FTII और SRFTI पर संकट, छात्रों ने लगाया पक्षपात का आरोप
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FTII और SRFTI पर संकट, छात्रों ने लगाया पक्षपात का आरोप

भारत के तीन फिल्म संस्थान आरक्षण नीति, प्रशासनिक अनियमितता और जवाबदेही की कमी को लेकर विवादों में हैं। छात्र न्याय और पारदर्शिता की मांग कर रहे हैं।


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भारत के दो प्रमुख फिल्म शिक्षण संस्थान पुणे स्थित फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) और कोलकाता स्थित सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट (SRFTI) को हाल ही में यूजीसी अधिनियम के तहत “डीम्ड-टू-बी यूनिवर्सिटी” का दर्जा मिला है। लेकिन यह प्रतिष्ठा मिलने के कुछ ही महीनों बाद दोनों संस्थान विश्वसनीयता के संकट का सामना कर रहे हैं।

पुणे और कोलकाता, दोनों परिसरों में छात्र आरक्षण नीति की त्रुटिपूर्ण क्रियान्वयन, अस्पष्ट प्रशासनिक निर्णयों और सेवा नियमों के दुरुपयोग को लेकर सवाल उठा रहे हैं। यहां तक कि अरुणाचल प्रदेश में एसआरएफटीआई द्वारा संचालित नया फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट (FTI) भी प्रशासनिक उपेक्षा और अधूरी अधोसंरचना के आरोपों में घिरा हुआ है।

ये तीनों संस्थान सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (I&B) के अधीन आते हैं, जिससे यह साफ झलकता है कि देश के सरकारी वित्त पोषित फिल्म स्कूलों के संचालन में लगातार चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

छात्रों का आरोप: आरक्षण नीति में अनियमितता

सबसे हालिया विवाद एफटीआईआई पुणे के 2024–25 सत्र के प्रवेश प्रक्रिया से जुड़ा है। 17 अक्टूबर को जारी हुई मेरिट लिस्ट में छात्रों ने कई विसंगतियाँ पकड़ीं।एफटीआईआई स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अनुसार, एक आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार जो सामान्य मेरिट में चयन के योग्य था, उसे न केवल सामान्य सूची की प्रतीक्षा सूची में डाल दिया गया बल्कि आरक्षित सूची से पूरी तरह बाहर कर दिया गया।

कई शिकायतों के बाद प्रशासन ने “कैल्कुलेशन से जुड़ी गलती” स्वीकार करते हुए 24 अक्टूबर को संशोधित मेरिट लिस्ट जारी की। कुलपति ने माफी मांगते हुए कहा कि प्रभावित छात्रों को “मानवीय आधार” पर अतिरिक्त सुपरन्यूमरेरी सीटों के ज़रिए समायोजित किया जाएगा।लेकिन नई लिस्ट ने और भ्रम पैदा कर दिया। एक छात्र ने बताया “नई सूची में न सिर्फ नए नाम जोड़े गए, बल्कि सीटों की संख्या भी बदल दी गई। स्क्रीन एक्टिंग विभाग में 16 सीटें अचानक बढ़कर 23 हो गईं। इन अतिरिक्त सीटों पर आरक्षण कैसे लागू होगा, इसका कोई स्पष्ट नियम नहीं है। इसका मतलब है कि आरक्षण नीति ही बेमानी हो जाती है।”

उसने यह भी कहा कि यह समस्या नई नहीं है “आरक्षण नीति बिल्कुल पारदर्शी नहीं है। उम्मीदवारों को भी समझ नहीं आता कि नियम क्या हैं। प्रशासन कहता है कि वे DoPT (कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग) और UPSC के नियमों का पालन करते हैं, जबकि ये शिक्षा से नहीं बल्कि रोजगार से जुड़े नियम हैं।”

कोलकाता में भी वही कहानी: SRFTI में आरक्षण को लेकर असंतोष

इसी तरह का विवाद कोलकाता स्थित एसआरएफटीआई में भी देखने को मिला।संस्थान के छात्र संघ ने प्रशासन पर 2025 की प्रवेश परीक्षा में आरक्षण नियमों के गलत प्रयोग का आरोप लगाया है।छात्र संगठन का कहना है कि आरक्षित श्रेणी के कई उच्च अंक प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों को “उनकी श्रेणी में फ्रीज” कर दिया गया और उन्हें सामान्य सूची में स्थानांतरित नहीं होने दिया गया, जबकि वे मेरिट के आधार पर योग्य थे। “इस प्रक्रिया से यह होता है कि जो आरक्षित वर्ग के प्रतिभाशाली उम्मीदवार हैं, वे सामान्य सूची में नहीं जा पाते, जिससे पीछे के उम्मीदवारों के लिए अवसर घट जाते हैं। छात्र संघ ने 23 अक्टूबर को जारी एक बयान में कहा कि यह आरक्षण के मूल उद्देश्य सामाजिक न्याय — को कमजोर करता है।

एसआरएफटीआई छात्र संघ के अध्यक्ष धिवाहर मुतुवीरन का कहना है कि एफटीआईआई और एसआरएफटीआई दोनों में समस्या एक जैसी है “दोनों संस्थान DoPT के पुराने रोजगार नियमों का हवाला देकर शिक्षा क्षेत्र में उनका गलत प्रयोग कर रहे हैं।”

‘DoPT नियमों’ के नाम पर पारदर्शिता का अभाव

छात्र संघ को दिए एक लिखित जवाब में एसआरएफटीआई प्रशासन ने 1998 के DoPT ज्ञापन का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि यदि कोई आरक्षित उम्मीदवार किसी चरण में रियायत या छूट का लाभ लेता है, तो बाद में उसे सामान्य श्रेणी में नहीं माना जाएगा।मुतुवीरन ने कहा “प्रशासन रोजगार नियमों के पीछे छिप रहा है, जबकि यह एक शैक्षणिक प्रक्रिया है। अब जब एसआरएफटीआई एक ‘डीम्ड यूनिवर्सिटी’ है, तो ऐसे नियम लागू करना अनुचित है।”

उन्होंने कहा कि यह समस्या नई नहीं है “यहां यौन उत्पीड़न के मामलों से लेकर प्रशासनिक उदासीनता तक कई मुद्दे हैं, लेकिन फिलहाल सबसे बड़ा मुद्दा आरक्षण नीति का है। यह निष्पक्षता और सामाजिक न्याय का सवाल है।”

पिछले वर्षों में लगातार विवाद

पिछले कुछ वर्षों में इन संस्थानों में कई विवाद सामने आए हैं।मई 2024 में एसआरएफटीआई के छात्रों ने होस्टल के खराब भोजन-पानी, शिक्षकों के दुर्व्यवहार और अत्यधिक सीसीटीवी निगरानी के खिलाफ प्रदर्शन किया था।सितंबर 2024 में उन्होंने उस अधिकारी की बहाली के खिलाफ आंदोलन किया जिसे पहले यौन उत्पीड़न के आरोपों में निलंबित किया गया था। विरोध के बाद प्रशासन को आदेश वापस लेना पड़ा।

मई 2023 में एफटीआईआई पुणे में 43 छात्रों ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की, जब उनके एक साथी को असाइनमेंट पूरा करने और पासिंग मार्क्स हासिल करने के बावजूद कोर्स से निकाल दिया गया था।इन घटनाओं ने संस्थानों में अस्पष्ट निर्णय प्रक्रिया, उत्तरदायित्व की कमी, और प्रशासनिक असंवेदनशीलता की ओर ध्यान खींचा।

अरुणाचल प्रदेश के नए फिल्म संस्थान में अव्यवस्था

2024 में शुरू हुआ अरुणाचल प्रदेश का नया फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट (FTI-AP) भी अव्यवस्था का शिकार है। मई 2025 में छात्रों ने अधूरी अधोसंरचना, कक्षाओं की कमी, बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता, और शिक्षकों की कमी को लेकर विरोध किया।

छात्र आशीष कुमार ने कहा “हमने कक्षा थिएटर (CRT) की मांग की थी, पर वह आज तक अधूरा है। दो में से एक CRT अधूरा ही बना है। इसके बाद कोई सुधार नहीं हुआ। उन्होंने आगे कहा “यहां कोई कैंपस डायरेक्टर नहीं है। रजिस्ट्रार भी दूरदर्शन में दोहरी ड्यूटी के कारण कैंपस में नहीं रहते। वरिष्ठ प्रशासनिक नेतृत्व की अनुपस्थिति में सारा बोझ शिक्षकों पर पड़ता है।”

समस्या की जड़: शीर्ष स्तर पर उपेक्षा

छात्रों का कहना है कि तीनों संस्थानों में समस्या का पैटर्न एक जैसा है “यह उच्च स्तर पर लापरवाही का मामला है, क्योंकि तीनों संस्थान सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन आते हैं।”

एफटीआईआई के एक छात्र ने कहा कि यह संकट सिर्फ फिल्म संस्थानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देशभर के शैक्षणिक संस्थानों में जवाबदेही की व्यापक कमी का हिस्सा है। द फेडरल ने इस मामले पर सूचना एवं प्रसारण सचिव संजय जाजू, एफटीआईआई कुलपति धीरज सिंह, एसआरएफटीआई कुलपति समीरन दत्ता, और एफटीआई-एपी के डिप्टी रजिस्ट्रार दीपक कुमार से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।

भारत के सरकारी फिल्म संस्थान, जिन्हें कभी सिनेमा शिक्षा की धुरी माना जाता था, अब प्रशासनिक गड़बड़ियों, आरक्षण नीति की अपारदर्शिता और संस्थागत जवाबदेही की कमी से जूझ रहे हैं। सवाल यह है कि “डीम्ड यूनिवर्सिटी” का दर्जा क्या वास्तव में सुधार लाया है — या केवल समस्याओं को और गहरा कर दिया है।

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