बक्से से बैग तक, भारतीय महिलाओं की सशक्त यात्रा
x
भारत में महिलाओं के लगेज का बदलाव, उनकी यात्रा की कहानी है,जहां वे सीमित और निर्भर भूमिका से निकलकर अब स्वतंत्र और वैश्विक यात्रियों के रूप में उभरी हैं।

बक्से से बैग तक, भारतीय महिलाओं की सशक्त यात्रा

भारत में महिलाओं के ट्रैवल बैग्स का सफर लोहे की अलमारी से स्मार्ट लगेज तक पहुंचा है, जो उनकी बढ़ती आज़ादी, पहचान और तकनीकी समझ को दर्शाता है।


Women luggage Journey: भारत में महिलाओं के सामान यानी उनके ट्रैवल बैग्स की यात्रा न केवल एक उपयोगिता की कहानी है, बल्कि यह भारतीय समाज में महिला स्वतंत्रता, नवाचार और सांस्कृतिक बदलाव का प्रतिबिंब भी है। कभी जो भारी लोहे की अलमारी दहेज का मुख्य हिस्सा होती थी, आज वो बदलकर स्मार्ट सूटकेस में तब्दील हो गई है, जो अकेली महिला यात्रियों की वैश्विक यात्राओं का साथी बन चुकी है।

1950-60 के दशक में जब अलमारी थी पहचान

उस दौर में जब महिलाओं की स्वतंत्रता सीमित थी और उनकी यात्रा सिर्फ मायके से ससुराल तक सीमित होती थी, तब लोहे की भारी अलमारी उनका पूरा संसार समेटे होती थी। साड़ियों से लेकर पीतल के बर्तन तक सब कुछ उसी में जाता था। दिल्ली की वकील प्रिया शर्मा बताती हैं, मेरी दादी की 1962 की स्टील ट्रंक आज भी हमारे घर में है। यह बोझिल है पर उस युग का प्रतीक है।

मुंबई की डेबोस्मिता कापसे कहती हैं, मेरे पास मेरी दादी की पुरानी स्टील ट्रंक है। इसमें उनकी कीमती साड़ियां और हाथ से सिले हुए कपड़े हैं। मैं अक्सर शहर बदलती हूँ लेकिन यह ट्रंक हमेशा साथ रहता है। यह सिर्फ सामान नहीं, बल्कि घर का एक हिस्सा है।

70-80 का दशक बदला दौर, बदला सामान

जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ा और महिलाएं कार्यक्षेत्र में उतरीं, वैसे-वैसे भारी-भरकम ट्रंक की जगह हल्के सूटकेस ने ले ली। हालांकि शुरू में इन्हें पुरुष चुनते थे, लेकिन 90 के दशक में आर्थिक उदारीकरण के साथ महिलाओं ने अपने लिए बैग चुनना शुरू किया।

भारतीय ब्रांड्स का उदय

VIP, Safari और Aristocrat जैसे ब्रांड्स ने भारतीय लगेज बाज़ार में क्रांति ला दी। VIP ने 1971 में शुरुआत की और अब उसका 43.8% मार्केट शेयर है। 2000 के दशक में VIP ने महिलाओं के लिए हल्के और रंगीन बैग्स पेश किए। Safari ने डिजिटल उपभोक्ताओं पर फोकस किया और FY23 में 24.1% मार्केट शेयर तक पहुंच गया, जिसमें 20-25% बिक्री ऑनलाइन हुई।

मेक इन इंडिया और परंपरा का मेल

‘मेक इन इंडिया’ अभियान के चलते VIP जैसी कंपनियों ने भारत में ही मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाई। खास बात यह है कि महिलाओं की जरूरतों को समझते हुए बैग्स में आंतरिक ऑर्गनाइज़र, रंगीन डिज़ाइन, और भारतीय पारंपरिक पहनावे के मुताबिक सुविधाएं जोड़ी गईं। कानपुर की लेदर कारीगरी और विभिन्न क्षेत्रों के हैंडलूम डिज़ाइनों को भी आधुनिक बैग डिज़ाइन में समाहित किया गया।

डिजिटल युग की महिला यात्री

नई पीढ़ी की महिलाएं आत्मनिर्भर, जानकार और तकनीक-प्रेमी हैं। मुंबई की मीरा पटेल कहती हैं, मैं साल में कम से कम 6 बार अकेले ट्रैवल करती हूँ, और मेरे बैग्स को स्टाइलिश और तकनीकी रूप से सुविधाजनक होना चाहिए। चंद्रेयी बनर्जी बताती हैं कि उनका बैग इनबिल्ट चार्जिंग केबल के साथ आता है। यह लंबी उड़ानों में बहुत काम आता है।

स्मार्ट लगेज का दौर

अब महिलाएं GPS ट्रैकिंग, बायोमेट्रिक लॉक, और USB चार्जिंग जैसे स्मार्ट फीचर्स को प्राथमिकता देती हैं। अकेले यात्रा करने वाली महिलाओं के लिए यह फीचर्स सुरक्षा और सुविधा दोनों का काम करते हैं। वैश्विक स्मार्ट लगेज बाज़ार 2024 में 2.24 बिलियन डॉलर का है, जो 2030 तक 4.14 बिलियन डॉलर हो सकता है।

जनरेशन गैप: मिलेनियल बनाम Gen Z

मिलेनियल्स टिकाऊ और ब्रांडेड बैग्स पसंद करते हैं, जबकि Gen Z इंस्टाग्राम-फ्रेंडली, टिकाऊ और तकनीकी रूप से सक्षम बैग्स चाहती है। पुणे की शिवांगी निगम कहती हैं, मेरा बैग फोटो में अच्छा दिखना चाहिए, लेकिन वह फंक्शनल भी होना चाहिए।”

भारतीय बाज़ार की तस्वीर और भविष्य

भारतीय लगेज मार्केट 2024 में 3.68 बिलियन डॉलर का है, जो 2030 तक 5.5 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। VIP और Safari जैसे ब्रांड्स को अब अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स और D2C स्टार्टअप्स से टक्कर मिल रही है। ई-कॉमर्स ने प्रतियोगिता को बराबरी पर ला दिया है। Safari की EPS 2020 में ₹13.72 से बढ़कर 2024 में ₹36.9 हो गई है।

सशक्तिकरण का प्रतीक

महिलाओं के ट्रैवल बैग्स सिर्फ यात्रा का माध्यम नहीं, बल्कि आज़ादी, आत्मनिर्भरता और सामाजिक बदलाव के प्रतीक बन चुके हैं। जैसे-जैसे महिलाएं नई सीमाएं पार कर रही हैं, उनका सामान भी उनकी आकांक्षाओं और आत्मबल को दर्शा रहा है। भविष्य में AI, IoT और स्थायी सामग्री इस क्षेत्र को और बदल देंगे। भारतीय महिला के बैग्स अब सिर्फ चीज़ें नहीं ले जाते। वे सपने, कहानियां और बदलाव लेकर चलते हैं।

Read More
Next Story