GST 2.0 और आपदा राहत: वित्तीय सुधार, लेकिन संवेदनशीलता का अभाव
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GST 2.0 और आपदा राहत: वित्तीय सुधार, लेकिन संवेदनशीलता का अभाव

आपदा के बाद पैसा खर्च करने की बजाय से पहले तैयार रहना ज्यादा समझदारी है। भारत को ज़रूरत है एक एकीकृत, पारदर्शी और उत्तरदायी वित्तीय मॉडल की, जो टैक्स सुधारों को आपदा प्रबंधन से जोड़ सके।


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आज दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिवस (IDDRR) मनाया जा रहा है। इस वर्ष का विषय है – "आपदा नहीं, संवेदनशीलता को वित्त पोषण दें" (Fund Resilience, Not Disaster)। यह थीम इस ओर संकेत करती है कि अब समय आ गया है कि सरकारें सिर्फ आपदा के बाद राहत पर नहीं, बल्कि आपदा से पहले संवेदनशीलता (resilience) को मज़बूत करने पर धन खर्च करें।

भारत में क्या है स्थिति?

भारत में आपदा प्रबंधन पूरी तरह से केंद्र और राज्यों के वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता और पारदर्शिता पर निर्भर है। राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) जैसे तंत्र राहत और पुनर्वास में अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन दीर्घकालिक जोखिम न्यूनीकरण के लिए समय पर पूर्वानुमानित और जवाबदेह फंडिंग की जरूरत है।

जीएसटी 2.0: नया टैक्स सुधार

हाल ही में लागू GST 2.0 को "गर्व से कहो, ये स्वदेशी है" के नारे के साथ पेश किया गया। हालांकि, इस टैक्स सुधार का आपदा प्रबंधन से कोई सीधा लिंक नहीं है, फिर भी इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव राहत, पुनर्निर्माण और सामानों की सुलभता पर देखा जा रहा है।

जीएसटी से जुड़ी आपदा-प्रबंधन संबंधी समस्याएं

* आपदा-ग्रस्त राज्यों को जीएसटी राजस्व हानि की भरपाई नहीं मिलती।

* केंद्र और राज्य की सहायता अक्सर विलंबित और असंगत होती है।

* गरीब राज्य, जैसे असम और ओडिशा, कम जीएसटी कमाते हैं, लेकिन ज़्यादा आपदाएं झेलते हैं।

* जीएसटी मुआवज़ा उपकर (Compensation Cess) का कोई हिस्सा आपदा राहत के लिए निर्धारित नहीं।

* आपदा की रोकथाम पर खर्च बेहद कम और विखंडित है।

2025 की आपदाएं

असम में समय से पहले मानसून ने 20,000 हेक्टेयर कृषि भूमि को जलमग्न कर दिया, जिससे ₹400–500 करोड़ की क्षति और 5 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए। पंजाब में 40 वर्षों की सबसे भयावह बाढ़ में 1,400 से अधिक गांव डूब गए, 3.5 लाख लोग प्रभावित हुए और फसल नुकसान से महंगाई बढ़ी। NDRF से ₹1,554.99 करोड़ की राशि तो जारी हुई, लेकिन विलंब और अपर्याप्तता को लेकर आलोचना भी हुई।

जीएसटी से राहत

जीवन रक्षक चिकित्सा उपकरणों पर 0–5% जीएसटी, जिससे कोविड जैसी आपात स्थितियों में सहूलियत बढ़ी। ड्रोन (5% जीएसटी)– आपदा निगरानी और राहत में तेजी से उपयोगी हो रहे हैं। कृषि उपकरण, बीमा प्रीमियम और निर्माण सामग्री पर कम दरें – पुनर्निर्माण में मददगार। व्यक्तिगत जीवन और स्वास्थ्य बीमा अब कर-मुक्तॉ, लेकिन समूह योजनाओं पर अब भी टैक्स लागू।

संरचनात्मक कमियां

बुनियादी ढांचा क्षति, सप्लाई चेन बाधा और राज्यों के बीच वित्तीय असमानता अब भी बनी हुई है। जीएसटी मुआवज़ा उपकर को आपदा प्रबंधन से जोड़ने की कोई नीति नहीं है। राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण कोष (NDMF), जो 2005 के कानून में अनिवार्य था, अब भी उपेक्षित है। देर से फंड जारी होना, ब्यूरोक्रेसी की बाधाएं और जवाबदेही की कमी– जोखिम कम करने की दिशा में सबसे बड़ी रुकावट हैं।

समाधान

1. आपदा के समय स्वचालित जीएसटी छूट जैसी व्यवस्था लाई जाए।

2. मुआवज़ा उपकर का एक हिस्सा सीधे NDRF और SDRF को आवंटित किया जाए।

3. ई-वे बिल और चालान ट्रैकिंग जैसी जीएसटी डिजिटल प्रणालियां** आपदा लॉजिस्टिक्स में एकीकृत की जाएं।

4. पूर्व तैयारी में निवेश: जैसे – मजबूत बुनियादी ढांचा, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, सामुदायिक प्रशिक्षण।

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