
भारत में स्टारलिंक डील: जियो और एयरटेल के लिए अवसर या खतरा?
एक बार जब स्टारलिंक अपना डिस्ट्रिब्यूशन नेटवर्क बना लेगा और ग्राहक हासिल कर लेगा तो वह जियो और एयरटेल के साथ साझेदारी को छोड़ सकता है और एक बुनियादी ढांचे से मुक्त कंपनी के रूप में स्वतंत्र रूप से प्रतिस्पर्धा कर सकता है.
एलोन मस्क की स्टारलिंक ने भारतीय बाजार में अपनी उपस्थिति बनाने के लिए रिलायंस जियो और भारती एयरटेल के साथ पार्टनरशिप की है. इन साझेदारियों के माध्यम से स्टारलिंक न केवल भारत में अपनी सेवा को विस्तार देने की कोशिश कर रहा है, बल्कि यह कदम देश के डिजिटल परिदृश्य को भी एक नई दिशा दे सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार, इन साझेदारियों के पीछे एक प्रमुख कारण भारत की टेलीकॉम नीति 2023 (Telecommunications Act, 2023) है, जिसने सैटेलाइट सर्विसेज के लिए स्पेक्ट्रम नीलामी की जगह प्रशासनिक आवंटन को मंजूरी दी है.
मकसद
स्टारलिंक का प्रमुख उद्देश्य भारत के दूरदराज और ग्रामीण क्षेत्रों में हाई स्पीड इंटरनेट उपलब्ध कराना है. इसके लिए, उसने जियो और एयरटेल के साथ दो प्रमुख साझेदारियां की हैं:-
रिलायंस जियो के साथ गठबंधन
जियो के साथ स्टारलिंक का गठबंधन एक वितरण और एकीकरण साझेदारी है. जियो अपने विशाल रिटेल नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए स्टारलिंक के सैटेलाइट और सर्विस भारतीय उपभोक्ताओं तक पहुंचाएगा. जियो का उद्देश्य है कि वह स्टारलिंक की सैटेलाइट तकनीक को अपनी मौजूदा ब्रॉडबैंड सेवाओं में शामिल कर उन क्षेत्रों में नेटवर्क कवरेज बढ़ाए, जहां पारंपरिक इंटरनेट सेवाएं नहीं पहुंच पातीं.
भारती एयरटेल के साथ साझेदारी
एयरटेल ने स्टारलिंक के साथ एक वितरण और सहायक सेवाओं की साझेदारी की है. एयरटेल का मुख्य ध्यान ग्रामीण और underserved क्षेत्रों पर होगा. एयरटेल, स्टारलिंक के उपकरण और सेवाओं को अपने उपभोक्ताओं और एंटरप्राइज ग्राहकों तक पहुंचाएगा. जबकि जियो इसे अपनी ब्रॉडबैंड सेवा में समाहित करेगा, एयरटेल इसे एक अतिरिक्त सेवा के रूप में पेश करेगा, जो मौजूदा नेटवर्क को सपोर्ट करेगी.
इन साझेदारियों के माध्यम से स्टारलिंक का उद्देश्य भारत में हाई स्पीड इंटरनेट सेवा को उन क्षेत्रों तक पहुंचाना है, जहां पारंपरिक नेटवर्क का विस्तार नहीं हो सकता.
मौजूदा निवेश और साझेदारियां
स्टारलिंक के साथ अपनी साझेदारी से पहले जियो और एयरटेल ने अन्य सैटेलाइट इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के साथ भी सहयोग किया है:-
एयरटेल का निवेश
एयरटेल ने Eutelsat OneWeb में महत्वपूर्ण निवेश किया है. जो एक प्रतिस्पर्धी सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर है. इस निवेश के कारण एयरटेल की रणनीति पर असर पड़ सकता है और वे स्टारलिंक की सेवाओं को अलग तरीके से लागू कर सकते हैं, जैसे विभिन्न बाजार खंडों को लक्षित करना.
जियो की रणनीति
जियो ने पहले ही SES के साथ अपनी उपग्रह इंटरनेट सेवा JioSpaceFiber शुरू कर चुका है. यह साझेदारी स्टारलिंक के साथ उनके भविष्य के संबंधों को प्रभावित कर सकती है, खासकर जब जियो को अपनी उपग्रह इंटरनेट रणनीति को पुनः तैयार करने की आवश्यकता महसूस हो.
भविष्य में प्रतिस्पर्धा और जोखिम
हालांकि, वर्तमान में जियो और एयरटेल स्टारलिंक के साथ साझेदारी कर रहे हैं. लेकिन भविष्य में यह कंपनियां स्टारलिंक से प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं. सूत्रों के अनुसार, इन साझेदारियों को फरवरी 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एलोन मस्क के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक के बाद अंतिम रूप दिया गया था.
भारत सरकार का दृष्टिकोण
भारत सरकार ने 2023 के टेलीकॉम एक्ट में उपग्रह स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए प्रशासनिक दृष्टिकोण को अपनाया, जिसके तहत स्पेक्ट्रम नीलामी की बजाय प्रशासनिक आवंटन किया जाएगा. टेलीकॉम मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के अनुसार, यह फैसला आईटीयू के मानकों के अनुसार लिया गया है, जो यह स्पष्ट करते हैं कि अंतरिक्ष में स्पेक्ट्रम की नीलामी नहीं की जा सकती.
प्रतिस्पर्धा और नियामक चिंता
स्टारलिंक के साथ जियो और एयरटेल की साझेदारियां बाजार में कार्टेलाइजेशन का जोखिम पैदा कर सकती हैं. ईएएस शर्मा, पूर्व केंद्रीय सचिव, ने सरकार को चेतावनी दी है कि यह गठबंधन बाजार में प्रतिस्पर्धा को प्रभावित कर सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि स्टारलिंक को स्पेक्ट्रम आवंटन में विशेष रणनीतिक लाभ देना सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ हो सकता है, जो यह कहता है कि स्पेक्ट्रम केवल पारदर्शी नीलामी के माध्यम से आवंटित किया जाना चाहिए.
मूल्य निर्धारण चुनौतियां
भारत का ब्रॉडबैंड बाजार जियो और एयरटेल के हाथों में है, जिनका कुल मिलाकर 81% बाजार हिस्सेदारी है. इन कंपनियों ने फाइबर ऑप्टिक्स और 5G प्रौद्योगिकी में भारी निवेश किया है. इसके विपरीत, स्टारलिंक एक नया उपग्रह आधारित मॉडल पेश करता है, जो पारंपरिक नेटवर्क अवसंरचना पर निर्भर नहीं करता. हालांकि, स्टारलिंक की मूल्य निर्धारण नीति भारत के बजट-अनुकूल बाजार के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती है. इसकी हार्डवेयर लागत ₹25,000 से ₹35,000 तक हो सकती है और मासिक शुल्क ₹5,000 से ₹7,000 तक हो सकता है, जो अधिकांश भारतीय उपभोक्ताओं के लिए काफी महंगा हो सकता है.
नियामक और अंतरराष्ट्रीय चिंताएं
भारत सरकार ने विदेशी उपग्रह ऑपरेटरों से इंटरनेट सेवाएं देने के लिए सुरक्षा और नियंत्रण तंत्र की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया है।. रिपोर्टों के अनुसार, सरकार ने स्टारलिंक से स्थानीय नियंत्रण केंद्र स्थापित करने का अनुरोध किया है, ताकि सुरक्षा अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके. इसके अलावा, स्टारलिंक के वैश्विक विस्तार के कारण कुछ अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक चिंताएं भी उठ रही हैं. जैसे कि अमेरिका का दबाव स्टारलिंक से यूक्रेन में सैन्य उद्देश्यों के लिए सेवा का उपयोग करने को लेकर.