
मुख्य चुनाव आयुक्त की राहुल गांधी को चुनौती, '7 दिन के भीतर शपथपत्र दें, वरना आरोप बेबुनियाद माने जाएंगे'
चुनाव आयोग की प्रेस ब्रीफिंग ‘वोट चोरी’ और बिहार में SIR ड्राइव को लेकर जारी विवाद के बीच हुई है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा लगाए गए ‘वोट चोरी’ के आरोपों और बिहार में गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) को लेकर विपक्ष के लगातार विरोध के बीच चुनाव आयोग (EC) ने पहली बार प्रेस कॉन्फ्रेंस की। मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि यदि कांग्रेस नेता राहुल गांधी 7 दिन के भीतर शपथपत्र नहीं देते तो उनके ‘वोट चोरी’ के आरोप बेबुनियाद और अमान्य माने जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि यदि राहुल शपथपत्र नहीं देते तो उन्हें देश से माफी मांगनी चाहिए।
राहुल गांधी ने बार-बार आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग ने मतदाता डेटा में गड़बड़ी की और महाराष्ट्र, कर्नाटक व हरियाणा में “वोट चोरी” हुई। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा है कि वह बिहार के SIR में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख नामों का विवरण और उन्हें शामिल न करने के कारण प्रकाशित करे।
बिहार SIR में गड़बड़ियों को 1 सितंबर से पहले बताएं: CEC
ज्ञानेश कुमार ने कहा कि सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों से अनुरोध है कि बिहार की मतदाता सूची में गड़बड़ियों की जानकारी 1 सितंबर से पहले दें, बाद में नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि बिना शपथपत्र के क्या चुनाव आयोग 1.5 लाख मतदाताओं को नोटिस जारी करे?
बिहार SIR का बचाव
ज्ञानेश कुमार ने कहा, "कुछ लोग भ्रामक बातें फैला रहे हैं कि इतनी जल्दी SIR क्यों की जा रही है? क्या मतदाता सूची चुनाव से पहले ठीक होनी चाहिए या बाद में? चुनाव आयोग ऐसा नहीं कह रहा है, बल्कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम कहता है कि हर चुनाव से पहले मतदाता सूची को ठीक करना ज़रूरी है। यह चुनाव आयोग की कानूनी ज़िम्मेदारी है। सवाल उठा कि क्या आयोग बिहार के 7 करोड़ से अधिक मतदाताओं तक पहुंच पाएगा? सच यह है कि काम 24 जून से शुरू हुआ और लगभग 20 जुलाई तक पूरा हो गया।"
CEC: पिछले 20 साल से SIR नहीं हुई थी
ज्ञानेश कुमार ने कहा, "पिछले 20 साल में SIR नहीं की गई थी। देश में 10 बार से ज़्यादा SIR कराई जा चुकी है। SIR का मुख्य उद्देश्य मतदाता सूची को शुद्ध करना है।राजनीतिक दलों की ओर से कई शिकायतें आने के बाद यह प्रक्रिया कराई जा रही है।"
डुप्लीकेट EPICs पर CEC का बयान
CEC ज्ञानेश कुमार ने कहा, "डुप्लीकेट EPIC दो तरह से हो सकते हैं। पहला—पश्चिम बंगाल का कोई व्यक्ति है, जिसका एक EPIC नंबर है और हरियाणा का कोई दूसरा व्यक्ति उसी नंबर का इस्तेमाल कर रहा है। मार्च 2025 में जब यह सवाल उठा तो हमने देशभर में जांच की। लगभग 3 लाख ऐसे लोग पाए गए जिनके EPIC नंबर समान थे। उनका EPIC नंबर बदल दिया गया।
दूसरा मामला तब आता है जब एक ही व्यक्ति का नाम अलग-अलग जगहों की मतदाता सूची में होता है और हर जगह उसका EPIC नंबर अलग होता है। यानी एक व्यक्ति, कई EPICs। 2003 से पहले अगर आपको पुरानी जगह से नाम हटवाना होता था तो चुनाव आयोग की कोई ऐसी वेबसाइट नहीं थी जहां सारा डेटा एक जगह हो... तकनीकी सुविधा न होने से कई ऐसे लोग जो अलग जगह चले गए, उनके नाम कई जगह जुड़ गए। आज तकनीकी साधन हैं, तो यह हटाया जा सकता है। लेकिन जल्दबाज़ी में करने से किसी सही मतदाता का नाम गलत तरीके से हट भी सकता है।"
मशीन-रीडेबल और searchable वोटर लिस्ट में फर्क पर CEC
ज्ञानेश कुमार ने कहा, "मशीन-रीडेबल मतदाता सूची प्रतिबंधित है। यह चुनाव आयोग का 2019 का फैसला है, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लिया गया। searchable वोटर लिस्ट और मशीन-रीडेबल वोटर लिस्ट में फर्क समझना ज़रूरी है। आप चुनाव आयोग की वेबसाइट पर EPIC नंबर डालकर वोटर लिस्ट खोज सकते हैं और डाउनलोड भी कर सकते हैं। यह searchable है, पर इसे मशीन-रीडेबल नहीं कहा जाता। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गहराई से अध्ययन कर पाया था कि मशीन-रीडेबल मतदाता सूची देने से मतदाता की प्राइवेसी का उल्लंघन हो सकता है।"