सांस लेने की नहीं थी जगह, लोग एक-दूसरे के ऊपर कूद रहे थे,  प्रत्यक्षदर्शियों ने बताई आपबीती
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'सांस लेने की नहीं थी जगह, लोग एक-दूसरे के ऊपर कूद रहे थे', प्रत्यक्षदर्शियों ने बताई आपबीती

Stampede new delhi station: प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि भीड़ सीमा से बाहर थी, लोग फुट ओवरब्रिज पर एकत्र हो गए थे. कभी इतनी बड़ी भीड़ नहीं देखी, यहां तक कि त्योहारों के समय भी नहीं.


New delhi railway station stampede: नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर शनिवार को एक दुखद हादसा हो गया. यहां देर रात हुई भगदड़ में 18 लोगों की जान चली गई. बताया जा रहा है कि हजारों की तादाद में श्रद्धालु महाकुंभ 2025 के लिए प्रयागराज जा रहे थे. इस वजह से स्टेशन पर भीड़ बहुत ज्यादा हो गई थी. हादसे के वक्त मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि भीड़ सीमा से कहीं अधिक थी. हालाांकि, मौके पर प्रशासन और NDRF के कर्मचारी भी मौके पर थे. लेकिन कुंभ जाने के लिए भीड़ इतनी बढ़ कि उन्हें संभाल पाना मुश्किल हो गया था.

प्रत्यक्षदर्शी और भारतीय वायु सेना में तैनात एक सार्जेंट ने बताया कि लोगों की भीड़ को रोकने के लिए अनाउंसमेंट की गई. लेकिन फिर भी भीड़ नियंत्रण से बाहर हो गई थी. उन्होंने कहा कि प्रशासन ने भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन लोग नहीं सुन रहे थे. हमारे पास रेलवे स्टेशन पर एक ट्राई सर्विस ऑफिस है. जब मैं अपनी ड्यूटी के बाद वापस आ रहा था तो मैं नहीं जा सका. क्योंकि वहां काफी भीड़ थी. मैंने लोगों को समझाने की कोशिश की और चीखकर अनाउंसमेट भी किया. ताकि लोग प्लेटफार्म पर बड़ी संख्या में एकत्रित न पाएं. प्रशासन भी किसी भी हादसे को रोकने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा था. लेकिन कोई नहीं सुन रहा था.

वहीं, अन्य प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि भीड़ सीमा से बाहर थी, लोग फुट ओवरब्रिज पर एकत्र हो गए थे. इतनी बड़ी भीड़ की उम्मीद नहीं थी. मैंने रेलवे स्टेशन पर कभी इतनी बड़ी भीड़ नहीं देखी, यहां तक कि त्योहारों के समय भी नहीं. प्रशासन और NDRF के लोग वहां थे. लेकिन जब भीड़ की सीमा पार हो गई तो उन्हें नियंत्रित करना संभव नहीं था.

मौके पर मौजूद लोगों का कहना था कि शाम 6-7 बजे के बाद भीड़ बढ़ती गई और देरी से चलने वाली ट्रेन– स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस और भुवनेश्वर राजधानी ने हालात और बिगाड़ दिए. जिससे भीड़ "असंतुलित" हो गई. कई परिवारों ने शिकायत की कि ट्रेन के समय में कुछ बदलाव के कारण और अधिक अफरातफरी हुई. जबकि भगदड़ रात 9.30-9.45 बजे के आसपास हुई. लेकिन पुलिस और एम्बुलेंस काफी देर से पहुंची.

LNJP अस्पताल में भगदड़ में अपनी बहन को खोने वाले एक पीड़ित ने कहा कि हम 12 लोग महाकुंभ जा रहे थे. हम प्लेटफार्म तक नहीं पहुंचे थे, हम सीढ़ियों पर थे. मेरा परिवार, जिसमें मेरी बहन भी थी, भीड़ में फंस गई. हम उन्हें आधे घंटे बाद ढूंढ पाए और तब तक वह मर चुकी थीं. दूसरे व्यक्ति ने बताया कि वह रात 12.45 बजे लोक नायक अस्पताल पहुंचे. उन्होंने अपनी 11 वर्षीय बेटी और अपने सास-ससुर को भगदड़ में खो दिया. वह अपनी बेटी और सास-ससुर के साथ महाकुंभ जाने के लिए स्टेशन जा रहे थे. लेकिन तभी भगदढ़ मच गई. लोग एक दूसरे के ऊपर चढ़ रहे थे. उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों का पहुंचने में बहुत समय लगा और पीड़ितों को लोक नायक और अन्य अस्पतालों में ले जाया गया. वे सभी सिर्फ कुंभ जाना चाहते थे. उनका क्या दोष था? पुलिस इतनी देर से क्यों आई? मेरी बेटी बच सकती थी, लेकिन वह लोगों के नीचे दब गई.

वहीं, कापसहेड़ा में काम करने वाले एक मजदूर ने बताया कि यह एक आपदा है. यहां कोई मानवता नहीं है. सभी निर्दयता से कूद रहे थे और दौड़ रहे थे।. हम बचने में सफल हुए. लेकिन मेरी सास की मृत्यु हो गई. हम उन्हें सिर्फ स्टेशन छोड़ने गए थे. हालांकि, हम भी मर सकते थे. सांस लेने, बैठने या खड़े होने की कोई जगह नहीं थी. मैं वहां था, बेबस. हम सभी चिल्ला रहे थे. क्योंकि सीढ़ी का एक हिस्सा अवरुद्ध था और एस्केलेटर भर चुका था. हमारे पास कोई जगह नहीं थी. भीड़ दो तरफ से आ रही थी. कम से कम 45 मिनट तक कोई मदद नहीं आई.

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