
भारत को अब डेटा, उद्योग नीति और कौशल पर निर्णायक कदम उठाने होंगे, IMF की सलाह
IMF ने भारत के नवीकरणीय ऊर्जा प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि सिर्फ सरकारी खर्च पर निर्भर रहना लंबी अवधि में वित्तीय जोखिम बढ़ा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने 26 नवंबर को जारी अपनी स्टाफ रिपोर्ट में भारत की अर्थव्यवस्था से जुड़े कई अहम मुद्दों की ओर संकेत किया है। भारतीय अधिकारियों और उद्योग जगत के नेताओं के साथ कई दौर की चर्चाओं के बाद जारी इस रिपोर्ट में IMF ने कहा है कि भारत को उत्पादकता बढ़ाने, निजी निवेश को दोबारा गति देने, उच्च गुणवत्ता वाली नौकरियां सृजित करने और विकास क्षमता बढ़ाने के लिए कई संरचनात्मक सुधार करने होंगे।
IMF की रिपोर्ट में कई सुधारों का सुझाव दिया गया है, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा आधिकारिक आंकड़ों की गुणवत्ता, उपलब्धता और समयबद्धता को लेकर उठाया गया सवाल है। खासतौर पर ऐसे समय में जब भारत की Q1 और Q2 में अप्रत्याशित रूप से तेज GDP वृद्धि दर्ज की गई है।
सांख्यिकीय प्रणाली पर सवाल
IMF ने भारत की आधिकारिक सांख्यिकीय प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी (NAS) को ‘C’ ग्रेड दिया है, जो कि न्यूनतम ग्रेड से बस एक स्तर ऊपर है। NAS में GDP, राष्ट्रीय आय, खपत, बचत, निवेश और विभिन्न क्षेत्रों के अन्य महत्वपूर्ण डेटा शामिल हैं।
IMF के अनुसार, डेटा संग्रह की पद्धति और गुणवत्ता में त्रुटियां हैं। कई सर्वेक्षणों और सूचकांकों में पुराने बेंचमार्क इस्तेमाल किए जाते हैं। GDP के त्रैमासिक आंकड़ों की गुणवत्ता कमजोर है। अनौपचारिक क्षेत्र का पूरा आकलन नहीं हो पाता, जबकि इसका GDP में लगभग आधा योगदान है। उत्पादन और व्यय आधारित GDP अनुमानों में काफी अंतर पाया जाता है। सेवाओं के उत्पादन सूचकांक (SPI) और निर्माता मूल्य सूचकांक (PPI) का अभाव है। सिंगल डिफ्लेशन पद्धति का अत्यधिक उपयोग GDP को ज्यादा या कम आंक सकता है। IMF ने इसे भारत की सांख्यिकीय प्रणाली के लिए चिंताजनक स्थिति बताया, जिसे कभी दुनिया में सबसे सक्षम माना जाता था।
औद्योगिक नीति पर फोकस
IMF ने भारत की औद्योगिक नीति पर भी सवाल उठाया और कहा कि PLI योजनाएं व्यापक संरचनात्मक सुधारों का विकल्प नहीं हैं। रिपोर्ट के अनुसार, सभी योजनाओं को मिलाकर PLI की कार्यान्वयन दर सिर्फ 18% है। औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक ‘हॉरिजॉन्टल सुधार’ अभी भी अपूर्ण हैं। बेहतर नतीजों के लिए IMF ने सुझाव दिया कि शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास पर खर्च बढ़ाया जाए। अनौपचारिक श्रमिकों के लिए मजबूत सामाजिक सुरक्षा गुणवत्ता वाली नौकरियां सृजित की जाएं। नए लेबर कोड प्रभावी तरीके से लागू हों। औद्योगिक नीति ऐसे डिजाइन हो, जो बाजार विफलताओं को दूर करे, मगर सरकारी वित्त पर अधिक बोझ न डाले।
R&D खर्च बेहद कम
भारत में R&D खर्च GDP का सिर्फ 0.7% है, जो G20 और OECD देशों की तुलना में काफी कम है। IMF ने कहा कि विश्वविद्यालयों, निजी कंपनियों और अनुसंधान संस्थानों के बीच तालमेल मजबूत करना होगा।
व्यापार बाधाओं में कटौती की सलाह
IMF ने सुझाव दिया कि घरेलू उद्योगों के लिए संरक्षणवाद कम किया जाए। व्यापार बाधाओं को हटाया जाए। द्विपक्षीय और क्षेत्रीय व्यापार समझौतों के जरिए बेहतर वैश्विक एकीकरण किया जाए। इससे भारत की प्रतिस्पर्धा क्षमता और FDI प्रवाह बढ़ेगा।
दक्षिण कोरियाई अर्थशास्त्री हा-जून चांग ने एक इंटरव्यू में कहा कि भारत के उद्योगपतियों में गंभीर औद्योगिकीकरण की इच्छा नहीं है। देश में “कम मूल्य-वर्धित सेवाएं” (जैसे कॉल सेंटर, बैक ऑफिस, बेसिक सॉफ्टवेयर कोडिंग) हावी हैं। ये क्षेत्र AI से सबसे पहले और गंभीर रूप से प्रभावित होंगे। उन्होंने चेतावनी दी कि भारत AI का सबसे बड़ा शिकार हो सकता है, इसे उद्योगीकरण की दिशा में तुरंत आगे बढ़ना चाहिए।
IMF की चेतावनी
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में फर्मों के प्रवेश और निकास की दर 1% से भी कम है, जबकि विकसित देशों में यह 8–13% है। लगभग 15% कंपनियां ‘ज़ॉम्बी फर्म’ हैं, जो अपने ब्याज खर्च तक नहीं निकाल पातीं। इन कंपनियों में उत्पादकता बहुत कम है और ये संरचनात्मक कमजोरी का संकेत हैं। IBC ने स्थिति सुधारी है, लेकिन कानून में अभी और सुधारों की जरूरत है।
मानव पूंजी पर कम निवेश
IMF ने शिक्षा, कौशल और स्वास्थ्य में कमी को गंभीर चुनौती बताया। भारत में शिक्षा पर खर्च GDP का 2.8% है। वहीं, स्वास्थ्य पर खर्च GDP का 1.6% है। रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षा और कौशल की कमी उत्पादक रोजगार में बाधा है। बच्चों में कुपोषण, स्टंटिंग और वेस्टिंग की उच्च दर भविष्य का मानवीय पूंजी निर्माण प्रभावित कर रही है। विश्व बैंक और नीति दस्तावेजों के मुताबिक, भारत को शिक्षा पर 4–6.5% और स्वास्थ्य पर 2.5–4% खर्च बढ़ाना चाहिए ताकि "विकसित भारत" लक्ष्य हासिल किया जा सके।
जलवायु वित्त
IMF ने भारत के नवीकरणीय ऊर्जा प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि सिर्फ सरकारी खर्च पर निर्भर रहना लंबी अवधि में वित्तीय जोखिम बढ़ा सकता है। भारत को अधिक निजी निवेश, बाहरी फंडिंग और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देना होगा।

