गठबंधन का रंग दिखने लगा, IAS में लेटरल एंट्री पर केंद्र सरकार झुकी
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गठबंधन का रंग दिखने लगा, IAS में लेटरल एंट्री पर केंद्र सरकार झुकी

केंद्र सरकार ने यूपीएससी से कहा कि वो आईएएस में लेटरल एंट्री वाला विज्ञापन वापस ले ले। बता दें कि विपक्ष के साथ साथ घटक दल ने भी विरोध किया था।


IAS Lateral Entry: दुनिया की कठिन परीक्षाओं में से एक है आईएएस की परीक्षा। तीन फेज में होने वाले एग्जाम में सफलता की दर बहुत कम है। मोदी सरकार ने 2018 में लेटरल एंट्री के जरिए यानी सीधी भर्ती के जरिए ज्वाइंट सेक्रेटरी, डॉयरेक्टर और डिप्टी डायरेक्टर के पदों पर भर्ती का विचार रखा और इस दिशा में 2019 में भर्ती की गई। अब तक कुल 63 नियुक्ति हुई है जिसमें 57 लोग कार्यरत हैं। हाल ही में यूपीएससी ने 45 पदों के लिए सीधी भर्ती का विज्ञापन दिया। लेकिन इस विषय पर सियासत शुरू हो गई। राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने तो निशाना साधा ही। इसके साथ ही मोदी सरकार में मंत्री चिराग पासवान ने भी इस विषय पर अपना विरोध जताया। इन राजनीतिक शख्सियतों के बयान और उसके मतलब को समझने की कोशिश करेंगे।
राहुल गांधी जब बिफर पड़े

राहुल गांधी ने 19 अगस्त को लैटरल एंट्री दलितों, ओबीसी और आदिवासियों पर हमला है।बीजेपी का रामराज्य का विकृत संस्करण संविधान को नष्ट करने और बहुजनों से आरक्षण छीनने का प्रयास करता है।

विरोध में अखिलेश यादव के सुर
भाजपा अपनी विचारधारा के संगी-साथियों को पिछले दरवाज़े से यूपीएससी के उच्च सरकारी पदों पर बैठाने की जो साज़िश कर रही है, उसके ख़िलाफ़ एक देशव्यापी आंदोलन खड़ा करने का समय आ गया है।ये तरीक़ा आज के अधिकारियों के साथ, युवाओं के लिए भी वर्तमान और भविष्य में उच्च पदों पर जाने का रास्ता बंद कर देगा। आम लोग बाबू व चपरासी तक ही सीमित हो जाएंगे।

दरअसल से सारी चाल पीडीए से आरक्षण और उनके अधिकार छीनने की है। अब जब भाजपा ये जान गयी है कि संविधान को ख़त्म करने की भाजपाई चाल के ख़िलाफ़ देश भर का पीडीए जाग उठा है तो वो ऐसे पदों पर सीधी भर्ती करके आरक्षण को दूसरे बहाने से नकारना चाहती है।भाजपा सरकार इसे तत्काल वापस ले क्योंकि ये देशहित में भी नहीं है। भाजपा अपनी दलीय विचारधारा के अधिकारियों को सरकार में रखकर मनमाना काम करवाना चाहती है। सरकारी कृपा से अधिकारी बने ऐसे लोग कभी भी निष्पक्ष नहीं हो सकते। ऐसे लोगों की सत्यनिष्ठा पर भी हमेशा प्रश्नचिन्ह लगा रहेगा।

देशभर के अधिकारियों और युवाओं से आग्रह है कि यदि भाजपा सरकार इसे वापस न ले तो आगामी 2 अक्टूबर से एक नया आंदोलन शुरू करने में हमारे साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर खड़े हों। सरकारी तंत्र पर कारपोरेट के क़ब्ज़े को हम बर्दाश्त नहीं करेंगे क्योंकि कारपोरेट की अमीरोंवाली पूंजीवादी सोच ज़्यादा-से-ज़्यादा लाभ कमाने की होती है। ऐसी सोच दूसरे के शोषण पर निर्भर करती है, जबकि हमारी ‘समाजवादी सोच’ ग़रीब, किसान, मजदूर, नौकरीपेशा, अपना छोटा-मोटा काम-कारोबार-दुकान करनेवाली आम जनता के पोषण और कल्याण की है।ये देश के विरूद्ध एक बड़ा षड्यंत्र है।

चिराग पासवान ने क्या कहा था
यूपीएससी लैटरल भर्ती पर केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान कहते हैं, "...पहली बात तो यह है कि सरकार की सोच पूरी तरह से आरक्षण के समर्थन में है. प्रधानमंत्री की सोच आरक्षण के समर्थन में है. जिस तरह से कुछ पदों पर सीधी भर्ती की मांग की गई है, जिसमें आरक्षण को ध्यान में नहीं रखा गया है, उससे मैं और मेरी पार्टी सहमत नहीं है, हम इसके पूरी तरह से खिलाफ हैं. सरकार का हिस्सा होने के नाते हमने सरकार के उचित मंच पर भी इस चिंता को दर्ज कराया है. आने वाले दिनों में भी हम इस पर मजबूती से आवाज उठाएंगे. जहां भी सरकारी नियुक्तियां होंगी, वहां आरक्षण के प्रावधानों का पालन होना चाहिए. जिस तरह से सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण की व्यवस्था चली आ रही है, उसे हर नियुक्ति में ध्यान में रखना अनिवार्य है और अगर इसका ध्यान नहीं रखा जाता है, जो हमने आज देखा भी है, तो सरकार इसके लिए उचित कार्रवाई जरूर करेगी."

नंबर कम, गठबंधन हावी
अब सवाल यह है कि बड़े और क्रांतिकारी फैसले की बात करने वाली मोदी सरकार चुनावी नतीजों से डर रही है। सियासी जानकार कहते हैं कि अब गठबंधन का असर साफ नजर आ रहा है। राहुल गांधी के विरोध के बाद अश्विनी वैष्णव खुद मैदान में उतर कर कांग्रेक को कठघरे में खड़ा किया। लेकिन चिराग पासवान के रुख के बाद सरकार ने यू टर्न ले लिया। जबकि यही सरकार 2019 में और उसके बाद के वर्षों में नहीं झुकी। सरकार को अहसास हो चुका है कि आरक्षण का राग उस आग की तरह है जिससे कितना भी बचने की कोशिश करो हाथ चल जाएगा। अब इस साल के अंत तक चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं लिहाजा केंद्र की सरकार या सीधे तौर पर कहें कि बीजेपी किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहेगी। इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि बीजेपी के पास स्पष्ट तौर पर मैजिक नंबर 272 ना होने की वजह से झुकना पड़ रहा है। इसके साथ ही केंद्र की सरकार तो विपक्ष के आरोपों और तीखे हमलों को उसका कर्तव्य बता सकती है। लेकिन जब विरोध खुद के खेमे से हो तो उसका जवाब देना आसान नहीं रह जाता।

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