
पूर्व RAW चीफ का बड़ा दावा: अमेरिका नहीं चाहता भारत की तरक्की!
पूर्व RAW प्रमुख का इशारा साफ है— अमेरिका की नीतियों में छिपी शक्तियां काम कर रही हैं, जो भारत की तरक्की से खुश नहीं हैं और पाकिस्तान इस मौके को भुनाने में लगा है.
भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) के पूर्व प्रमुख विक्रम सूद ने एक इंटरव्यू में बड़ा दावा किया है. उन्होंने कहा कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच हाल के दिनों में जो नजदीकी देखने को मिली है, उसकी वजह भारत का अमेरिका को "ऑपरेशन सिंदूर" में श्रेय न देना है. उन्होंने कहा कि जब भारत ने पाकिस्तान पर सफल ऑपरेशन चलाया और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इसमें किसी भूमिका को नहीं माना तो अमेरिका नाराज हो गया और पाकिस्तान ने इस मौके को भुनाते हुए ट्रंप की जमकर तारीफ की. पाकिस्तान ने कहा कि “धन्यवाद सर, आप नोबेल के हकदार हैं.”
भारत की आर्थिक तरक्की से घबराता है अमेरिका
सूद ने आगे कहा कि अमेरिका में एक "डीप स्टेट" यानी ऐसी छिपी हुई ताकतें हैं, जो नहीं चाहतीं कि भारत आर्थिक रूप से आगे बढ़े. उनका मानना है कि अमेरिका को डर है कि भारत और चीन दोनों अब बड़ी आर्थिक शक्तियां बन रहे हैं. जब हम राष्ट्रवाद की बात करते हैं तो अमेरिका इसे 'हिंदू राष्ट्रवाद' कहकर दिखाता है, ताकि उसका डर बढ़ाया जा सके.
ट्रंप ने पाक सेना प्रमुख को बुलाया डिनर पर
यह बयान ऐसे समय आया है, जब ट्रंप ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर को अमेरिका में डिनर पर बुलाया और उन्हें "बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति" बताया. सूद ने कहा कि ट्रंप की नाराज़गी के बाद पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ अपने रिश्ते और मज़बूत कर लिए.
क्या है 'डीप स्टेट'?
सूद ने कहा कि 'डीप स्टेट' शब्द सबसे पहले तुर्की में इस्तेमाल हुआ था. वहां एक कार एक्सिडेंट में कुछ खुफिया एजेंसी और पुलिस के अधिकारी मारे गए थे. उनके साथ एक ड्रग तस्कर भी था, जिसके पास ड्रग्स, पैसा और हथियार थे. इससे यह बात सामने आई कि कुछ लोग सरकार और सिस्टम के पीछे से मिलकर काम कर रहे हैं. अब यह शब्द अमेरिका के लिए भी इस्तेमाल होता है, जहां कॉरपोरेट कंपनियां, खुफिया एजेंसियां और थिंक टैंक मिलकर अपने फायदे के लिए नीतियां बनवाते हैं.
डोनाल्ड ट्रंप 'डीप स्टेट' का हिस्सा नहीं
विक्रम सूद ने स्पष्ट किया कि डोनाल्ड ट्रंप इस डीप स्टेट का हिस्सा नहीं हैं. उन्होंने कहा कि अमेरिका में कई फैसले सिर्फ राष्ट्रपति या संसद नहीं करती, बल्कि हथियार बनाने वाली कंपनियां, उनके लॉबिस्ट और थिंक टैंक मिलकर तय करते हैं कि कौन-सा देश कितना मदद पाएगा या कौन-सा दुश्मन माना जाएगा. ये कंपनियां अपने सांसदों पर दबाव डालती हैं कि भारत, पाकिस्तान या इज़राइल के साथ कैसा व्यवहार किया जाए, ताकि उनका माल बिक सके. उन्होंने कहा कि अमेरिका की इस छुपी व्यवस्था में लगभग हर ताकतवर व्यक्ति शामिल है — सिर्फ ट्रंप को छोड़कर. इसी को "वॉल स्ट्रीट स्टेट डिपार्टमेंट" भी कहा जाता है.