है. दुमका लोकसभा कुल 6 विधानसभाओं जामा, शिकारीपाड़ा, जामताड़ा, जामानाला, और सारठ से मिलकर बनी है. अगर 2014 के नतीजे को देखें तो शिबू सोरेन बीजेपी के सुनील सोरेन के खिलाफ जीत दर्ज करने में कामयाब रहे. लेकिन 2019 में तस्वीर बदली. बीजेपी के प्रत्याशी ने मात दे दी.सुनील सोरेन ने गुरुजी यानी शिबू सोरेन को हरा दिया.

जेएमएम का गढ़ रहा है दुमका

अगर दुमका सीट की बात करें तो यह जेएमएम का गढ़ रहा है. 1980 में पहली बार शिबू सोरेन निर्दलीय चुनाव जीत कर संसद पहुंचे.1989 से 1996 तक लगातार तीन बार चुनाव भी जीते.यही नहीं 2002 से 2014 तक जीत हासिल की यही नहीं 2014 में मोदी लहर में भी वो चुनाव जीतने में कामयाब रहे. दुमका सीट को संथाल राजनीति का केंद्र भी कहा जाता है. ऐसी सूरत में बीजेपी ने जिस तरह से जेएमएम में सेंधमारी कर सीता सोरेन को अपने पाले में किया है वो शिबू सोरेन की ना सिर्फ पार्टी बल्कि परिवार के लिए भी बड़ी चुनौती से कम नहीं है.

क्यों शिबू सोरेन की अब भी होती है चर्चा

साल 2000 में जब बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बना तो उस लड़ाई में जेएमएम की भूमिका अहम थी. हालांकि पहली सरकार बीजेपी की बनी थी और बाबू लाल मरांडी सीएम बने, राज्य के गठन के बाद जेएमएम ने 2005 में सरकार बनाई और महज 9 दिन के सिए शिबू सोरेन सीएम बने. चार साल बाद 2009 में शिबू सोरेन एक बार फिर राज्य की कमान संभाली लेकिन सरकार करीब एक साल तक चली. 2013 से 14 तक हेमंत सोरेन ने सरकार चलाई. हेमंत सोरेन को एक 2019 में फिर मौका मिला लेकिन करप्शन केस में जेल में बंद होने से पहले इस्तीफा दे दिया और राज्य की कमान चंपई सोरेन के हाथ में आ गई, अगर 24 साल के कालखंड को देखें तो करीब सात साल तक झारखंड की कमान जेएमएम के हाथ में रही.

Read More
Next Story