हाथरस भगदड़ की FIR में ही झलक रही है पुलिस और प्रशासन की लापरवाही
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हाथरस भगदड़ की FIR में ही झलक रही है पुलिस और प्रशासन की लापरवाही

खुद पुलिस FIR में ये दावा कर रही है कि कार्यक्रम की परमिशन लेते समय 80 हजार के लोगों के शामिल होने की बात कही थी, जबकि ढाई लाख से ज्यादा लोग सत्संग में पहुंचे. यानी परमिशन से तीन गुना ज्यादा लोग


Hathras Stampede: उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में हुए दिल दहलाने वाले हादसे में बेशक पुलिस ने FIR दर्ज कर ली है और इस पूरे मामले के लिए आयोजकों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है, लेकिन सच ये भी है कि लापरवाही बरतने में पुलिस और प्रशासन भी पीछे नहीं रहा है. खुद पुलिस FIR में ये दावा कर रही है कि कार्यक्रम की परमिशन लेते समय 80 हजार के लोगों के शामिल होने की बात कही थी, जबकि ढाई लाख से ज्यादा लोग सत्संग में पहुंचे. यानी परमिशन से तीन गुना ज्यादा लोग. सवाल ये उठता है कि अगर आयोजन को रोका नहीं गया तो क्या पुलिस और प्रशासन ने अपने इंतजाम को तीन गुना बढ़ाया?



इसी बात से पुलिस और प्रशासन पर भी लापरवाही बरतने की बात सामने आ रही कि जब परमिशन की शर्तों का उल्लंघन हुआ तो तुरंत ही परमिशन रद्द करते हुए कार्यक्रम को रोका क्यों नहीं गया? इसके अलावा कई अन्य बिंदु हैं, जिन पर प्रकाश डालते हैं. इस विषय पर दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड डीसीपी एलएन राव ने कई बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित कराया जो अमूमन किसी भी आयोजन की परमिशन देने के समय पुलिस और प्रशासन द्वारा ध्यान में रखे जाते हैं. जानते हैं सभी बिन्दुओ के बारे में.

- दो हजार लोगों पर 1 पुलिस कर्मी - हाथरस मामले में दर्ज FIR में पुलिस ने ये लिखा है कि आयोजनकर्ताओं ने कार्यक्रम को लेकर जो परमिशन मांगी थी, उसमें 80 हजार लोगों के आने की बात कही थी. पुलिस FIR में दावा करती है कि जिस संख्या का ज़िक्र परमिशन में किया गया था, उसके अनुसार पालिक और प्रशासन ने बंदोबस्त किये थे, जिससे सुरक्षा, शांति व्यवस्था, ट्रैफिक इंतजाम किये गए. आयोजन में पुलिस के 40 कर्मी ही तैनात किये गए थे. अगर हम 80 हजार लोगों की बात करें तो इसके अनुसार 2000 लोगों पर सिर्फ 1 पुलिस कर्मी तैनात था. क्या ये पुलिस के उचित प्रबंध को दर्शाता है?

- पुलिस ने बाबा के सुरक्षा सेवादारों पर निर्भरता क्यों दिखाई - इस हादसे में ये भी कहा गया है कि सुरक्षा की ज़िम्मेदारी आयोजनकर्ताओं के सेवादारों की थी, तो ऐसे में पुलिस सिर्फ उन पर निर्भर कैसे रह सकती है. क्या सिर्फ इसी तर्क पर कम पुलिस कर्मियों की तैनाती की गयी?


- लोकल इंटेलिजेंस की विफलता : जब भी कोई इस तरह का आयोजन होता है तो उसे लेकर पुलिस की सीआईडी यानी ख़ुफ़िया विभाग सक्रीय रहता है और अपने स्तर पर ये पता लगाता है कि कितने लोग उस आयोजन में शामिल हो सकते हैं? कहीं लॉ एंड आर्डर यानी कानून व्यवस्था बिगड़ने जैसे तो कोई हालत पैदा नहीं होंगे? आयोजन का विषय क्या है? इन सब बातों की जानकारी जुटा कर पुलिस व प्रशासन को उपलब्ध कराई जाती है, ताकि कोई अप्रिय घटना न हो या फिर ऐसी किसी घटना को रोका जा सके, जिससे लोगों को कोई नुक्सान न हो.


- अब प्रशासन की बात करें तो इतने लोगों के एकत्र होने की परमिशन देने से पहले क्या इस बात का जायजा लिया गया कि आयोजन स्थल पर इतने लोगों के लिए सभी जरुरी चीजों जैसे पानी, शौचालयों आदि की सही व्यवस्था है? इन सब के बाद ये भी देखना था कि इतनी गर्मी और उमसभरे मौसम में इतने लोगों का एकत्र होना स्वास्थ्य के हिसाब से कितना उचित होगा. लेकिन इन सब बातों का भी ध्यान नहीं दिया गया.


अब बात करते हैं कि किस किस पर कार्रवाई हो सकती है

दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड डीसीपी एलएन राव का कहना है कि ये मामला बहुत बड़ी लापरवाही है, न केवल आयोजकों के स्तर पर बल्कि पुलिस और प्रशासन के स्तर पर भी. बहुत बड़ी संख्या में लोगों की जान गयी है. पुलिस और प्रशासन की नाक के निचे परमिशन की शर्तों का उल्लंघन हुआ और समय रहते कुछ नहीं किया गया. ऐसे में चौकी और थाना लेवल पर कार्रवाई करके इस गंभीर लापरवाही पर लीपापोती नहीं की जा सकती है. इस मामले में जिला प्रशासन और जिला पुलिस के आला अधिकारीयों पर भी सख्त कार्रवाई बनती है, क्योंकि इतने बड़े आयोजन को लेकर सिर्फ निचले स्तर के पुलिस कर्मियों या फिर प्रशासन पर कार्रवाई करके खानापूर्ति नहीं की जा सकती है. सीधे शब्दों में कहें तो डीएम और एसपी भी उतने ही लापरवाह हैं, जितने की निचले स्तर के कर्मी.

यूपी सरकार की जाँच में किस पर गिरेगी गाज !

इस हादसे के बाद यूपी सरकार की तरफ से ये कहा गया कि इस मामले में आगरा जोन के एडीजी और अलीगढ़ के पुलिस कमिश्नर की देखरेख में जांच कराने का दावा किया है. ये जाँच रिपोर्ट 24 घंटे में आने का दावा भी किया गया था. अब देखना है कि किस पर गाज गिरती है और किसे बचाया जाता है.

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