Electoral Bonds Case: सुप्रीम कोर्ट ने SIT जांच की याचिका की खारिज
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Electoral Bonds Case: सुप्रीम कोर्ट ने SIT जांच की याचिका की खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना की अदालत की निगरानी में जांच की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया.


Supreme Court on Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (2 अगस्त) को चुनावी बॉन्ड योजना की अदालत की निगरानी में जांच की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस स्तर पर हस्तक्षेप करना अनुचित और अपरिपक्व होगा.

शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस धारणा के आधार पर चुनावी बांड की खरीद की जांच का आदेश नहीं दे सकती कि यह ठेके देने के बदले में किया गया था. पीठ ने कहा कि अदालत ने चुनावी बॉन्ड को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार किया. क्योंकि इसमें न्यायिक समीक्षा का पहलू था. लेकिन जब कानून के तहत उपचार उपलब्ध हैं तो आपराधिक गलत कामों से जुड़े मामले अनुच्छेद 32 के तहत नहीं होने चाहिए.

एनजीओ द्वारा दायर याचिकाएं

बता दें कि शीर्ष अदालत कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) सहित गैर सरकारी संगठनों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. दोनों गैर सरकारी संगठनों द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) में इस योजना की आड़ में राजनीतिक दलों, निगमों और जांच एजेंसियों के बीच "स्पष्ट लेन-देन" का आरोप लगाया गया है.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत शिकायतों- जिसमें राजनीतिक दल और कॉर्पोरेट संगठन के बीच लेन-देन के अलग-अलग दावों का जिक्र है - को "कानून के तहत उपलब्ध उपायों के आधार पर आगे बढ़ाया जाना चाहिए. इसमें उन विकल्पों को भी शामिल किया जाना चाहिए, जो अधिकारियों द्वारा विशिष्ट दावों की जांच करने से इनकार करने की स्थिति में उपलब्ध हों.

कोर्ट ने कहा कि इस समय, कानून में उपलब्ध उपायों के अभाव में, इस अदालत के लिए हस्तक्षेप करना समय से पहले और अनुचित होगा. क्योंकि हस्तक्षेप उन उपायों की विफलता के बाद ही किया जाना चाहिए. इस स्तर पर अदालत यह नहीं कह सकती कि क्या ये सामान्य उपाय प्रभावकारी नहीं होंगे.

जांच उचित है: प्रशांत भूषण

फरवरी 2024 में एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को खत्म कर दिया था. लोकसभा चुनाव शुरू होने से कुछ हफ्ते पहले कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राजनीतिक दलों को अघोषित फंडिंग मतदाताओं के पारदर्शिता के अधिकार का उल्लंघन है. इसके अलावा कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक को दानदाताओं और जिन पक्षों को दान दिया गया, उनकी पहचान करने वाले आंकड़े जारी करने का निर्देश दिया.

आज, कोर्ट ने चार याचिकाओं पर सुनवाई की, जिनमें से एक में कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच की मांग की गई थी. वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि विशेष जांच की आवश्यकता है. क्योंकि "सरकारें इसमें शामिल हैं. सत्तारूढ़ पार्टी और शीर्ष कॉर्पोरेट घराने इसमें शामिल हैं.

उन्होंने कहा कि 8,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का मामला चल रहा है! कुछ मामलों में IFB एग्रो जैसी कंपनियों ने तमिलनाडु में समस्याओं का सामना करने के कारण बॉन्ड में 40 करोड़ रुपये का भुगतान किया. यह सिर्फ़ एक राजनीतिक दल तक सीमित नहीं है. किसी भी पार्टी को रिश्वत और घूस के ज़रिए मिले पैसे पर बैठने की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए. लेकिन कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को फरवरी के फैसले के अनुसार घटनाओं को सामान्य रूप से चलने देना चाहिए.

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